ट्रैक्टर परेडः क्या तय रूट पर पुलिस बैरिकेड की वजह से किसानों ने दूसरा रास्ता चुना?

गणतंत्र दिवस के दिन निकाले गए ट्रैक्टर परेड के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर क्यों किसानों ने पुलिस द्वारा निर्धारित रास्ते पर परेड नहीं निकाला. हालांकि दिल्ली के कुछ इलाकों में देखा गया कि पुलिस ने इन रास्तों पर ही बैरिकेडिंग कर दी थी, जिसके चलते प्रदर्शनकारियों को रास्ता बदलना पड़ा.

सिंघू बॉर्डर (फोटो: पीटीआई)

गणतंत्र दिवस के दिन निकाले गए ट्रैक्टर परेड के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर क्यों किसानों ने पुलिस द्वारा निर्धारित रास्ते पर परेड नहीं निकाला. हालांकि दिल्ली के कुछ इलाकों में देखा गया कि पुलिस ने इन रास्तों पर ही बैरिकेडिंग कर दी थी, जिसके चलते प्रदर्शनकारियों को रास्ता बदलना पड़ा.

New Delhi: Security personnel patrol at the farmers protest site at Singhu Border in New Delhi, Wednesday, Jan. 27, 2021. (PTI Photo/ Shahbaz Khan)(PTI01 27 2021 000074B)
सिंघू बाॅर्डर पर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई ऐतिहासिक ट्रैक्टर रैली को लेकर मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक विभिन्न सवाल उठाए जा रहे हैं.

इसमें से एक प्रमुख सवाल ये है कि आखिर क्यों किसानों ने दिल्ली पुलिस द्वारा दिए गए तय मार्ग से अलग रूट पर रैली निकाली थी? क्यों ट्रैक्टर रैली में हिंसा हुई और ऐसे में किसान नेता कहां थे?

वैसे तो ये स्पष्ट है कि आंदोलन के एक बहुत बड़े हिस्से ने पुलिस द्वारा दिए गए रूट पर ही रैली निकाली थी और यहां प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, हालांकि लाल किला और आईटीओ पर किसानों के साथ पुलिस की भिड़ंत हुई, जिसमें एक युवक की मौत हो गई और कुछ किसानों ने लाल किले पर सिखों का धार्मिक झंडा फहरा दिया.

किसान नेताओं का कहना है कि रैली में कुछ ‘अराजक तत्व’ घुस आए थे और उन्होंने हिंसा की है, इसका किसानों से कोई लेना-देना नहीं है. कुछ ने ये भी कहा कि इसमें राजनीतिक दलों के लोग शामिल हो गए थे और उन्होंने किसान आंदोलन को बदनाम करने के उद्देश्य से ऐसा किया.

दूसरा रूट पकड़ने के संबंध में किसानों ने द वायर के साथ बातचीत में बताया कि चूंकि पुलिस द्वारा तय किए गए रूट पर बैरिकेड लगा हुआ था, इसलिए उन्हें मजबूर होकर दूसरे मार्ग से निकालना पड़ा था. इसके अलावा कुछ लोगों ने ये भी बताया कि उन्हें दिल्ली के रास्ते पता नहीं थे, इसलिए वे भटक गए.

किसानों ने दिल्ली पुलिस द्वारा स्वीकृत रास्ते पर भी नाराजगी जताई और कहा कि यदि वे केंद्रीय दिल्ली में महज एक ट्रैक्टर रैली निकालना चाहते हैं, तो इसमें क्या गलत बात है.

‘ग्रामीण दिल्ली’ कहे जाने वाले छावला, नांगली, नांगलोई, बरवाला, नजफगढ़, बपरोल जैसे क्षेत्रों में बीते मंगलवार को भारी पुलिसबलों की तैनाती की गई थी. यहां से टिकरी बॉर्डर पर बैठे किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान गुजरने वाले थे.

ज्यादातर ट्रैक्टर पर तिरंगा, निशान साहिब और भारतीय किसान यूनियन के झंडे लहरा रहे थे. इसमें शामिल लोग बेहद उत्साह में देशभक्ति के गीत गा रहे थे. हर एक ट्रैक्टर पर पुरुष, महिला, बुजुर्ग और जवान बैठे हुए थे. एक सुर में लोग विवादित तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे थे.

