‘सरकार के नए कृषि बाज़ार में क्या बेचें, जब आवारा पशुओं से हमारी फसल बचती ही नहीं’

ग्राउंड रिपोर्ट: केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों में दावा किया गया है कि इससे किसानों को नया कृषि बाज़ार मिलेगा, वहां वे मनमुताबिक़ फसल बेच सकेंगे. हालांकि बुंदेलखंड के किसानों का कहना है कि क़ानून से क्या होगा, जब आवारा जानवरों के बर्बाद कर देने के कारण बेचने को फसल ही नहीं बचेगी.

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ग्राउंड रिपोर्ट: केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों में दावा किया गया है कि इससे किसानों को नया कृषि बाज़ार मिलेगा, वहां वे मनमुताबिक़ फसल बेच सकेंगे. हालांकि बुंदेलखंड के किसानों का कहना है कि क़ानून से क्या होगा, जब आवारा जानवरों के बर्बाद कर देने के कारण बेचने को फसल ही नहीं बचेगी.

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खेत से आवारा पशुओं को भगाता किसान. (फोटो: द वायर)

बांदा: रात के करीब 10 बज चुके हैं, ऊपर आसमान में तारे एकदम साफ दिखाई दे रहे है, सनसनाती हवाएं चल रही है और आस-पास एकदम सन्नाटा पसरा हुआ है.

इसी बीच गांव से करीब दो किलोमीटर दूर अपने खेत के एक कोने में फूलचंद ने कांपते हुए आग जलाई और गीली मिट्टी से सने अपने पैरों को गर्म करने लगे. कुछ देर पहले ही करीब 50 पशुओं का एक झुंड उनके सरसों के खेत में आया था, जिसे भगाने के लिए उन्हें पानी से भरे खेत में उतरना पड़ा था.

आवारा पशुओं को रोकने के लिए उन्होंने अपने खेत में ही उचान पर एक छोटी-सी झोपड़ी बना रखी है, जिसमें रखवाली करते हुए अपनी रात बिताते हैं. लेकिन सर्द हवाएं सरपत को पार कर उनके शरीर को बहुत लगती हैं.

वे दांत किटकिटाते हुए कहते हैं, ‘भाई साहब पिछली बार बहुत फसल बर्बाद हुई थी, घर के खाने का भी इंतजाम नहीं हो सका, इसलिए इस बार दिन-रात लगा हूं कि कम से कम खाने के लिए फसल बच जाए.’

फूलचंद उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर अतरी मजरा गांव के निवासी है. वे दूसरे का खेत पट्टे (अधिया) पर लेकर खेती करते हैं, जो परिवार के जीवन-यापन का एकमात्र जरिया है. पशुओं को रोकने के लिए उन्होंने खेत को कंटीले तारों से घेर रखा है, लेकिन इसके बावजूद ढेरों जानवर इसमें घुस आते हैं.

इस बार उन्होंने दस बीघे खेत में चना, गेहूं, सरसों और मसूर की बुवाई की है. लेकिन नाउम्मीदी भरे लहजे में कहते हैं, ‘इनमें से कुछ होगा नहीं, बहुत डाड़ (घाटा) पड़ता है. दूध देने वाले पशुओं को छोड़कर अन्य को कोई बांधता नहीं है. एक तो यहां पानी नहीं है, हम पहले ही भगवान भरोसे हैं, जो भी थोड़ा पैदावार होने की आस होती है, उसे गाय-भैंस चर ले रहे हैं.’

फूलचंद कहते हैं कि इस क्षेत्र में उनके जैसे किसान अपनी उपज को बेचने का सोच भी नहीं सकते हैं, यहां खाने का इंतजाम हो जाए यही बहुत है.

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आवारा जानवरों द्वारा बर्बाद की गई सरसों की फसल. (फोटो: द वायर)

उन्हें केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों की जानकारी नहीं थी, हालांकि इसके प्रावधानों के बारे में बताने पर वे कहते हैं, ‘हां, ये सुना है कि दिल्ली में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार चाहे मंडी के भीतर या मंडी के बाहर बेचने के लिए कानून लाए, हमारी फसल तो आवारा पशुओं के कारण बचती ही नहीं है, हम क्या ही बेच सकेंगे!’

ये महज किसी एक किसान की पीड़ा नहीं है, बल्कि साल 2017 में योगी सरकार द्वारा कड़े गोहत्या कानून लाने के बाद से ही बुंदेलखंड का पूरा क्षेत्र आवारा पशुओं की समस्या से पीड़ित है.

किसी भी गांव में घुसते ही लोग अपनी ये तकलीफ बयां करने लगते हैं. इस जगह की अब ये प्राथमिक पीड़ा बन चुकी है. इस समस्या के समाधान के लिए जनवरी 2019 में प्रदेश सरकार ने अस्थाई गोशालाएं स्थापित की थीं. हालांकि फंड की कमी के चलते इनकी स्थिति बेहद दयनीय है.

