प्रधानमंत्री मोदी के परिवारवाद विरोधी अभियान में भाजपा नेता क्यों शामिल नहीं हैं

विवेकानंद जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में परिवारवाद पर निशाना साधते हुए इसे ख़त्म करने के लिए युवाओं को राजनीति में आने को कहा. हालांकि ऐसा कहते हुए उन्होंने भाई-भतीजावाद की भाजपाई परंपरा को आसानी से बिसरा दिया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

विवेकानंद जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में परिवारवाद पर निशाना साधते हुए इसे ख़त्म करने के लिए युवाओं को राजनीति में आने को कहा. हालांकि ऐसा कहते हुए उन्होंने भाई-भतीजावाद की भाजपाई परंपरा को आसानी से बिसरा दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे उदार एवं आधुनिक विचारों वाले भारतीय संतों में शुमार स्वामी विवेकानंद की जयंती पर भाई-भतीजावाद की राजनीति के आखिरी सांसें गिनने का दावा, तो किया मगर उसे जिंदा रखने में अपनी और भाजपा की सक्रियता को आसानी से बिसरा बैठे.

यह दावा करते हुए न जाने कैसे प्रधानमंत्री अपने प्रमुख मंत्रियों पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद, धर्मेंद्र प्रधान और अनुराग ठाकुर के राजनीति में वंशवादी अस्तित्व को भूल गए.

ताज्जुब ये कि दादी विजयाराजे और पिता माधवराव की वंशवादी विरासत के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा से राज्यसभा में निर्वाचित करवाना भी उन्हें याद नहीं रहा.

शायद ज्योतिरादित्य के दलबदल से मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले से चर्चित शिवराज चौहान की सरकार बनाने में कामयाबी के उत्साह में ये हकीकत उनकी आंखों से ओझल हो गई!

प्रधानमंत्री ने वंशवादियों पर ये कहकर प्रहार किया, ‘अभी भी ऐसे लोग हैं जो केवल राजनीति में अपने परिवार के रुख को बचाने के लिए राजनीति करना चाहते हैं. इस तरह की राजनीति में नेशन फर्स्ट दूसरे नंबर पर रहता है और माय फैमिली एंड माय बेनिफिट्स को अपनी पहली प्राथमिकता के रूप में रखती है. भारत के युवाओं को परिवार-आधारित राजनीति की इस प्रथा को समाप्त करने के लिए राजनीति में प्रवेश करने की आवश्यकता है. हमारी लोकतांत्रिक प्रथाओं को बचाना महत्वपूर्ण है.’

इसके बावजूद उन्हें ज्योतिरादित्य की दो बुआ वसुंधरा और यशोधरा तथा वसुंधरा के बेटे दुष्यंत का भाजपा में प्रमुख पदों पर होना भी वंशवाद नहीं लगा?

जबलपुर से भाजपा सांसद रहीं जयश्री बनर्जी के दामाद जगतप्रकाश नड्डा को भाजपा अध्यक्ष बनाना भी प्रधानमंत्री को नहीं अखर रहा.

राजस्थान के राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के बेटे राजवीर के सांसद और उनके पोते संदीप के यूपी में विधायक होने से तीन पीढ़ियों को भाजपा की छाती पर झेलना भी मोदी को वंशवाद नहीं लगा!

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के कर्नाटक भाजपा उपाध्यक्ष बेटे बीवी विजयेंद्र और शिवमोगा से लोकसभा सदस्य दूसरे बेटे बीवाई राघवेंद्र भी प्रधानमंत्री को वंशवादी प्रतीत नहीं होते!

विजयेंद्र को संगठन में तरक्की देकर भाजपा आलाकमान ने यह भी जता दिया कि बिना किसी सरकारी पद के अपने पिता की सरकार में उनका कथित अवांछित रोजमर्रा दखल भी उसकी नजर में जायज है.

महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू का वंशवादी होना भी नहीं खटक रहा. तो फिर देश के आम युवा सेंट्रल हॉल तक कैसे पहुंचेंगे मोदी जी?

लोकसभा में 303 और राज्यसभा में 93 यानी संसद में भाजपा के कुल 396 सदस्य हैं जिनमें करीब 47 सदस्य नेताओं के वंशज हैं. तो भाजपा के कुल सांसदों में 12 फीसदी वंशवादी हैं.