लोग रास्तों पर रोक खड़े होकर रैली देख रहे थे, करीब आंधे घंटे बीत गए, लेकिन ट्रैक्टर का काफिला थम नहीं रहा था. हर तरफ ‘किसान एकता जिंदाबाद’ के नारों की गूंज सुनाई दे रही है.

हालांकि दिल्ली पुलिस द्वारा की गई चौतरफा बैरिकेडिंग, आंसू गैस के गोले, वॉटर कैनन जैसी चीजों ने किसानों को संशय की स्थिति में डाल दिया, नतीजतन लोगों के आने-जाने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया.

जब ये पूछा गया कि किसानों ने तय रूट को फॉलो क्यों नहीं किया तो ट्रैक्टरों को निर्देशित कर रहे एक व्यक्ति ने कहा, ‘ये रैली स्वीकृत रास्ते पर ही चल रही थी. लेकिन हर तरफ बैरिकेड लगाकर हमारे सामने मुश्किलें खड़ी कर दी गईं. बैरिकेड तोड़े जाने पर चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया और इसके बाद रैली तितर-बितर हो गई. हममें से ज्यादातर लोग दिल्ली के रास्तों को नहीं जानते हैं. यहां तक कि हम अपने दोस्तों का पता नहीं लगा पा रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि इसके चलते लोगों में बहुत गुस्सा आ गया कि जब लंबी बातचीत के बाद एक रूट निर्धारित किया गया था तो आखिर पुलिस ने वहां पर बैरिकेडिंग क्यों कर दी.

वहीं दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस को टिकरी बॉर्डर की रैली को रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा था. उच्च अधिकारी ब्लॉक किए गए रास्तों का चक्कर लगा रहे थे और अपने अफसरों को कहा था कि वे नजर बनाए रखें.

लेकिन जो मौके पर मौजूद थे, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. एक जूनियर पुलिसवाले ने बताया, ‘हम क्या कर सकते हैं? यहां इतने सारे ट्रैक्टर हैं. हम इन्हें कैसे रोक सकते हैं? हमें एक घंटे पहले ही ये बैरिकेड्स लगाने को कहा गया था.’

वहीं नांगली में खुद को किसान बताते वाले बिहार के प्रवासी रामलाल ने बताया, ‘यहां किसान सिर्फ नाला पार करके अपने कैंप में वापस जाना चाहते थे. यहां बैरिकेड्स लगाने की कोई वजह नहीं थी. हम लोगों को भी बेवजह परेशानी झेलनी पड़ी. किसी भी किसान ने पुलिस के साथ झड़प नहीं की, आखिर उन पर क्यों हमला हो रहा है?’

जब किसानों की रैली ने आखिरकार बैरिकेड्स को पार कर लिया, तो रामलाल जैसे सैकड़ों लोग ट्रैफिक से बचने के लिए रैली में शामिल हो गए, ताकि वे अपने घरों तक आसानी से पहुंच सकें.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी इसी तरह का आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस ने खुद के द्वारा निर्धारित रास्ते पर ही बैरिकेड लगा दिए थे और जब किसानों ने इसे खोलने की मांग की तो उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए और लाठीचार्ज की गई.

उन्होंने कहा, ‘सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली निकली थी. गाजीपुर बॉर्डर पर इसलिए दिक्कत हुई क्योंकि दिल्ली पुलिस ने जो रूट दिया था वो बदल दिया और  बैरिकेड लगा दिया. जब किसानों ने इसे खोलने की मांग की तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े. किसानों ने 15 लोगों को पकड़कर दिल्ली पुलिस को दिए हैं, उन सब के पास सरकारी कर्मचारी होने का पहचान पत्र मिला है.’

बता दें कि गणतंत्र दिवस के मौके पर केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शनकारी किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस ने योगेंद्र यादव समेत नौ किसान नेताओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की है और तकरीबन 200 लोगों को हिरासत में लिया है. हिंसा के दौरान लगभग 300 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.

केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में पिछले दो महीने से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

इसे लेकर सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. किसान तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह डटे हुए हैं.

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