उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद वेंकैया ने राज्यसभा के सभापति का पद संभाला

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह में नायडू को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई.

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह में नायडू को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई.

Venkaiah-Naidu_PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

एम. वेंकैया नायडू ने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के तौर पर शुक्रवार को शपथ ग्रहण की. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह में नायडू 68 को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत सभी बड़े नेता मौजूद थे.

भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद एम. वेंकैया नायडू ने राज्यसभा के सभापति का पद संभाला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में नायडू का स्वागत करते हुए कहा कि वह संसद में अपने लंबे अनुभव के बाद इस उच्च पद को संभालने आए हैं. उन्होंने कहा कि वेंकैया जी आजाद देश में जन्म लेने वाले पहले उपराष्ट्रपति हैं. वो एक किसान के बेटे हैं. ये भारत के संविधान की गरिमा है.

नायडू सवेरे सबसे पहले राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की थी.

इससे पहले गुरुवार को वेंकैया नायडू ने देश में अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना होने की बात को महज राजनीतिक प्रचार बताकर खारिज कर दिया था. नायडू ने यद्यपि किसी का नाम नहीं लिया लेकिन उनकी टिप्पणी को पूर्व उप-राष्ट्रपति अंसारी के एक टीवी साक्षात्कार की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के मुसलमानों में असहजता और असुरक्षा की भावना है, और स्वीकार्यता का माहौल खतरे में है.

नायडू ने कहा, ‘कुछ लोग कह रहे हैं कि अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं. यह एक राजनीतिक प्रचार है. पूरी दुनिया के मुकाबले अल्पसंख्यक भारत में ज्यादा सकुशल और सुरक्षित हैं और उन्हें उनका हक मिलता है.’ उन्होंने इस बात से भी इत्तेफाक नहीं जताया कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है और कहा कि भारतीय समाज अपने लोगों और सभ्यता की वजह से दुनिया में सबसे सहिष्णु है.

उन्होंने कहा कि यहां सहिष्णुता है और यही वजह है कि लोकतंत्र यहां इतना सफल है. पूर्व भाजपा अध्यक्ष ने एक समुदाय को अलग दिखाकर देश में लोगों को बांटने की कोशिश के प्रति आगाह करते हुये कहा कि इससे दूसरे समुदायों से विपरीत प्रतिक्रिया आयेगी.

68 वर्षीय पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘अगर आप एक समुदाय को अलग करके देखेंगे तो दूसरे समुदाय इसे अन्यथा लेंगे. इसलिये हम कहते हैं कि सभी समान हैं. किसी का तुष्टिकरण नहीं सभी के लिये न्याय.’ उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का प्रमाण है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ कोई भेदभाव नहीं हुआ.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें अल्पसंख्यकों को संवैधानिक जिम्मेदारियों समेत अहम पद हासिल हुये हैं क्योंकि यहां कोई भेदभाव नहीं है, और ऐसा उनकी योग्यता के कारण संभव हुआ.’ उन्होंने कहा कि भारत की विशिष्टता, विविधता में एकता और सर्व धर्म सद्भाव है. भारत के खून और ज़हन में धर्मनिरपेक्षता है. भारत अपने राजनेताओं की वजह से नहीं बल्कि अपने लोगों और सभ्यता की वजह से धर्मनिरपेक्ष है.

कथित असहिष्णुता की घटनाओं के बारे में पूछे जाने पर नायडू ने कहा कि भारत एक विशाल देश है और इक्का-दुक्का मामले सामने आ सकते हैं जो कुछ और नहीं अपवाद हैं. उन्होंने हालांकि कहा, ‘समुदाय के आधार पर कोई भी साथी नागरिकों पर हमले को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता ऐसी घटनाओं की निंदा होनी चाहिये और संबद्ध अधिकारियों द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए.’

नायडू ने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक वजहों से ऐसे मामलों में तिल का ताड़ बना देते हैं. कुछ लोग तो इस स्तर तक चले जाते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे मुद्दों को उठाकर देश को बदनाम तक करने लगते हैं. कुछ समुदायों के बीच दरार डालकर राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए ऐसा करते हैं. मूल समस्या वोट बैंक राजनीति और एक खास समुदाय को वोटबैंक माने जाने की वजह से है.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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