हिंदू दक्षिणपंथी और सिख संगठनों के विरोध के बाद निर्यात मीट मैनुअल से ‘हलाल’ शब्द हटाया

उत्पादों के ‘हलाल’ प्रमाणन के ख़िलाफ़ हिंदू दक्षिणपंथी समूहों और सिख संगठनों द्वारा सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा था, जिसके बाद वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि-निर्यात संभालने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने यह क़दम उठाया है. संस्था की ओर से कहा गया है कि इस क़दम के पीछे सरकार का कोई हाथ नहीं है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

उत्पादों के ‘हलाल’ प्रमाणन के ख़िलाफ़ हिंदू दक्षिणपंथी समूहों और सिख संगठनों द्वारा सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा था, जिसके बाद वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि-निर्यात संभालने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने यह क़दम उठाया है. संस्था की ओर से कहा गया है कि इस क़दम के पीछे सरकार का कोई हाथ नहीं है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: देश में उत्पादों के ‘हलाल’ प्रमाणन के खिलाफ हिंदू दक्षिणपंथी समूहों और सिख संगठनों द्वारा सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे कैंपेन के बीच कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने अपने ‘रेड मीट मैनुअल’ से इस शब्द को हटा दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एपीईडीए ने यह भी साफ किया कि ‘हलाल’ मीट के संबंध में भारत सरकार की तरफ से कोई शर्त नहीं लगाई गई है.

उसने कहा, ‘यह आयात करने वाले अधिकतर देशों/आयातकों की आवश्यकता है. ‘हलाल’ प्रमाणन एजेंसियों को सीधे संबंधित देशों द्वारा मान्यता प्राप्त है. किसी भी सरकारी एजेंसी की इसमें कोई भूमिका नहीं है.’

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि-निर्यात संभालने वाली एपीईडीए के पहले के रेड मीट मैनुअल में कहा गया था, ‘इस्लामी देशों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ‘हलाल’ पद्धति के अनुसार जानवरों का कड़ाई से वध किया जाता है.’

हालांकि, एपीईडीए के नए रेड मीट मैनुअल में कहा गया है, ‘जानवरों का वध देश/आयातक के आयात की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है.’

इसके साथ ही उसने इन लाइनों को भी हटा दिया है जिसमें कहा गया था, ‘इस्लामिक शरीयत के सिद्धांतों के अनुसार मान्यता प्राप्त और पंजीकृत इस्लामी निकाय की निगरानी में जानवरों को ‘हलाल’ प्रणाली से मारा जाता है. ‘हलाल’ के लिए प्रमाण-पत्र पंजीकृत इस्लामी निकाय के प्रतिनिधि द्वारा जारी किया जाता है, जिसकी देखरेख में आयात करने वाले देश में मीट की जरूरत के हिसाब से जानवरों को मारा जाता है.’

सूत्रों ने कहा कि पुराने मैनुअल में ‘हलाल’ शब्द के उपयोग के कारण ऐसी धारणा बन रही थी कि यह सभी मांस निर्यात के लिए अनिवार्य था, इसलिए बदलाव किया गया.

दरअसल, इस्लामिक देश केवल ‘हलाल’ प्रमाणित मांस के आयात की अनुमति देते हैं और भारत इनमें से कई देशों को भैंस का मांस निर्यात करता है.

साल 2019-20 में भारत ने 22,668 करोड़ रुपये का भैंस का मांस निर्यात किया था, जिसमें मुख्य आयातक वियतनाम (7,569.01 करोड़ रुपये), मलेशिया (2,682.78 करोड़ रुपये), मिस्र (2,364.89 करोड़ रुपये), इंडोनेशिया (1,651.97 करोड़ रुपये), सऊदी अरब (873.56 करोड़ रुपये), हांगकांग (857.26 करोड़ रुपये), म्यांमार (669.20 करोड़ रुपये) और संयुक्त अरब अमीरात (604.47 करोड़ रुपये) थे. वियतनाम और हांगकांग को किए गए अधिकतर निर्यातों को चीन भेज दिया गया था.

एपीईडीए मैनुअल के आधार पर सरकार पर ‘हलाल’ मीट को बढ़ावा देने का आरोप लगाने वाले दक्षिणपंथी समूहों ने रेड मीट मैनुअल में हुए बदलाव को सही दिशा में पहला कदम बताया.

हालांकि, ‘हलाल’ प्रमाणन के खिलाफ प्रमुख अभियानकर्ताओं में से एक हरिंदर सिक्का ने कहा, ‘यह केवल एक कदम है. हम अपना अभियान जारी रखेंगे. ‘हलाल’ मीट हम सिखों के लिए हराम (गैरकानूनी) है.’

सिख संगठनों ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी से भी एयर इंडिया की उड़ानों में ‘हलाल’ मांस परोसने से रोकने के लिए संपर्क किया है.

सिक्का ने दावा किया कि ‘हलाल’ प्रमाणन ने अन्य समुदायों के लिए नौकरियों को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि उन्हें बूचड़खानों द्वारा ‘हलाल’ आवश्यकताओं का हवाला देते हुए मांस से दूर रखा जाता है.

इस व्यापार को हलालनॉमिक्स कहते हुए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के विनोद बंसल ने कहा, ‘देश में हलालनॉमिक्स को रोकना चाहिए. इसने पूरी अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर लिया है. ‘हलाल’ प्रमाणीकरण को हर चीज से हटा दिया जाना चाहिए. यदि ‘हलाल’ प्रमाणीकरण है, तो एक झटका प्रमाण-पत्र (भी) होना चाहिए.’

बता दें कि इस साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने ‘अखंड भारत मोर्चा’ की तरफ से दायर जनहित याचिका को ‘शरारतपूर्ण’ करार देते हुए खाने के उद्देश्य से जानवरों को ‘हलाल’ करने की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था.

पीठ ने कहा था, ‘अदालत तय नहीं कर सकती कि कौन शाकाहारी हो सकता है या मांसाहारी हो सकता है. जो लोग ‘हलाल’ मांस खाना चाहते हैं वे ‘हलाल’ मांस खा सकते हैं. जो लोग ‘झटका’ मांस खाना चाहते हैं वे झटका मांस खा सकते हैं.’

पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि कल एक और याचिका दायर की जा सकती है जिसमें कहा जाएगा कि किसी को मांस नहीं खाना चाहिए.

याचिका में पशुओं के प्रति अत्याचार निवारण कानून 1960 के प्रावधानों का जिक्र किया गया था और अदालत से आग्रह किया गया था कि जानवरों को काटने का ज्यादा दर्दनाक तरीका ‘हलाल’ रोका जाए.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था, ‘हलाल’ की तकनीक विशिष्ट समुदाय (मुस्लिम) के निपुण लोग करते हैं. इसमें जानवर के शरीर से खून का अंतिम कतरा निकलने तक उसका जिंदा रहना जरूरी होता है. यह ‘झटका’ की तुलना में काफी दर्दनाक है. झटका में जानवर के रीढ़ पर प्रहार किया जाता है, जिसमें उसकी तुरंत मौत हो जाती है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq