पश्चिम बंगाल: अमर्त्य सेन और विश्वभारती यूनिवर्सिटी के बीच चल रही खींचतान की क्या वजह है

पश्चिम बंगाल की विश्व भारती यूनिवर्सिटी द्वारा परिसर में अवैध क़ब्ज़े हटाने के लिए बनाई गई सूची में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की पारिवारिक संपत्ति को भी शामिल किया है. सेन ने इससे इनकार करते हुए कुलपति के केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने की बात कही है.

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नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और विश्व भारती यूनिवर्सिटी के वीसी बिद्युत चक्रवर्ती. (फोटो साभार: विकीमीडिया/ट्विटर)

पश्चिम बंगाल की विश्व भारती यूनिवर्सिटी द्वारा परिसर में अवैध क़ब्ज़े हटाने के लिए बनाई गई सूची में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की पारिवारिक संपत्ति को भी शामिल किया है. सेन ने इससे इनकार करते हुए कुलपति के केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने की बात कही है.

नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और विश्व भारती यूनिवर्सिटी के वीसी बिद्युत चक्रवर्ती. (फोटो साभार: विकीमीडिया/ट्विटर)
नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और विश्व भारती यूनिवर्सिटी के वीसी बिद्युत चक्रवर्ती. (फोटो साभार: विकीमीडिया/ट्विटर)

नई दिल्ली/कोलकाता: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों की तारीख करीब आने के साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच विवाद के मुद्दे बढ़ते जा रहे हैं.

हालिया मुद्दा विश्व भारती विश्वविद्यालय से जुड़ा है, जहां के कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती परिसर की जमीन पर अवैध कब्जे को हटाने की व्यवस्था करने में व्यस्त हैं और इसमें नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का नाम भी कब्जा करने वालों की सूची में रखा गया है.

भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नीतियों के आलोचक अमर्त्य सेन ने शनिवार (26 सितंबर) को आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय के कुलपति केंद्र के इशारे पर कार्रवाई कर रहे हैं. इस विवाद के बीच राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरी तरह से उनके साथ खड़ी नजर आ रही हैं.

सेन का शांति निकेतन से संबंध

रबींद्रनाथ टैगोर ने 1908 में संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान क्षितिमोहन सेन, जो अमर्त्य सेन के नाना थे, को शांतिनिकेतन में आमंत्रित किया था और उन्होंने टैगोर के साथ विश्व भारती को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

1921 में विश्व भारती की स्थापना हुई थी. यह सर्वविदित है कि 1933 में जन्मे सेन को अमर्त्य नाम टैगोर ने ही दिया था.

टैगोर के समय से ही परिसर में कई प्लॉट कई प्रतिष्ठित हस्तियों को 99 साल की लीज़ पर दिए गए थे. सेन के पिता ने परिसर में ‘प्रतिचि’ नाम का घर बनवाया था, जिसमें सेन बड़े हुए और अब अक्सर वहां आते-जाते रहते हैं.

इसके बाद मई 1951 में विश्व भारती को संसद के एक अधिनियम द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाते हुए राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया गया.

क्या है मामला

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीते 9 दिसंबर को फैकल्टी मेंबर्स के साथ एक बैठक के दौरान विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति चक्रवर्ती ने दावा किया था कि अमर्त्य सेन, जो खुद को ‘भारत रत्न अमर्त्य सेन’ कहते हैं, ने अनुरोध किया था कि उनके घर के आसपास हॉकर्स को हटाया न जाए क्योंकि उनकी बेटी, जो अक्सर शांतिनिकेतन जाती रहती हैं, को असुविधा होगी.

कुलपति ने आगे दावा किया कि इस पर उन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय परिसर में सेन की संपत्ति में हॉकर्स को जगह देने का सुझाव दिया, जिस पर सेन ने फोन काट दिया.

इसके बाद विश्व भारती यूनिवर्सिटी फैकल्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदीप्त भट्टाचार्य, जो इस बैठक में मौजूद थे, ने चक्रवर्ती द्वारा कही गईं बातों की पुष्टि के लिए अमर्त्य सेन को ईमेल लिखा.