देश के सबसे बड़े मगर गरीब राज्य उत्तर प्रदेश से 1952 से जो 51 वंशवादी नेता निर्वाचित हुए उनमें 17 सांसद भाजपा में रहे अथवा उसके साथ हैं.

योगी, गोरखनाथ पीठ के महंत एवं भाजपा सांसद अवैद्यनाथ के राजनीतिक एवं धार्मिक उत्तराधिकारी होने के नाते वंशवादी माने गए. महंत अवैद्यनाथ जिन महंत दिग्विजयनाथ के उत्तराधिकारी थे वे भी राजनीति में खासे सक्रिय थे और 1967 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे.

उन्होंने खुलेआम महात्मा गांधी की हत्या का आह्वान किया था, जिसके तीन दिन बाद नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली में बापू की गोली मारकर हत्या कर दी. हत्या के षड्यंत्र के आरोप में महंत दिग्विजयनाथ नौ महीने जेल में रहे.

पश्चिम बंगाल में दलबदलू पूर्व मंत्री सुवेंदु अधिकारी व उनके भाई सौमेंदु अधिकारी पर वंशवादी होने का इल्जाम भाजपा में आते ही शायद उनकी खूबी में बदल गया!

तब फिर ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के राजनीति में रहने पर ऐतराज क्यों जबकि भाजपा के बंगाल चुनाव प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने खुद अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को इंदौर से भाजपा विधायक बनवा रखा है.


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मध्य प्रदेश सरकार में भाजपा ने ओमप्रकाश सकलेचा को मंत्री बनाया, जिनके पिता वीरेंद्र सकलेचा राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके साथी मंत्री विश्वास सारंग के पिता कैलाश सारंग भी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं.

इतना ही नहीं, भाजपा ने तो जून, 2020 के राज्यसभा चुनाव में भी चार वंशवादियों को कमल छाप पर राज्यसभा सदस्य निर्वाचित करवाया है.

वंशवादी होने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित विवेक ठाकुर, उदयनराजे भोसले, लैशेम्बा सानाजोअम्बा, नबाम राबिया, नीरज शेखर और संभाजी छत्रपति सभी भाजपा में राज्यसभा सदस्य हैं.

विवेक ठाकुर पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर के पुत्र, नीरज शेखर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र, संभाजी मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के वंशज, नबाम राबिया अरुण प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी के भाई और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, लैशेम्बा सानाजोअम्बा मणिपुर की राजगद्दी और उदयन राजे सतारा राजवंश के वारिस हैं.

भाजपा में पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद, मेनका गांधी, वरुण गांधी, विजय गोयल, अनुप्रिया पटेल, राव इंद्रजीत, चौधरी वीरेंदर सिंह एवं उनका सांसद बेटा बृजेंद्र सिंह आदि अपने राजनीतिक खानदानों के सत्ताधारी वारिस ही हैं.

वरुण गांधी, वसुंधरा राजे, दुष्यंत सिंह, यशोधरा राजे, राजवीर सिंह, पूनम महाजन, प्रीतम मुंडे, रक्षा खड़से, सुजय विखे पाटिल, प्रवेश साहिब सिंह सहित अनेक सांसद राजनीतिक खानदानों से हैं.

उत्तराखंड में हेमवती नंदन बहुगुणा के पोते सौरभ बहुगुणा और मंत्री यशपाल आर्य तथा उनके बेटे संजीव आर्य से लेकर, सौरभ बहुगुणा की बुआ और उत्तर प्रदेश में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, कर्नाटक में येदियुरप्पा परिवार तक भाजपा में भी वंशवाद की बेल खूब फल-फूल रही है.

प्रधानमंत्री मोदी एवं भाजपा वंशवाद के लिए कांग्रेस पर राजनीतिक हमला करने के बावजूद चुनाव जीतने के लिए जमीनी स्तर पर पूरी तरह कुनबापरस्त साबित हुए हैं.

इसकी ताजा मिसाल भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश में पिछले साल कांग्रेस की निर्वाचित सरकार दल बदल से गिराने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को गले लगाना और फिर राज्य में शिवराज चौहान की अगुआई में अपनी सरकार बनाना है.

