पहली प्रवासी नीति: मज़दूरों के लिए वोट का अधिकार और माइग्रेशन विंग बनाने का प्रस्ताव

कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रवासी मज़दूरों के सामने खड़ी हुईं समस्याओं को दूर करने के लिए श्रम मंत्रालय नीति आयोग की अगुवाई में एक नीति तैयार कर रही है. मसौदा नीति में कहा गया है कि प्रवासी मज़दूरों का राजनीतिक समावेश किया जाना चाहिए, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को उनके लिए जवाबदेह ठहराया जा सके.

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Ghaziabad: Migrants walk along a road on NH-24 to reach their native places, during the nationwide COVID-19 lockdown, in Ghaziabad, Saturday, May 30, 2020. (PTI Photo/Vijay Verma)(PTI30-05-2020 000024B)

कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रवासी मज़दूरों के सामने खड़ी हुईं समस्याओं को दूर करने के लिए श्रम मंत्रालय नीति आयोग की अगुवाई में एक नीति तैयार कर रही है. मसौदा नीति में कहा गया है कि प्रवासी मज़दूरों का राजनीतिक समावेश किया जाना चाहिए, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को उनके लिए जवाबदेह ठहराया जा सके.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों के सामने खड़ी हुईं भीषण समस्याओं के बाद सरकार इस संबंध में एक नीति तैयार कर रही है.

इसके पहले ड्राफ्ट (मसौदा) में ये प्रस्ताव किया गया है कि प्रवासियों के लिए अंतरराज्यीय समन्वय (कोऑर्डिनेशन) तंत्र तैयार किया जाए और राज्यों के श्रम विभाग में एक माइग्रेशन विंग होना चाहिए, जो इनकी समस्याओं का समाधान कर सके. साथ में वोट देने का अधिकार देने की भी बात कही गई है.

इसके अलावा प्रवासी मजदूरों का राजनीतिक समावेश करने और इनके मूल निवास (राज्य) और जिस राज्य में वे काम कर रहे हैं, इसका आंकड़ा तैयार करने के लिए कहा गया है.

नीति आयोग और एक वर्किंग सब-ग्रुप द्वारा ये रिपोर्ट तैयार की जा रही है.

श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल कम से कम एक करोड़ प्रवासी मजदूरों को शहर छोड़कर अपने गांव की ओर लौटना पड़ा था.

इसे लेकर चौतरफा आलोचना होने के बाद श्रम मंत्रालय ने नीति आयोग से इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा था. इसके बाद बीते आठ फरवरी को गंगवार ने लोकसभा राष्ट्रीय प्रवासी नीति बनाने की घोषणा की थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मसौदा नीति में बताया गया है कि किस तरह ऐसे लोगों को राजनीतिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते उन्हें वोट देने में दिक्कत होती है और वे अपनी मांग राजनीतिक पटल पर नहीं रख पाते हैं.

इसलिए रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों का राजनीतिक समावेश किया जाना चाहिए, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को उनके लिए कानून बनाने या सुधार लाने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके.

इसे लेकर श्रम मंत्रालय अपने विभाग में प्रवासियों के लिए एक विशेष यूनिट बनाएगा.

अंतरराज्यीय प्रवासी मैनेजमेंट संस्था का कार्य देश में पलायन करने वाले प्रमुख केंद्रों जैसे कि उत्तर प्रदेश और मुंबई, बिहार और दिल्ली, पश्चिमी ओडिशा और आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात तथा ओडिशा और गुजरात पर नजर रखना होगा.

इसमें कहा गया है कि सभी राज्यों के श्रम विभाग में एक माइग्रेंट वर्कर सेक्शन होना चाहिए. इसके अलावा राज्य अपने एक नोडल ऑफिसर को पलायन किए राज्य में भेजें, ताकि वे श्रम अधिकारियों के साथ मिलकर प्रवासी मजदूरों के लिए कार्य कर सकें.

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में आपदा राहत कार्यों का लाभ प्रवासियों को देने पर जोर दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सुरक्षाओं का भी लाभ देने के लिए कहा गया है.

ड्राफ्ट रिपोर्ट में ऐसे लोगों के कौशल का आंकड़ा तैयार करने, आधार के जरिये सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने और एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता देने का सुझाव दिया गया है.

नीती आयोग के वर्किंग ग्रुप की अब तक दो बैठकें हुई हैं. इस ग्रुप में स्वास्थ्य मंत्रालय, आवास और शहरी मामले, ग्रामीण विकास, सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यम, कौशल विकास और उद्यमशीलता, सड़क परिवहन और राजमार्ग तथा श्रम मंत्रालय के सदस्य शामिल हैं.

इसमें टाटा ट्रस्ट, सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट, दिशा फाउंडेशन, आजीविका ब्यूरो, दीनदयाल शोध संस्थान, मैनेजमेंट संसाधन एवं महा विकास संस्थान, इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग, यूएन-हैबिटैट और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि भी शामिल हैं.

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