धर्मांतरण रोधी क़ानून धर्मनिरपेक्षता, निजता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन: फ़ैज़ान मुस्तफ़ा

जाने-माने विधि विशेषज्ञ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने कहा कि धर्मांतरण रोधी क़ानून हिंदुत्व के विचार, जो हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है, को भी ख़त्म करता है. हमारे यहां स्वयंवर का प्रावधान था, उसमें दुल्हन को अपना पति चुनने की आज़ादी थी. अब हम कह रहे हैं कि उन्हें कोई बेवकूफ़ बना सकता है, वो अपने फ़ैसले नहीं ले सकती हैं.

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फैजान मुस्तफा. (फोटो साभार: फेसबुक)

जाने-माने विधि विशेषज्ञ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने कहा कि धर्मांतरण रोधी क़ानून हिंदुत्व के विचार, जो हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है, को भी ख़त्म करता है. हमारे यहां स्वयंवर का प्रावधान था, उसमें दुल्हन को अपना पति चुनने की आज़ादी थी. अब हम कह रहे हैं कि उन्हें कोई बेवकूफ़ बना सकता है, वो अपने फ़ैसले नहीं ले सकती हैं.

फैजान मुस्तफा. (फोटो साभार: फेसबुक)
फैजान मुस्तफा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: देश के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने धर्मांतरण रोधी कानून बनाया है, जिसके विभिन्न प्रावधानों को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों एवं राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय है. इस कानून को लेकर जाने-माने विधि विशेषज्ञ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा से बातचीत

देश के तीन राज्यों ने धर्मांतरण रोधी कानून बनाया है, जिस पर अलग-अलग तबकों की अलग-अलग राय है. आप इसे संवैधानिक रूप से कितना व्यावहारिक मानते हैं?

यह कानून धर्मनिरपेक्षता की मूल अवधारणा के खिलाफ है, जो संविधान का बुनियादी ढांचा मानी जाती है. इसके साथ ही यह अपना धर्म और अपना जीवनसाथी चुनने के प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार के खिलाफ भी है.

यह न केवल व्यक्तिगत फैसले लेने की निजी स्वतंत्रता का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन करता है, बल्कि व्यक्ति के सम्मान को भी कमतर करता है. यह कानून निजता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है.

धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर बनाए गए इस कानून से सामाजिक ढांचे पर क्या प्रभाव पड़ेगा, तथाकथित लव जिहाद की शब्दावली और भारतीय समाज के संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में आप इसे कैसे देखते हैं?

मुझे अफसोस यह है कि संबंधित कानून हिंदुत्व के विचार, जो हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है, उसको भी खत्म करता है. हमारे यहां स्वयंवर का प्रावधान था, उसमें दुल्हन को अपना पति चुनने की आजादी थी. अब हम कह रहे हैं कि उन्हें कोई बेवकूफ बना सकता है, वो अपने फैसले नहीं ले सकती हैं.

मेरी समझ में ये किसी ‘लव जिहाद’ या किसी समुदाय को निशाना बनाने का मामला नहीं, ये हिंदू महिलाओं की स्वतंत्रता आदि के खिलाफ कानून है और उन्हें इसका सबसे ज्यादा विरोध करना चाहिए. हिंदुओं के एक वर्ग के साथ-साथ मुस्लिम उलेमा भी नहीं चाहते कि दूसरे धर्म में शादी हो.

धर्मांतरण के मुद्दे पर तीन राज्यों द्वारा बनाए गए इस कानून के संवैधानिक एवं कानूनी पहलू क्या हैं?

यह संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है. अगर कोई व्यक्ति विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करता है, यह उसकी पसंद है. कोई किसी अन्य कारण से धर्म परिवर्तन करता है, तब यह उसकी पसंद है. और कोई व्यक्ति फिर से अपने पहले धर्म में लौटना चाहता है, तब भी यह उसकी पसंद है.

हिंदू विवाह कानून सहित सभी धर्म के पर्सनल कानूनों में यह बात है कि अगर किसी भी तरह के धोखे से या पहचान छिपा कर शादी की गई है तो वो शादी रद्द की जा सकती है. इस बारे में कानून है और भारतीय दंड संहिता में भी यह प्रावधान है.

कानून में धर्म परिवर्तन के इरादे के बारे में सक्षम अधिकारी को 30-60 दिन पहले अग्रिम जानकारी देने की बात है, क्या इसका दुरुपयोग किया जा सकता है?

धर्म परिवर्तन करना है तो नए बने कानून के तहत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जिलाधिकारी के पास दो महीने पहले आवेदन देना होगा, वे इसकी जांच करेंगे और फिर आपको इजाजत मिलेगी. यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां धर्म आपका निजी मामला है.

संविधान में निजी स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. पुटुस्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार में आप क्या खाते-पीते हैं, किस धर्म को मानते हैं, इसे आपके अधिकार के दायरे में रखा है. इसमें राज्य या समाज का हस्तक्षेप नहीं हो सकता.

तीनों राज्यों में धर्मांतरण रोधी कानून में अलग-अलग सजा का प्रावधान है, जो एक से 10 साल के बीच है, इस पर क्या कहेंगे?

नए कानून में धर्मांतरण को लेकर दंडात्मक प्रावधान अपने आप में स्पष्ट करते हैं कि ये मनमाने ढंग से संबंधित राज्यों की सुविधा से जुड़े हैं. ये दंडात्मक प्रावधान भारतीय दंड संहिता की भावना के प्रतिकूल हैं.

ऐसे समय जब देश इतनी चुनौतियों से जूझ रहा है तब ऐसे विषयों को तूल देना ठीक नहीं है. कोई शादी के लिए धर्म परिवर्तन करे या बिना किसी वजह से धर्म परिवर्तन करे, ये उसकी इच्छा है. इन्हें इसी रूप में लेना चाहिए. यह संविधान को दोबारा लिखने जैसा है.