भारत साल 2019 में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले देशों में सातवें स्थान पर रहा

जर्मनी स्थित एक एनजीओ द्वारा जारी ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के मुताबिक, साल 2019 में भारत में मानसून सामान्य दिनों के मुक़ाबले एक महीने ज़्यादा देर तक रहा. भारी बारिश के कारण आई बाढ़ से 14 राज्यों में 1,800 लोगों की मौत हुई और 18 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

जर्मनी स्थित एक एनजीओ द्वारा जारी ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के मुताबिक, साल 2019 में भारत में मानसून सामान्य दिनों के मुक़ाबले एक महीने ज़्यादा देर तक रहा. भारी बारिश के कारण आई बाढ़ से 14 राज्यों में 1,800 लोगों की मौत हुई और 18 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था.

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चक्रवात के चलते प्रभावित लोग. (प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जर्मनी के बॉन शहर स्थित एक एनजीओ ‘जर्मनवॉच’ द्वारा हाल ही में जारी किए गए ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स, 2021 के मुताबिक साल 2019 में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में भारत सातवें स्थान पर है.

उन्होंने बताया कि साल 2019 में भारत में मानसून सामान्य दिनों के मुकाबले एक महीने ज्यादा देर तक रहा. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारी बारिश के कारण आई बाढ़ से 14 राज्यों में 1,800 लोगों की मौत हुई और 18 लाख लोगों का विस्थापन हुआ था. भारत में आठ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आए थे. इसमें से छह ‘बहुत गंभीर’ की श्रेणी के थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘बेहद गंभीर’ चक्रवात फानी ने 2.8 करोड़ लोगों को प्रभावित किया तथा इससे भारत एवं बांग्लादेश में 90 लोगों की मौत हुई. इस चक्रवात के चलते 8.1 अरब डॉलर (करीब 58,974 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ.

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2000 और 2019 के बीच 11,000 से अधिक मौसम की घटनाओं के चलते वैश्विक स्तर पर 475,000 से अधिक लोगों की जान गई और लगभग 25.6 खरब डॉलर (करीब 18,645 खरब रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ.

इसके अलावा गंभीर मानसून के चलते वैश्विक स्तर पर 1.18 करोड़ लोग प्रभावित हुए और करीब 10 बिलियन डॉलर (करीब 72,840.5 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ.

भारती इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में अनुसंधान निदेशक और सहायक एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंजल प्रकाश ने कहा, ‘यह जानकर आश्चर्य नहीं होता है कि भारत शीर्ष 10 सबसे प्रभावित देशों में शामिल है. आईपीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल) वैज्ञानिकों के रूप में हम अत्यधिक जोखिम की ओर इशारा कर रहे हैं कि एक उभरते हुए बाजार के रूम में भारत तेजी से बदलती जलवायु परिस्थितियों का सामना करने जा रहा है.’

डॉ. अंजल प्रकाश ने कहा, ‘भारत को कई इकोलॉजी- ग्लेशियर, ऊंचे पहाड़, लंबी तटीय रेखा के साथ-साथ बड़े पैमाने पर सेमी-एरिड रीजन का लाभ प्राप्त है और ये सब जलवायु परिवर्तन के लिए केंद्र होते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ग्लोबल वार्मिंग के कारण चक्रवातों में तेजी आ रही है, ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और गर्म हवाएं भी बढ़ रही हैं. अधिकांश भारतीय आबादी कृषि पर निर्भर है, जो जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है. इस साल भारत ने मानसून प्रणाली की परिवर्तनशीलता के कारण अपने कई शहरों को डूबते हुए देखा.’

प्रकाश ने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय योजना की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, ‘साल 2008 में एक नेशनल एडाप्टेशन प्लान तैयार की गई थी, इसके बाद स्टेट एक्शन प्लान भी बनाया गया. हालांकि अधिकांश योजनाओं में संसाधनों का अभाव है. यह महत्वपूर्ण समय है कि सरकार पता लगाए कि किन क्षेत्रों को दूसरों की तुलना में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.’