‘विधवाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है कि मानो उन्हें सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं है’

शीर्ष अदालत ने कहा कि विधवा विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए.

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वृंदावन का विधवा आश्रय घर (प्रतीकात्मक फोटो :एएनआई )

 शीर्ष अदालत ने कहा कि विधवा विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए.

वृंदावन का विधवा आश्रय घर (प्रतीकात्मक फोटो :एएनआई )
वृंदावन का विधवा आश्रय घर (प्रतीकात्मक फोटो :एएनआई )

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वयोवृद्ध बेसहारा विधवाओं के साथ वृन्दावन और दूसरे स्थानों के आश्रय गृहों में उस तरह का सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता जिसकी वे हकदार हैं.

शुक्रवार को आश्रमों में होने वाले अपमानजनक व्यवहार के बारे में बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये महिलाएं समाज के वंचित वर्ग की हैं जिनकी न्याय तक वास्तव में कोई पहुंच नहीं है, जो बेजुबान हैं और जिन्हें सशक्त करने की आवश्कता है.

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने बताया कि विधवाओं को पुनर्विवाह के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि इससे उनके बारे में बना हुआ दृष्टिकोण समाप्त होगा.

पीठ ने इसके साथ ही विधवाओं की स्थिति के बारे में शीर्ष अदालत में पेश रिपोर्ट के अध्ययन के लिये छह सदस्यीय समिति गठित की जिसे इस साल 30 नवंबर तक अपनी कार्ययोजना पेश करनी होगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके संवैधानिक कर्तव्य के रूप में इन असहाय विधवाओं की स्थिति के मामले में हस्तक्षेप करना जरूरी है जिनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है कि मानो उन्हें सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार ही नहीं है.

पीठ ने बताया इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सामने आये मुद्दों में से एक महत्वपूर्ण मुद्दा विधवाओं को दोबारा विवाह के लिये प्रोत्साहित करना है जिसका किसी भी रिपोर्ट में उल्लेख नहीं किया गया है . इससे एक आशा भी जगती है कि ऐसा करने से समाज विधवाओं के बारे में अपनी घिसीपिटी सोच को बदलेगा.

न्यायालय ने कहा, यह दुख की बात है कि इन विधवाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया गया है कि जैसे उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने की हक नहीं है और वे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण पाने की अधिकारी नहीं है.

न्यायालय ने समिति गठित करते हुये कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करने में संबंधित सभी प्राधिकारियों के प्रयास विफल नहीं जाने चाहिए और इनका तर्कसंगत तरीके से उपयोग होना चाहिए.

इस समिति में गैर सरकारी संगठन जागो री की सुनीता धर, गिल्ड आफ सर्विस की मीरा खन्ना, वकील एवं कार्यकर्ता आभा सिंघल, वकील अपराजिता सिंह और गैर सरकारी संगठन हेल्पेज इंडिया तथा सुलभ इंटरनेशनल के एक एक प्रतिनिधि को शामिल किया गया है.

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय महिला आयोग से कहा है कि इस समिति को अपना काम करने के लिये उचित स्थान मुहैया कराया जाये. समिति के सदस्यों को समुचित मानद धनराशि देने के बारे में बाद में निर्णय किया जायेगा. न्यायालय इस मामले में 9 अक्टूबर को आगे विचार करेगा.

न्यायालय ने अपने आदेश में सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार द्वारा सहमति की कार्ययोजना का भी ज़िक्र किया जिसमें देश में बेसहारा विधवाओं की स्थिति में सुधार के लिये अनेक ज़रूरी उपायों का वर्णन है.