उत्तराखंड: कोविशील्ड का टीका लगवाने के चौदह दिन बाद एम्स प्रशिक्षु की मौत

गोरखपुर के 24 वर्षीय नीरज सिंह एम्स ऋषिकेश में ट्रेनी थे, जहां तीन फरवरी को उन्हें कोविशील्ड का टीका लगाया गया था. अस्पताल का कहना कि उनकी मौत का कारण टीका नहीं है. उन्होंने अपने सहमति पत्र में मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित होने की जानकारी नहीं दी थी.

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(फोटोः पीटीआई)

गोरखपुर के 24 वर्षीय नीरज सिंह एम्स ऋषिकेश में ट्रेनी थे, जहां तीन फरवरी को उन्हें कोविशील्ड का टीका लगाया गया था. अस्पताल का कहना कि उनकी मौत का कारण टीका नहीं है. उन्होंने अपने सहमति पत्र में मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित होने की जानकारी नहीं दी थी.

(फोटोः पीटीआई)
(फोटोः पीटीआई)

ऋषिकेश: कोविशील्ड का टीका लगवाने के 14 दिन बाद रविवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के 24 वर्षीय प्रशिक्षु की मौत हो गई.

हालांकि, एम्स ऋषिकेश के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने मंगलवार को कहा कि प्रशिक्षु नीरज सिंह की मौत का कारण कोविशील्ड का टीका लगना नहीं है.

उन्होंने बताया कि नीरज 30 जनवरी को मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से यहां लौटे थे और कोरोना वायरस से निपटने में अग्रणी भूमिका निभाने वालों को फरवरी के प्रथम सप्ताह में कोविशील्ड का टीका दिया जाना था.

थपलियाल ने कहा कि तीन फरवरी को नीरज को भी यही टीका लगा था. उन्होंने कहा कि अपने सहमति पत्र में नीरज ने मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित होने की जानकारी नहीं दी थी.

बाद में नीरज की तबीयत बिगड़ी तो एम्स अस्पताल में भर्ती कर उनका इलाज शुरू कर दिया गया, लेकिन उन्हें स्वस्थ करने के भरसक प्रयत्नों के बाद भी उनकी 14 फरवरी को मौत हो गई.

थपलियाल ने कहा कि नीरज के साथ हुई जटिलताओं का कारण कोविशील्ड का टीका लेने से पहले सहमति पत्र में उनका मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित होने की सूचना का उल्लेख नहीं होना था.

उन्होंने कहा कि नीरज सिंह की असमय मौत से सारा एम्स परिवार बहुत दुखी है. मालूम हो कि कोरोना वायरस की रोकथाम से संबंधित टीके लगाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से मौत के मामले सामने आए हैं.

बीते 13 फरवरी को हरियाणा के पानीपत में कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगने के नौ दिन बाद एक आशा कार्यकर्ता की मौत हो गई थी. 35 वर्षीय आशा कार्यकर्ता कविता को तीन फरवरी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज दी गई थी.

हालांकि, प्रशासन का कहना था कि अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह से उनकी मौत हुई.

इससे पहले 26 जनवरी को ओडिशा के नौपाड़ा जिला मुख्यालय अस्पताल में 27 वर्षीय सिक्योरिटी गार्ड नानिकाराम कींट की मौत कोविड-19 वैक्सीन लगाने के तीन दिन बाद हो गई थी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि उनकी मौत का टीकाकरण से कोई संबंध नहीं है.

इसी तरह हरियाणा के गुड़गांव में बीते 22 जनवरी को कोविड-19 का टीका लगवाने वाली एक 55 वर्षीय महिला स्वास्थ्यकर्मी की बीते 22 जनवरी को मृत्यु हो गई थी. तब भी अधिकारियों का कहना था कि इसका संबंध टीके से नहीं है.

दूसरी ओर मृतक के परिजनों का कहना था कि उन्हें संदेह है कि उनकी मौत टीका लगने की वजह से हुई है. महिला स्वास्थ्यकर्मी को 16 जनवरी को कोविशील्ड का टीका लगा था. वह गुड़गांव जिले के भांगरोला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत थीं.

इससे पहले तेलंगाना के निर्मल जिले में कोविड-19 का टीका लगवाने वाले एक 42 वर्षीय स्वास्थ्यकर्मी की मौत का मामला सामने आया था. इस मामले में भी अधिकारियों ने मौत के लिए टीके को जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

इसी तरह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 45 वर्षीय मजदूर दीपक मरावी की संदिग्ध परिस्थितियों में बीते साल 21 दिसंबर को मौत हो गई थी.

उन्हें 12 दिसंबर 2020 को पीपुल्स मेडिकल कॉलेज (भोपाल) में भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन की खुराक दी गई थी. मृतक के परिवार का आरोप लगाया था कि वैक्सीन से उनकी जान गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)