भंडारा अग्निकांडः बनने के बाद से ही बिना फायर एनओसी के चल रहा था अस्पताल

बीते शनिवार को भंडारा के ज़िला अस्पताल में आग लगने से दस नवजात बच्चों की मौत हो गई थी. अब सामने आया है कि साल 1981 में अस्पताल की स्थापना के बाद से ही स्थानीय दमकल विभाग से अनिवार्य अनापत्ति प्रमाणपत्र यानी एनओसी नहीं लिया गया था.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

बीते शनिवार को भंडारा के ज़िला अस्पताल में आग लगने से दस नवजात बच्चों की मौत हो गई थी. अब सामने आया है कि साल 1981 में अस्पताल की स्थापना के बाद से ही स्थानीय दमकल विभाग से अनिवार्य अनापत्ति प्रमाणपत्र यानी  एनओसी नहीं लिया गया था.

भंडारा अस्पताल के एसएनसीयू यूनिट में आग से झुलसे उपकरण और फर्नीचर के अवशेष (फोटोः पीटीआई)
भंडारा अस्पताल के एसएनसीयू यूनिट में आग से झुलसे उपकरण और फर्नीचर के अवशेष (फोटोः पीटीआई)

मुंबईः महाराष्ट्र का भंडारा जिला अस्पताल, जहां बीते नौ जनवरी को आग लगने से दस नवजात बच्चों की मौत हुई थी. अब पता चला है कि अस्पताल के पास अपनी स्थापना की शुरुआत से ही फायर अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) नहीं था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अस्पताल की स्थापना 1981 में हुई थी तब से ही अस्पताल ने स्थानीय दमकल विभाग से अनिवार्य एनओसी नहीं लिया था.

2015 में जब अस्पताल का विस्तार किया गया और सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू), मेडिकल स्टोर और पोषण पुनर्वास केंद्र बनाए गए, तब भी भंडारा नगर परिषद से जरूरी फायर एनओसी नहीं ली गई.

वरिष्ठ जिला अधिकारियों का कहना है कि अस्पताल का निर्माण पूरा होने के बाद पीडब्ल्यूडी ने इसे बिना ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी) के ही सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग को सौंप दिया था.

इतना ही नहीं 2015 से कायाकल्प योजना के तहत साल 2016-17 में सिर्फ एक फायर ड्रिल ही हुई.

बता दें कि एक छह सदस्यीय समिति नौ जनवरी को अस्पताल के एसएनसीयू में लगी आग में दस नवजात बच्चों की मौत के मामले की जांच कर रही है. इस समिति में स्वास्थ्य और दमकल विभाग के अधिकारियों समेत इलेक्ट्रिकल इंजीनियर शामिल हैं.

आग लगने की वजह से एसएनसीयू का ऑक्सीजन पाइप और इलेक्ट्रिक वायरिंग सिस्टम पिघल गए थे. एसी सिस्टम और एक रेडियंट वॉर्मर भी जलकर खाक हो गए थे.

जांच अधिकारियों को संदेह है कि या तो आग आउटबॉर्न सेक्शन के रेडियंट वॉर्मर में लगी होगी या फिर इलेक्ट्रिक वायरिंग में क्योंकि दोनों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है.

चार मंजिला जिला अस्पताल में 482 बेड हैं. पिछले साल की शुरुआत में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए और 300 बेड लगाए गए थे.

एक स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है, पूरी इमारत का वायरिंग सिस्टम बहुत पुराना है. हमने इस मामले को कई बार प्रशासन के समक्ष उठाया.

पिछले नवंबर भंडारा जिले के स्वास्थ्य कार्यालय ने भंडारा नगर परिषद को पत्र लिखकर फायर ऑडिट करवाने को कहा था. इससे पहले 2018 में भी फायर ऑडिट के आग्रह के लिए एक पत्र भेजा गया था.

बता दें कि इससे पहले पता चला था कि अस्पताल का 1.52 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित होने वाला फायर सेफ्टी सिस्टम का प्रस्ताव बीते सात महीने से राज्य सरकार के पास लंबित पड़ा है और अस्पताल में फायर ऑडिट नहीं करवाया गया था.

2015 में बने अस्पताल के एसएनसीयू में साल 2016-2017 में सिर्फ एक बार मॉक फायर ड्रिल हुई.

मालूम हो कि महाराष्ट्र के भंडारा के जिला अस्पताल के सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में बीते शनिवार तड़के आग लगने से दस नवजात बच्चों की मौत हो गई थी.

दुर्घटना के समय वॉर्ड में 17 बच्चे भर्ती थे, जिनमें से बस सात बच्चों को बचाया जा सका. मृतक शिशुओं की उम्र कुछ दिनों से कुछ महीनों के बीच बताई गई थी.

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