बंदरगाहों के निजीकरण के आरोप से सरकार का इनकार, कहा- सार्वजनिक निजी भागीदारी, निजीकरण नहीं

महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 के पारित होने पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस विधेयक के जरिये बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है क्योंकि इसमें बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य ग़ैर-सरकारी होंगे.

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(फोटो: पीटीआई)

महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 के पारित होने पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस विधेयक के जरिये बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है क्योंकि इसमें बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य ग़ैर-सरकारी होंगे.

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नई दिल्ली: पोत परिवहन मंत्री मनसुख मंडाविया ने बुधवार को विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि सरकार देश के प्रमुख बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपने जा रही है. इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि बंदरगाहों का निजीकरण नहीं होगा और सरकार कर्मचारियों के कल्याण का ध्यान रखेगी.

मंडाविया ने राज्यसभा में महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कई विपक्षी सदस्यों का आरोप है कि इस विधेयक के जरिये सरकार बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक का निजीकरण से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने कहा कि विगत में भी पूर्व पोत परिवहन मंत्री ऐसा आश्वासन दे चुके हैं और एक बार फिर वह जोर दे रहे हैं कि बंदरगाहों का निजीकरण नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि सरकार ने बंदरगाहों को पीपीपी मॉडल (सार्वजनिक निजी भागीदारी) के तहत विकसित करने का फैसला किया है और इसी प्रक्रिया के तहत कोलकाता बंदरगाह का कायाकल्प किया गया है.

उन्होंने कहा कि पहले कोलकाता बंदरगाह घाटे में था लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद अब वह लाभ की स्थिति में है और पेंशन सहित अन्य देनदारी भी खत्म कर दी गई है.

मंत्री के जवाब के बाद सदन में मत विभाजन हुआ. तत्पश्चात सदन ने विधेयक को 44 के मुकाबले 84 मतों से पारित कर दिया. यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है.

मंडाविया ने कहा कि विधेयक के संबंध में स्थायी समिति की ज्यादातर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है और बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए प्रस्तावित बोर्डों में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व होगा.

उन्होंने कहा कि इसमें राज्य सरकार का भी प्रतिनिधित्व होगा और संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा.

उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पहले की सरकार में ‘मित्र’ होते थे लेकिन इस सरकार में कोई ‘मित्र’ नहीं है तथा देश की जनता उसकी मित्र है.

मंडाविया ने कहा कि 1963 में बंदरगाह ट्रस्ट कानून लागू हुआ था और उस समय देश में सिर्फ बड़े बंदरगाह ही थे. उन्होंने कहा कि लेकिन अब छोटे बंदरगाह भी बन गए हैं और उन दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा भी है.

मंडाविया ने कहा कि बड़े बंदरगाहों को सक्षम बनाने और उनकी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है.

उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था में फैसला करने के लिए बंदरगाह प्रबंधन को मंत्री से संपर्क नहीं करना होगा और वे अपने स्तर पर जरूरी फैसले कर सकेंगे.

सरकार विधेयक के जरिये बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है: विपक्ष

विधेयक पर हुई चर्चा में विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस विधेयक के जरिये बंदरगाहों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है.

इससे पूर्व भी विपक्ष ने विधयेक पर चर्चा के दौरान आरोप लगाया था कि विधेयक के प्रावधानों में बंदरगाहों के प्रबंधन के लिए 13 सदस्यीय बोर्ड का प्रस्ताव किया गया है जिसके सात सदस्य गैर-सरकारी होंगे. ऐसी स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार निजी क्षेत्र को मिल जाएगा और इससे देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है.

विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए बीजद के सुभाष चंद्र सिंह ने ओडिशा के पारादीप बंदरगाह का जिक्र किया और कहा कि लाभ में होने के बाद भी बंदरगाह द्वारा कार्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पर खर्च नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि वहां के अस्पताल में 30 साल से कोई विकास नहीं हुआ है और सड़कों की स्थिति खराब है.

द्रमुक के पी. विल्सन ने आरोप लगाया कि यह विधेयक निजी क्षेत्र को, और खासकर एक खास औद्योगिक समूह को लाभ पहुंचाने के लिए है. उन्होंने कहा कि विधेयक के प्रावधानों से पत्तनों के विकास में राज्य की भूमिका कम होगी.

विधेयक का विरोध करते हुए सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार बंदरगाहों को विकसित कर उन्हें बेचना चाहती है. उन्होंने कहा कि सरकार अगर जन-संपदा को बेचना चाहती है तो उससे पहले उसकी पूरी संपत्ति का मूल्यांकन कर लेना चाहिए.

भाकपा के विनय विश्वम और आप के नारायण दास गुप्ता ने भी विधेयक का विरोध किया. माकपा के इलामारम करीम ने विधेयक का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इसमें बंदरगाहों को कार्पोरेट इकाई में बदलने का प्रस्ताव किया गया है.

बसपा के रामजी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की मंशा कुछ और है. उन्होंने कहा कि बंदरगाहों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.

राजद के मनोज झा ने आरोप लगाया कि यह विधेयक निजी क्षेत्र को लाभ पहुंचाने के लिए है.

वहीं, वाईएसआर पार्टी के अयोध्या रामी रेड्डी ने विधेयक को स्वागतयोग्य कदम बताया और कहा कि इससे जरूरी आधारभूत ढांचा विकसित करने में मदद मिलेगी तथा बड़े एवं छोटे बंदरगाहों के बीच संतुलन स्थापित हो सकेगा.

जद (यू) के आरसीपी सिंह ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि चारों ओर स्थल से घिरे राज्यों के लिए भी खास प्रावधान होने चाहिए और उन्हें अपना बंदरगाह विकसित करने की व्यवस्था होनी चाहिए.

टीएमसी (एम) सदस्य जी के वास ने विधेयक का स्वागत किया और कहा कि इससे प्रमुख बंदरगाहों को अधिक अधिकार मिल सकेंगे और उनका विकास होगा.

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