भारतीय श्रमिक अधिक देर तक काम करते हैं, पर कमाते कम हैं: आईएलओ रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ उप-सहारा अफ्रीकी देशों को छोड़ दें, तो भारतीय श्रमिक न्यूनतम वेतन पाते हैं. कई बार मज़दूरों को एक हफ्ते में 48 घंटे तक काम करना पड़ता है. यह आंकड़ा चीन में औसतन 46, ब्रिटेन में 36, अमेरिका में 37 और इजराइल में 36 घंटे प्रति हफ्ते का है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ उप-सहारा अफ्रीकी देशों को छोड़ दें, तो भारतीय श्रमिक न्यूनतम वेतन पाते हैं. कई बार मज़दूरों को एक हफ्ते में 48 घंटे तक काम करना पड़ता है. यह आंकड़ा चीन में औसतन 46, ब्रिटेन में 36, अमेरिका में 37 और इजराइल में 36 घंटे प्रति हफ्ते का है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बांग्लादेश को छोड़कर भारतीय सबसे ज्यादा काम करते हैं, लेकिन सबसे कम कमाते (न्यूनतम वेतन) हैं.

ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2020-21: वेजेज एंड मिनिमम वेजेज इन द टाइम ऑफ कोविड-19’ के मुताबिक देर तक काम कराने के मामले में भारत दुनिया में पांचवे स्थान पर है. कई बार मजदूरों को एक हफ्ते में 48 घंटे तक काम करना पड़ता है.

केवल गांबिया, मंगोलिया, मालदीव और कतर ही ऐसे देश हैं जहां भारत की तुलना में ज्यादा देर तक काम कराया जाता है. यहां की एक चौथाई जनसंख्या भारतीयों की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, एक वर्कर को चीन में औसतन 46 घंटे प्रति हफ्ते, यूनाइटेड किंगडम में 36 घंटे प्रति हफ्ते, अमेरिका में 37 घंटे प्रति हफ्ते और इजराइल में 36 घंटे प्रति हफ्ते कार्य करना पड़ता है.

ये आंकड़े विभिन्न देशों की एजेंसियों द्वारा मुहैया कराए गए 2019 के अनुमानों पर आधारित हैं. कुछ देशों के आंकड़े इससे पिछले वर्षों के भी हैं.

रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि कुछ उप-सहारा अफ्रीकी देशों को छोड़कर भारतीय श्रमिकों को सबसे कम न्यूनतम वेतन मिलता है.

यदि भारतीयों में देखें, तो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी इलाकों के लोगों को अच्छी सैलरी मिलती है. साल 2018-19 के पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष महिलाओं की तुलना में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में अधिक देर तक कार्य करते हैं.

ग्रामीण भारत में जहां स्व-रोजगार पुरुष एक हफ्ते में 48 घंटे कार्य करते हैं, वहीं महिलाएं इसमें 37 घंटे बिताती हैं. वहीं निश्चित सैलरी पर कार्य करने वाले पुरुष एक हफ्ते में औसतन 52 घंटे और महिलाएं 44 घंटे काम करती हैं.

कैजुअल वर्कर (ठेका श्रमिक) की श्रेणी वाले ग्रामीण पुरुष प्रति सप्ताह 45 घंटे काम करते हैं और महिलाएं 39 घंटे काम करती हैं.

शहरी क्षेत्रों में स्व-रोजगार पुरुष प्रति सप्ताह 55 घंटे काम करते हैं, जबकि महिलाएं 39 घंटे काम करती हैं. वेतनभोगी कर्मचारी और नियमित वेतन पाने वाले पुरुष सप्ताह में 53 घंटे काम करते हैं, जबकि महिलाएं 46 घंटे काम करती हैं.

वहीं कैजुअल वर्कर वाली श्रेणी के शहरी पुरुष सप्ताह में 45 घंटे काम करते हैं, जबकि महिलाएं 38 घंटे काम करती हैं.

इसके अलावा साल 2019 में केंद्र के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा कराए गए एक नए सर्वे से पता चला था कि सिर्फ 38.2 प्रतिशत जनसंख्या ‘रोजगार एवं इससे संबंधित गतिविधियों’ से जुड़ी हुई है और वे इस कार्य में एक दिन में 429 मिनट (सात घंटे और नौ मिनट) बिताते हैं.

‘समय के उपयोग का सर्वेक्षण’ नाम इस सर्वे के मुताबिक रोजगार कार्यों में सिर्फ 18.4 फीसदी महिलाओं की सहभागिता है, जबकि इसमें 57.3 फीसदी पुरुष कार्यरत हैं.

इसके साथ ही जहां पर पुरुष एक दिन में औसतन 459 मिनट (सात घंटे और 39 मिनट) इसमें लगाते हैं, वहीं महिलाएं सिर्फ 333 मिनट (पांच घंटे एवं 33 मिनट) इसमें खर्च कर पाती हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में महिलाओं की सहभागिता और कम मात्र 16.7 फीसदी है.

सितंबर 2020 में केंद्र द्वारा चार नए श्रम कोड लागू किए जाने के बाद वैश्विक संगठनों के अनुरूप एक हफ्ते में चार दिवसीय कार्य शुरू करने पर विचार किया जा रहा है. सरकार ने इस पर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स की प्रतिक्रिया मांगी थी और टिप्पणियों को शामिल करते हुए जनवरी में एक ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया था.

हालांकि श्रम संगठन इसके विरोध में है. उनका कहना है कि इसके चलते प्रतिदिन 12 घंटे काम करना होगा, इस आधार पर हफ्ते में 48 घंटे काम कराया जाएगा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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