यही वजह है कि पिछले महीने बांदा जिले के कई पंचायत प्रमुखों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि अप्रैल 2020 के बाद से उन्हें गो कल्याण के लिए कोई फंड नहीं दिया गया है, जिसके कारण कई पशुओं की भूख से मौत हुई हैं.

प्रधानों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि सरकार पैसे नहीं देती है तो उन्हें गायों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में इस कार्य के लिए 613 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष के लिए ऐसा कोई राशि फिलहाल तय नहीं की गई है.

साल 2019 के शुरूआत में सरकार द्वारा किए गए वादे के मुताबिक एक गाय की देखभाल के लिए एक दिन में 30 रुपये दिए जाएंगे.

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किसानों को ऐसे तारों से अपने खेत को घेरना पड़ता है. (फोटो: द वायर)

बांदा जिले में गोधनी गांव के रहने वाले भगवान प्रजापति आजकल काफी बेचैन हैं. पिछले साल उन्होंने बुवाई के लिए कर्ज लिया था, लेकिन पानी की व्यवस्था न होने और आवारा पशुओं द्वारा फसल बर्बाद करने के कारण वे इसकी भरपाई भी नहीं कर पाए.

इस बार उन्होंने अतिरिक्त पैसे खर्च कर अपने खेत को तार से घेर दिया है, दिन-रात रखवाली भी करते हैं लेकिन फिर भी वे इस समस्या से निजात नहीं पा रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘सिंचाई की कोई सुविधा इस गांव में नहीं है. नहर को बने कम से कम 20 साल से ऊपर हो गया है, लेकिन वो सूखी पड़ी हुई है. जो सरकारी ट्यूबवेल है वो बंद पड़ा हुआ है. हम कुछ निजी पंपसेट के जरिये 300 रुपये प्रति बीघा खर्च कर सिंचाई करते हैं. इसके अलावा महंगे रेट वाले खाद, जुताई, बीज डालते हैं. इन सब के बाद अगर थोड़ा बहुत उत्पादन हुआ तो उसे गोरू (आवारा पशु) चर के खत्म कर देते हैं. सरकार कोई कानून लाने से पहले इस क्षेत्र में अन्ना जानवरों की समस्या को खत्म करे.

प्रजापति ने ढाई बीघे खेत में चना लगाया था, फसल अच्छी तरह उगी थी लेकिन पिछली रात करीब 200 पशुओं के झुंड ने चने के छोटे पौधों को खाकर खेत को समतल कर दिया.

उन्होंने इस खेत में अब तक करीब 10 हजार रुपये की लागत लगाई थी. वैसे तो ये फसल दोबारा उग आएगी, लेकिन अब पैदावार नाममात्र होगी.

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कटीली झाड़ियां और तार की मदद से बनाई गई एक गोशाला. (फोटो: द वायर)

किसान बताते हैं, ‘यहां गोशाला तो है, लेकिन वो इतना छोटा है कि सभी जानवर नहीं आ पाते हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण दिन में पशु जंगलों में छिप जाते हैं और रात में आकर हमारे खेत बर्बाद कर देते हैं. ये सरकार करती कुछ और है और कहती कुछ और है. कानून बनाने से क्या होगा, हमारे पास बेचने लायक कुछ तो उत्पादन होना चाहिए.

गांव के ही एक अन्य किसान शिवगोपाल का ज्यादातर समय अब खेत की रखवाली करते हुए बीतता है. उन्होंने अपने छह बीघा खेत में गेहूं लगाया है और इसमें अब तक करीब 25,000 रुपये खर्च कर चुके हैं.

उन्होंने बताया, ‘हम रात में जागते तो है लेकिन कितना ही जाग पाएंगे, दो दिन, पांच दिन, दस दिन, कभी न कभी तो आंख लग जाती है, तब तक सब खत्म हो जाता है. फसलों को तो चरना छोड़िए ही, जिधर से ये झुंड निकलते हैं वहां के सारे खेत एकदम सपाट हो जाते हैं.’

उन्होंने कहा कि गोशाला की स्थिति बहुत खराब है, यहां पर्याप्त भूसा-चारा नहीं है और पतले तारों से इसकी बाउंड्री बनाई गई है जिसे पशु तोड़कर भाग जाते हैं.

इस गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर तिंदवारी थानाक्षेत्र में स्थित अरसौड़ा गांव के निवासी रामसनेही चौधरी कहते हैं कि जब से योगी आदित्यनाथ कि सरकार आई है, लोग जोन्हरी (ज्वार) और अरहर की दाल के लिए तरस गए हैं. उन्हें पशुओं द्वारा साल-दर-साल फसल बर्बादी का नुकसान झेलना पड़ रहा है.

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खेत के पास झोपड़ी बनाकर रखवाली करते एक किसान. (फोटो: द वायर)

उन्होंने कहा, ‘जब से ये आवारा पशु आने लगे हैं, ज्वार की रोटी, अरहर की दाल, मूंग की दाल के लिए छोटे से बड़ा कास्तकार तक तरस गया है. इसी के चलते बुंदेलखंड में भुखमरी चल रही है.’