हाईकमान के आशीर्वाद से भाजपा ने राजस्थान में भी तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को उकसाकर कांग्रेस की बहुमत से निर्वाचित सरकार गिराने को पिछले साल पूरा जोर लगाया था.

वो तो अशोक गहलोत की राजनीतिक परिपक्वता के आगे उनकी एक नहीं चली और पायलट को कांग्रेस आलाकमान का सहारा लेकर भाजपा शासित हरियाणा के मानेसर स्थित आलीशान होटल से बैरंग जयपुर लौटना पड़ा.

गौरतलब है कि सचिन भी पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट और विधायक रमा पायलट के बेटे हैं मगर राज्य में अवैधानिक हथकंडों से अपनी सरकार बनाने के लालच में भाजपा आलाकमान उनके वंशवाद के मामले में भी बगुला भगत बन गई. पायलट अब बाकी सभी पदों से हटाए जाने के बाद विधायक भर बचे हैं.

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सहित विभिन्न दलों ने करीब 76 राजनीतिक उत्तराधिकारियों को उनके कुनबे की साख के बूते जिताने के लिए टिकट दिया था.

भारतीय राजनीति में वंशवाद के इन आंकड़ों से पता चला कि जो नेता अपने राजनीतिक जीवन के शुरूआती काल में कांग्रेस में प्रचलित वंशवाद की कड़ी मुखालफत करते थे, वही बाद में बेहयाई से कुनबापरस्त हो गए.

इनमें प्रमुख नाम समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव, आंध्र प्रदेश में फिल्म अभिनेता से राजनेता बने एनटी रामाराव, प्रधानमंत्री और भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी, तमिलनाडु में फिल्मी दुनिया से द्रविड़ राजनीति के सिपहसालार बने एम. करुणानिधि, मराठा क्षत्रप एनसीपी नेता शरद पवार, उपप्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल, भाजपा नेता लालजी टंडन, बीएस येदियुरप्पा, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, अपना दल के संस्थापक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के पुराने साथी सोनेलाल पटेल और सबसे नए राज्य तेलंगाना के संस्थापक मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ही नहीं, बल्कि अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह अपने भतीजे को सामने लाने वाली पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती भी शामिल हो गई हैं.

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कम से कम आधा दर्जन वारिस देश के विभिन्न विधायी सदनों के सदस्य रहे हैं. मुलायम सिंह के कुनबे के कम से कम 18 सदस्य विभिन्न राजनीतिक अथवा विधायी पदों पर काबिज हैं.

भाजपा के कल्याण सिंह की पुत्रवधू प्रेमलता भी दो बार उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रही हैं. इसी तरह भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे लालजी टंडन के बेटे आशुतोष उर्फ गोपाल जी टंडन उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यूं तो आजीवन गैर-शादीशुदा रहे और इंदिरा गांधी पर वंशवाद थोपने के लिए राजनीतिक हमला करते रहे मगर उन्हीं के प्रधानमंत्री काल में उनकी भतीजी करुणा शुक्ला छत्तीसगढ़ से भाजपा की लोकसभा सदस्य और पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहीं.

इसी तरह वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा फिलहाल भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं और इससे पहले मध्य प्रदेश में मंत्री भी रहे हैं. वाजपेयी के अन्य रिश्तेदार दीपक वाजपेयी ग्वालियर में भाजपा के पदाधिकारी हैं.

इनके अलावा भाजपा के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों वीरेंद्र सकलेचा, कैलाश जोशी और सुंदरलाल पटवा के फरजंद भी राज्य में विधायी पदों पर काबिज हैं.

भारतीय राजनीति में लोकतंत्र ने पहली पीढ़ी की योग्यता आजाद मुल्क के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर, गुलजारी लाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डाॅ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी तक तमाम प्रधानमंत्रियों के रूप में सामने आई है.

यह सब अपने ही बूते देश में राजनीतिक और कार्यपालिका के शिखर पर पहुंच पाए. इसके बावजूद राजनीति, वकालत, डाॅक्टरी, जजी, पत्रकारिता, अध्यापन, नौकरशाही,कारोबार हरेक क्षेत्र में वंशवाद ही हमारी परंपरा बन गया है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)