हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली मज़दूर अधिकार कार्यकर्ता नवदीप कौर तक़रीबन एक महीने से हिरासत में हैं. परिवार का आरोप है कि वह बीते नवंबर में सिंघू पर किसानों के आंदोलन में शामिल हुई थीं और उन मज़दूरों के लिए भी लड़ रही थीं, जिन्हें नियमित मज़दूरी नहीं मिलती थी.

नौदीप कौर की रिहाई की मांग लगातार की जा रही है. (फोटो: ट्विटर/@meenaharris)
गुड़गांव/नई दिल्ली: पिछले लगभग एक महीने से हिरासत में रखी गईं हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली दलित मजदूर अधिकार कार्यकर्ता और मजदूर अधिकार संगठन की सदस्य 23 वर्षीय नवदीप कौर के परिजनों ने कहा है कि उनकी रिहाई के लिए वे पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. चार दिन पहले ही सोनीपत के सत्र न्यायालय ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के एक वकील से मिलने के लिए चंडीगढ़ जाने के दौरान कौर की बहन राजवीर ने कहा, ‘हमने प्रक्रिया शुरू कर दी है. मेरी बहन के खिलाफ आरोप झूठे हैं.’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘नवदीप नवंबर में सिंघू पर (किसानों के) आंदोलन में शामिल हुई थीं. वह उन मजदूरों के लिए भी लड़ रही थीं, जिन्हें नियमित रूप से मजदूरी नहीं मिलती थी. 12 जनवरी को वह कुंडली में एक कारखाने के पास विरोध कर रही थीं जब पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था. मैं उनसे मिली और उन्होंने मुझे बताया कि हिरासत में उसके साथ मारपीट की गई है.’
शुक्रवार को एक अमेरिकी वकील, लेखक और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने कौर का मुद्दा उठाया था.
किसान आंदोलन को समर्थन करने की वजह से ट्रोलिंग का शिकार हुईं मीना हैरिस ने बीते छह फरवरी को ट्वीट किया था, ‘अतिवादी भीड़ द्वारा अपनी फोटो जलाया जाना देखकर अजीब लगा. कल्पना कीजिए कि अगर हम भारत में रहते हैं तो ये लोग क्या कहते. मजदूर अधिकारी कार्यकर्ता नवदीप कौर पर गिरफ्तार किया गया और पुलिस हिरासत में उन्हें प्रताड़ित तथा उनका यौन उत्पीड़न किया गया. बीते 20 दिनों से उन्हें बिना जमानत के जेल में रखा गया है.’
Weird to see a photo of yourself burned by an extremist mob but imagine what they would do if we lived in India. I'll tell you—23 yo labor rights activist Nodeep Kaur was arrested, tortured & sexually assaulted in police custody. She's been detained without bail for over 20 days. pic.twitter.com/Ypt2h1hWJz
— Meena Harris (@meenaharris) February 5, 2021
इस केस पर काम कर रहे राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के दिल्ली चैप्टर के अध्यक्ष एडवोकेट अमित श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि स्टेशन पर पुलिसकर्मियों द्वारा उनके साथ मारपीट की गई है.
शनिवार को एक बयान में सोनीपत पुलिस ने अवैध हिरासत और उत्पीड़न के बारे में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रसारित होने वाले आरोपों से इनकार किया.
पुलिस ने कहा कि पुलिस स्टेशन में उन्हें पूरे समय महिलाओं के वेटिंग रूम में रखा गया था और उनके ठहरने की पूरी अवधि के दौरान उनके साथ दो महिला पुलिसकर्मी भी थीं.
उन्होंने आगे दावा किया कि उन्हें (कौर) सिविल अस्पताल में ले जाया गया, जहां उन्हें एक सामान्य मेडिकल जांच और यौन उत्पीड़न के लिए एक महिला चिकित्सक द्वारा एक विशेष मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया. वहां उन्होंने खुद लिखित में दिया कि वह अपनी मेडिकल जांच नहीं करवाना चाहती हैं, क्योंकि उनके साथ मारपीट नहीं की गई थी.
पुलिस ने यह भी कहा कि उन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को पुलिस अधिकारियों द्वारा किसी भी हमले के बारे में कोई खुलासा/उल्लेख नहीं किया, जिनके सामने उन्हें करनाल जेल ले जाने से पहले पेश किया गया था.
नवदीप कौर की बहन का कहना है कि उन्हें एक कारखाने के पास विरोध प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तार किया गया था वहीं पुलिस का दावा है कि वह और मजदूर संघ के अन्य सदस्य कर्मचारियों को वेतन न दिए जाने की आड़ में अवैध जबरन वसूली के उद्देश्य से कुंडली में एक कारखाने में घुसने की कोशिश कर रही थीं.
पुलिस ने आरोप लगाया कि जब पुलिस के अधिकारी मध्यस्थता करने पहुंचे तो लाठी और डंडों से लैस संगठन के सदस्यों ने उन पर हमला किया, जिससे सात पुलिसकर्मी घायल हो गए.
तब से दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, जिनमें आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) शामिल है.
उनकी जमानत को खारिज करते हुए सत्र न्यायाधीश वाईएस राठौर ने कहा था कि कौर पैसे और धमकियों के जबरन वसूली से संबंधित दो एफआईआर का सामना कर रही हैं.
फैसले में कहा गया, ‘अपराध की गंभीरता को देखते हुए आवेदक जमानत की रियायत के लायक नहीं है और जमानत अर्जी खारिज की जाती है.’
कौर के रिश्तेदारों ने कहा कि वह कुंडली में एक कारखाने में काम करना शुरू करने के बाद मजदूर अधिकार संगठन के साथ जुड़ गई थीं.
उन्होंने कहा, ‘पंजाब के मुक्तसर में मजदूर परिवार में जन्मीं कौर स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेना चाहती थीं, लेकिन जब उनके परिवार को आर्थिक परेशानी हुई तो उन्हें रोजगार की तलाश करनी पड़ी.’
दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहीं उनकी बहन ने कहा, ‘दिसंबर में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने किसानों के साथ विरोध करना शुरू कर दिया था.’
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