नए कृषि कानूनों को लेकर चौधरी अनभिज्ञता जाहिर करते हैं, हालांकि उन्होंने कहा कि जब तक सरकार ये तय नहीं करेगी कि कोई भी सरकारी रेट से कम पर न खरीदे, किसानों को इनसे कोई फायदा नहीं होने वाला है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानून- किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020- लेकर आई है, जिसका देशव्यापी विरोध हो रहा है.

सरकार का दावा है कि वे इन कानूनों के जरिये किसानों के लिए नए कृषि बाजार की स्थापना कर रहे हैं और किसान मंडियों के बाहर भी व्यापारी से मोल-भाव कर अपने उत्पाद बेच सकता है.

हालांकि बुंदेलखंड के किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों से आवारा पशुओं के चलते उनके फसलों की इतनी बर्बादी हो रही है कि उनके पास बेचने लायक उत्पादन होता ही नहीं है. नतीजन सरकार चाहे जितने कानून लाकर कृषि बाजार बनाने का दावा करे, यहां के लोगों के लिए पहले आवारा पशुओं की समस्या का समाधान जरूरी है, फिर वे आगे किसी चीज के बारे में सोच पाएंगे.

इन पशुओं को रखने के लिए क्षेत्र के गांवों में बनाई गई गोशालाओं की स्थिति इस समस्या के प्रति सरकार एवं प्रशासन की गंभीरता की बानगी दर्शाते हैं.

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बुंदेलखंड की एक अस्थाई गोशाला. (फोटो: द वायर)

चित्रकूट से करीब 50 किलोमीटर दूर खण्डेहा में ऐसी ही एक अस्थाई गोशाला बनाया गया है. वैसे तो ये मंडी क्षेत्र है, लेकिन करोड़ों रुपये खर्च कर इसे शुरू करने में असफल रही सरकार ने इसे अब गोशाला बना दिया है.

पूरे परिसर में गोबर फैला हुआ दिखाई देता है, मक्खियां भिनभिना रही हैं, पशुओं के खाने का कोई स्थान (जैसे नांद वगैरह) नहीं बनाया गया है, ज्यादातर पुआल (पराली) ही उनका एकमात्र भोजन है.

इनकी रखवाली करने वाले बाबूलाल सिंह इस बात को लेकर परेशान है कि यहां कि सफाई के लिए कोई व्यक्ति आता नहीं है, जिसके कारण पशुओं को अधिकतर समय खड़े ही रहना पड़ता है. इसके अलावा इनकी बीमारी जांचने के लिए डॉक्टर्स की उचित व्यवस्था नहीं है.

सिंह ने बताया, ‘यहां 360 पशु हैं. उन्हें खिलाने-पिलाने का सारा काम करता हूं. लेकिन इनमें से कई बीमार हैं, कभी-कभार कोई डॉक्टर आता है तो एक-दो को ऐसे ही चेक करके निकल जाता है. इलाज नहीं मिलने के कारण कई पशुओं की मौत भी हो चुकी है. इन्हें ऐसे देखने में बहुत पीड़ा होती है, लेकिन हम क्या कर सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर इनमें से कोई निकलकर बाहर भाग जाता है तो लोग बहुत पीटते हैं. कई बार धारदार हथियार कुल्हाड़ी वगैरह से पैर काट देते हैं. ऐसे ही तड़पते-तड़पते इनकी मौत हो जाती है.’

उत्तर प्रदेश सरकार पशुधन विभाग के मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने पिछले साल 24 फरवरी 2020 को विधानसभा में बताया था कि सिर्फ 2019 में ही सरकार द्वारा स्थापित गोशालाओं में 9,261 गोवंशों की मौत हुई थी. हालांकि चौधरी ने दावा किया कि ये स्वाभाविक मौतें थी, इसलिए किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई. 

आवारा पशुओं द्वारा फसल बर्बाद करने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘ये आंकड़े संकलित नहीं किए जाते हैं.’

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कुल्हाड़ी से हमले से घायल अचेत पड़ी एक गाय. (फोटो: द वायर)

साल 2012 की पशुगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 205.66 लाख गोवंश हैं. इसके अलावा साल 2019 में की गई पशुगणना के मुताबिक राज्य में 11.85 लाख छुट्टा पशु हैं. 

वहीं पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 24.07.2019 तक प्रदेश में 4033 अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल, 150 गो संरक्षण केंद्र, 130 कान्हा गोशाला और 393 कांजी हाऊस में 2,74,691 गोवंश रखे गए थे, जो कि 2020 के अंत तक बढ़कर 5.33 लाख हो गए हैं.

इस संबंध में पूछने पर क्षेत्र के लोग एक जैसा जवाब देते हैं, ‘गो-हत्या पर बैन लगाने से कोई लाभ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. ये पहले भी मरते थे और अब गोशाला में खाने-पीने के बिना मर ही रहे हैं.’