जेएनयू राजद्रोह मामलाः अदालत ने कन्हैया कुमार व अन्य को 15 मार्च को तलब किया

2016 के जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस को आरोपियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी देने के क़रीब साल भर बाद मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया है. कन्हैया कुमार के अलावा मामले में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है.

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उमर ख़ालिद और कन्हैया कुमार. (फोटो: पीटीआई)

2016 के जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार द्वारा पुलिस को आरोपियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी देने के क़रीब साल भर बाद मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आरोपपत्र का संज्ञान लिया है. कन्हैया कुमार के अलावा मामले में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है.

उमर ख़ालिद और कन्हैया कुमार. (फोटो: पीटीआई)
उमर ख़ालिद और कन्हैया कुमार. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 2016 के राजद्रोह मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और नौ अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया और 15 मार्च को उन्हें तलब किया है.

अदालत के सूत्रों ने बताया कि मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) पंकज शर्मा ने दिल्ली पुलिस को मामले में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने के करीब एक साल बाद सोमवार को आरोपपत्र का संज्ञान लिया.

कुमार के अलावा मामले के अन्य आरोपियों में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य शामिल हैं. उन पर भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप है.

मामले में जिन सात अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है, उनमें कश्मीरी छात्र आकिब हुसैन, मुजीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, रईया रसूल, बशीर भट और बशारत शामिल हैं. उनमें से कुछ जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र हैं.

अदालत ने ऑनलाइन सुनवाई के दौरान कहा, ‘दस्तावेजों के साथ आरोपपत्र पर गौर किया गया. अदालत ने आईपीसी की धारा 124 ए , 323 , 465, 471, 143 , 147 , 149 , 120-बी के तहत अपराध का संज्ञान लिया. 27 फरवरी 2020 के आदेश के अनुरूप उपरोक्त अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी गृह विभाग ने दे दी है.’

उन्होंने कहा, ‘आरोपपत्र और दस्तावेजों पर ध्यान से गौर करने के बाद, आईपीसी की धारा 124 ए/323/465/471/143/147/149/120-बी के तहत सभी उपरोक्त अभियुक्तों को सुनवाई के लिए तलब किया जाता है. आरोपियों को जांच अधिकारी के जरिये 15 मार्च को तलब किया जाता है. सभी पक्षों को इस आदेश की प्रति ईमेल और वॉट्सऐप के जरिये भेजी जाएगी.’

आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह), 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना), 471 (फर्जी कागज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का वास्तविक की तरह इस्तेमाल करना), 143 (अवैध सभा का हिस्सा होना के लिए दंड), 149 (अवैध सभा का हिस्सा होना), 147 (दंगा करना) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

भाजपा के तत्कालीन सांसद महेश गिरि और आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की शिकायत पर 11 फरवरी 2016 को वसंत कुंज (उत्तर) थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए और 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया था.

भाकपा नेता डी. राजा की बेटी अपराजिता, शहला रशीद (तत्कालीन जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष), रमा नागा, आशुतोष कुमार, बनोज्योत्सना लाहिड़ी (सभी जेएनयू के पूर्व छात्र) समेत 36 अन्य के नाम आरोपपत्र के 12वें कॉलम में हैं, क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार द्वारा लंबे समय तक आरोपियों पर मुकदमा की मंजूरी नहीं दिए जाने के कारण मामले में देरी हुई.

सितंबर, 2019 की रिपोर्टों में कहा गया था कि दिल्ली सरकार युवा नेताओं पर मुकदमा चलाने की पुलिस को मंजूरी नहीं देगी. हालांकि, फरवरी, 2020 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपना मन बदल दिया और मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी.

वहीं, इस दौरान कन्हैया कुमार ने छात्र राजनीति के बाद देश की राजनीति में कदम रखा और 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगुसराय से माकपा के टिकट पर चुनाव लड़ा.

वहीं, उमर खालिद दिल्ली दंगों संबंधी एक मामले में फिलहाल जेल में हैं और कई अधिकार संगठन लगातार उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं.

इस दौरान पुलिस के केस पर कई बार सवाल उठे खासकर तब जब यह साफ हो गया कि सबूतों के तौर पर पेश किए गए कुछ वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई थी जिन्हें जेएनयू छात्रों के खिलाफ गुस्सा भड़काने के लिए कुछ टीवी चैनलों पर बड़ी संख्या में प्रसारित किया गया था.

वहीं, इस मामले में राजद्रोह का आरोप लगाने पर भी सवाल उठे थे. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि राजद्रोह का मामला तभी बनता है जब ‘हिंसक तरीके से सरकार को पलटने की कोई साजिश का प्रमाण’ मिल जाए.

केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि हिंसा भड़काने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है, तो उसे राजद्रोह नहीं माना जा सकता है.

21वें विधि आयोग ने भी अपने वर्किंग पेपर में कहा था कि महज सरकार की आलोचना करना, राजद्रोह नहीं है और लोगों के पास ये अधिकार है कि वे सरकार की आलोचना करते हुए अपना प्रतिरोध जता सकें.

अदालत ने पंजाब के बलवंत सिंह बनाम राज्य में यह भी फैसला सुनाया है कि खालिस्तान समर्थक नारे लगाने से राजद्रोह का आरोप नहीं लग सकता है क्योंकि इसने समुदाय के अन्य सदस्यों से कोई प्रतिक्रिया नहीं ली.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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