ग़ैर-न्यायिक हत्या मामले में मुआवज़ा न दिलाने का आरोप, एनएचआरसी और मणिपुर सरकार को नोटिस

साल 2009 को इंफाल में दो व्यक्तियों की हत्या का आरोप मणिपुर पुलिस के कमांडो और 16 असम राइफल्स के जवानों पर लगा था. एनएचआरसी ने पिछले साल मणिपुर सरकार के दावे को ख़ारिज कर दिया था कि मुठभेड़ वास्तविक थी. इसके बाद परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया था.

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(फोटो: पीटीआई)

साल 2009 को इंफाल में दो व्यक्तियों की हत्या का आरोप मणिपुर पुलिस के कमांडो और 16 असम राइफल्स के जवानों पर लगा था. एनएचआरसी ने पिछले साल मणिपुर सरकार के दावे को ख़ारिज कर दिया था कि मुठभेड़ वास्तविक थी. इसके बाद परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया था.

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक याचिका पर मणिपुर सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि आयोग गैर-न्यायिक हत्या के दो मामलों में परिजनों को मुआवजा देने के लिए राज्य को दिए गए अपने निर्देश को लागू करवाने में विफल रहा है.

जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने मामले में मणिपुर राज्य को पक्षकार बनाया और उसे एवं मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी कर मानवाधिकार कार्यकर्ता सुहास चकमा की याचिका पर उनसे जवाब मांगा है.

अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि मानवाधिकार आयोग के पांच मार्च, 2020 के निर्देश को लागू करने के लिए उसने क्या कदम उठाए हैं जिसने मारे गए लोगों के परिजन को पांच लाख रुपये मुआवजा देने के लिए कहा था.

चकमा ने एनएचआरसी के आठ सितंबर 2020 के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया. आदेश में कहा गया था कि अगर राज्य सरकार पांच मार्च, 2020 के आदेश का पालन नहीं करती है तो मारे गए लोगों के परिजन मुआवजा राशि के लिए सक्षम अदालत में जा सकते हैं.

सुहास नेशनल कैंपेन फॉर प्रिवेंशन ऑफ टॉर्चर नामक गैर सरकारी संगठन चलाते हैं, जिसके गठन का उद्देश्य देश भर में होने वाले मानवाधिकार उल्लंघनों का समाधान है.

चकमा की तरफ से पेश हुए वकील नीतेश कुमार सिंह ने अदालत से कहा कि एनएचआरसी के पास अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं और मुआवजा राशि प्राप्त करने का आदेश लागू करवाने के लिए उसे पीड़ितों के परिजन से सक्षम अदालत में जाने के लिए नहीं कहना चाहिए.

मानवाधिकार आयोग का आदेश जनवरी 2009 में चकमा की शिकायत पर आया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाए थे कि दो व्यक्ति- निंगथाउजाम आनंद सिंह और पालुंगबाम कुंजबिहारी उर्फ बोस को मणिपुर पुलिस के कमांडो और 16 असम राइफल्स के जवानों ने 21 जनवरी 2009 को इंफाल के कांगलाटोंबी माखन मार्ग पर मार दिया था.

मानवाधिकार आयोग ने पांच मार्च 2020 को मणिपुर सरकार के दावे को खारिज कर दिया था कि मुठभेड़ वास्तविक थी.

चकमा ने अपनी याचिका में आठ सितंबर 2020 के आदेश को दरकिनार करने और एनएचआरसी को निर्देश देने की मांग की कि अपने आदेश को लागू करने के लिए वह राज्य सरकार के खिलाफ कठोर कदम उठाए.

बता दें कि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में सुरक्षा बलों एवं पुलिस द्वारा 2000 से 2012 के बीच हुई 1,528 कथित गैर-न्यायिक हत्याओं में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.

मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा कथित रूप से की गई 1528 फर्जी मुठभेड़ और गैर-न्यायिक हत्याओं के मामले की जांच और मुआवजा मांगने संबंधी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह निर्देश दिया था.

उसके बाद साल 2019 में सेना, असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस द्वारा राज्य में कथित गैर-न्यायिक हत्या मामलों की सुनवाई के लिए पीठ के पुनर्गठन पर सहमति दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)