जवाब में सेन ने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने वीसी को कोई कॉल किया था. उन्होंने लिखा, ‘मैं हैरान हूं कि वीसी ने एक ऑनलाइन फैकल्टी मीटिंग में इस तरह की कोई घोषणा की. मुझे नहीं मालूम कि मेरी उनसे इन तरह की कोई बात हुई है. मुझे यह भी बताना चाहिए कि मैंने खुद को कभी ‘भारत रत्न’ कहकर नहीं पुकारा.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘मुझे यह भी नहीं लगता कि मैंने अपनी बेटी के हॉकर्स से सब्जियां खरीदने और इस वजह से हॉकर्स को परेशान न करने के लिए कुछ कहा था. मुझे नहीं पता कि मेरी बेटियां कहां से सब्जी खरीदती हैं! और वैसे भी यह कोई वजह नहीं है जिसके आधार पर हॉकर्स के साथ कैसा व्यवहार हो यह निश्चित किया जाना चाहिए. और आखिर में कहूंगा, शांतिनिकेतन में मेरे घर के बाहर कोई हॉकर नहीं हैं.’

इसी ईमेल में सेन ने यह भी बताया, ‘हालांकि मुझे यह जरूर लगता है कि कई बार विश्व भारती आम लोगों की सामान्य जिंदगी में कुछ ज्यादा ही दखल देता है, जिसका उदाहरण आम लोगों के आने-जाने वाले रास्तों-गलियों में दीवारें उठवाना है. मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैंने किसी अखबार में इस बारे में लिखा था.’

उन्होंने आगे कहा है, ‘मुझे यह भी याद पड़ता है कि एक बार मेरी मां, जो हमारे घर प्रतिचि में ही रहा करती थीं, ने हॉकर्स को हटाए न जाने के बारे में मदद की थी लेकिन वो हमारे घर के बाहर नहीं था (क्योंकि वहां कोई हॉकर नहीं हैं), ये पियर्सन पल्ली की बात है. और वैसे यह सब वीसी द्वारा कथित तौर पर किए गए अजीब दावे से अलग बात है.’

भट्टाचार्य को मिला कारण बताओ नोटिस

विश्व भारती यूनिवर्सिटी फैकल्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदीप्त भट्टाचार्य के ईमेल के बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा उन्हें मीडिया में यूनिवर्सिटी के आंतरिक पत्राचार को मीडिया में ले जाने के लिए कथित तौर पर यूनिवर्सिटी की आचार संहिता के उल्लंघन के लिए कारण बताओ नोटिस दिया गया है.

19 दिसंबर को भेजे गए नोटिस में प्रशासन ने भट्टाचार्य पर विश्वविद्यालय की अनुमति के बगैर (9 दिसंबर को वीसी चक्रवर्ती द्वारा अमर्त्य सेन की आलोचना के बारे में) मीडिया से बात करने का आरोप लगाया है.

इस बीच, बीते 24 दिसंबर को विश्व भारती प्रशासन ने पश्चिम बंगाल सरकार को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनके दर्जनों प्लॉट्स को गलत तरीके से दर्ज किया गया है और इसमें अनधिकृत तौर पर कब्जा करने वालों में प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का भी नाम शामिल है.

विश्व-भारती एस्टेट कार्यालय के अनुसार, उसने हाल ही में अवैध रहने वालों की एक सूची तैयार की थी, जिसमें सेन का नाम शामिल करते हुए कहा गया है कि उनका घर प्रतिचि लगभग 138 डेसीमल पर है, जबकि मूल लीज में उन्हें 125 डेसीमल जगह दी गई थी.

विश्वविद्यालय ने आरोप लगाया कि सेन ने कथित तौर पर विश्वविद्यालय द्वारा उनके पिता को दी गई कानूनी रूप से लीज की गई 125 डेसीमल जमीन के अलावा 13 डेसीमल जमीन पर कब्जा कर लिया है.

अमर्त्य सेन का जवाब

इसके बाद अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ से बात करते हुए सेन ने कहा कि शांतिनिकेतन की संस्कृति और विश्व भारती के वीसी में काफी अंतर है.

उन्होंने कहा, ‘शांतिनिकेतन में पले-बढ़े होने के कारण मैं यह कह सकता हूं कि शांतिनिकेतन की संस्कृति और वीसी, जिन्हें बंगाल में नियंत्रण बढ़ा रही दिल्ली की केंद्र सरकार द्वारा शक्तियां मिली हुई हैं, में काफी अंतर है. मैं ऐसे में भारतीय कानूनों का इस्तेमाल करना बेहतर समझूंगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें विश्व भारती यूनिवर्सिटी द्वारा बताया जा रहा है कि इसके वीसी बिद्युत चक्रवर्ती कैंपस की लीज दी गई जमीन से ‘अनधिकृत अतिक्रमण’ हटवाने में व्यस्त हैं. इस सूची में मेरा नाम भी है, जबकि आज तक विश्व भारती की तरफ से इसमें किसी भी तरह की अनियमितता के बारे में हमसे कभी कोई शिकायत नहीं की गई.’

उन्होंने यह स्पष्ट किया, ‘विश्व भारती की जमीन, जिस पर हमारा घर बना है, पूरी तरह से एक दीर्घकालिक लीज पर है और इसकी अवधि दूर-दूर तक समाप्त नहीं हो रही है. इसके अतिरिक्त कुछ जमीन मेरे पिता ने पूर्ण स्वामित्व के तौर पर खरीदी थी और यह मौजा सुरुल के तहत भूमि रिकॉर्ड में दर्ज की गई थी.’

ममता ने जताई नाराजगी

इस बीच बीते 25 दिसंबर को अमर्त्य सेन को पत्र लिखते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शांति निकेतन में उनकी पारिवारिक संपत्तियों को लेकर हुए हाल के घटनाक्रमों पर नाराजगी जताई थी.

बनर्जी ने सेन को लिखा कि एक बहन के तौर पर वे हमेशा उनके साथ हैं. उन्होंने कहा था कि कुछ लोगों ने शांतिनिकेतन में सेन की पारिवारिक संपत्तियों के बारे में पूरी तरह से आधारहीन आरोप लगाना शुरू कर दिया है.

मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि ऐसे आरोप इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि सेन भाजपा की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते हैं.

प्रदेश भाजपा ने दी प्रतिक्रिया

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा था कि नोबेल विजेता और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री को यह देखना चाहिए कि कुछ ताकतों द्वारा उनका राजनीतिक हित साधने के लिए इस्तेमाल न किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘हम उनसे वैचारिक रूप से असहमत हो सकते हैं, लेकिन हमारे मन में उनके प्रति सम्मान है. हम उनसे पश्चिम बंगाल में विकास विरोधी राजनीतिक ताकतों द्वारा इस्तेमाल नहीं होने का आग्रह करते हैं.’

मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक सेन

दुनियाभर में प्रतिष्ठित नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नीतियों के शुरू से आलोचक रहे हैं और सरकार को लगातार समाज के वंचित तबकों के लिए काम करने को सुझाव देते रहे हैं.

जुलाई 2018 में सेन ने कहा था कि भारत ने सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होने के बावजूद 2014 से गलत दिशा में लंबी छलांग लगाई है.

वहीं, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अगस्त, 2018 में सेन ने कहा था कि सभी गैर-सांप्रदायिक ताकतों को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए एक साथ आना चाहिए और वाम दलों को उनके साथ शामिल होने में ‘हिचकना’ नहीं चाहिए क्योंकि ‘लोकतंत्र खतरे में है.’

जनवरी 2019 में सेन ने कहा था कि कृषि कर्ज माफी उतनी गलत या मूर्खतापूर्ण नीति नहीं है जितनी की लोग सोचते हैं. दरअसल, केंद्र में सत्ता में आने के बाद भाजपा कृषि कर्ज माफी का पुरजोर विरोध करती रही है.

जनवरी 2019 में ही सेन ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान को ‘अव्यवस्थित सोच’ बताया था. उन्होंने कहा था कि इस फैसले के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं.

उसी महीने सेन ने यह भी कहा था कि कांग्रेस रोजगार पैदा करने में सफल नहीं साबित हुई है लेकिन मोदी सरकार ने हालात और बदतर बना दिए हैं.

जुलाई 2019 में कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान अमर्त्य सेन ने कहा था कि इन दिनों देश में जय श्री राम का नारा लोगों को पीटने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले इस तरीके से जय श्री राम का नारा नहीं सुना. मेरा मानना है कि इस नारे का बंगाली संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है.

इसके साथ ही इस साल जनवरी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्रों और शिक्षकों पर हमले के चार दिन बाद भी दिल्ली पुलिस द्वारा कोई गिरफ्तारी नहीं होने पर सेन ने दिल्ली पुलिस की भूमिका की आलोचना की थी. इस मामले में दिल्ली पुलिस अब तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है.

वहीं, अप्रैल में पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के साथ एक लेख लिखते हुए सेन ने कहा था कि अगर सही तरीके से देश के लोगों को भोजन नहीं मुहैया कराया जाता है और दिहाड़ी मजदूरों की बढ़ती समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है, तो देश में गरीबी बढ़ने और भुखमरी का खतरा बढ़ सकता है.

इसके बाद जून में सेन और कैलाश सत्यार्थी तथा अर्थशास्त्री कौशिक बसु सहित 225 से अधिक वैश्विक हस्तियों ने संयुक्त रूप से आह्वान किया था कि 2,500 अरब डॉलर के कोरोना वायरस वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार योजना पर सहमति के लिए जी-20 देशों की बैठक आयोजित करने की मांग की थी.

इससे पहले जुलाई 2017 में सेन की चर्चित किताब पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन’ में इस्तेमाल हुए कुछ शब्दों पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने आपत्ति जताते हुए कैंची चलाने की मांग की थी.

विश्व भारती में पहले भी उठ चुके हैं विरोध के स्वर

इससे पहले सितंबर में गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के वंशजों समेत कई जाने-माने लोगों ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विश्व भारती विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि शांतिनिकेतन के कई हिस्सों में ऊंची-ऊंची चारदीवारी तथा ‘जेल जैसा माहौल’ बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए ऐसी आशंका है कि टैगोर के सपनों के गांव श्रीनिकेतन को विश्व भारती से जोड़ने वाली तीन किलोमीटर लंबी सड़क भी जनता के लिए बंद कर दी जाएगी और उसके स्थान पर एक नई सड़क बना दी जाएगी.

बांग्ला भाषा में लिखे इस पत्र में कहा गया था कि इस पुराने मार्ग से लगते हिस्से पर आठ से नौ फुट ऊंची इस दीवार का निर्माण पूरा होने को है, जहां पर अमर्त्य सेन, क्षितिमोहन सेन और नंदलाल बोस जैसी हस्तियों के आवास भी हैं.

पत्र में ये भी कहा गया है कि एक बार यह दीवार पूरी हो जाती है तो यह सड़क श्रीपल्ली, सिमांत पल्ली, पियर्सन पल्ली, एंड्रयूज़ पल्ली, डियर पार्क, बिनॉय भवन और श्रीनिकेतन के निवासियों की की पहुंच से दूर हो जाएगी और शांतिनिकेतन के इतिहास और विरासत का एक हिस्सा खो जाएगा.

विश्वविद्यालय के व्यवहार पर बुद्धिजीवियों ने रोष जताया

विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों ने रविवार को विश्व भारती विश्वविद्यालय की जमीन पर कथित अवैध कब्जे के मामले में अमर्त्य सेन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए आयोजित विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया.

साथ ही बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा सेन के साथ किए गए व्यवहार को ‘तानाशाही एवं निरंकुश’ करार दिया.

इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाने के लिए कवि जॉय गोस्वामी एवं सुबोध सरकार, गायक कबीर सुमन, चित्रकार जोगेन चौधरी और रंगमंच से राजनीति में आए ब्रत्या बसु समेत अन्य कई हस्तियां ललित कला अकादमी के परिसर में एकत्र हुईं.

इन लोगों ने नारे लिखी तख्तियां थामी हुई थीं, जिन पर लिखा था, ‘भाजपा द्वारा बंगालियों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे, अमर्त्य सेन का अपमान बंगालियों का अपमान है.’

गोस्वामी ने कहा, ‘मैं अमर्त्य सेन जैसी शख्सियत के साथ किए गए विश्व भारती के तानाशाही एवं निरंकुश व्यवहार का विरोध करता हूं. हम यहां अपना विरोध दर्ज कराने एवं सेन के प्रति समर्थन प्रदर्शित करने एकत्र हुए हैं.’

बसु ने आरोप लगाया कि भाजपा हमेशा से स्वतंत्र विचार व्यक्त करने वालों को निशाना बनाती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)