जीवनसाथी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना मानसिक क्रूरता के समान: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने एक सैन्य अधिकारी को उसकी पत्नी से तलाक़ की मंज़ूरी दे दी. सैन्य अधिकारी ने एक सरकारी कॉलेज में शिक्षक पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक मांगा था. दोनों की शादी 2006 में हुई थी. वे कुछ महीने तक साथ रहे, लेकिन शादी की शुरुआत से ही उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और वे 2007 से अलग रहने लगे थे.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

उच्चतम न्यायालय ने एक सैन्य अधिकारी को उसकी पत्नी से तलाक़ की मंज़ूरी दे दी. सैन्य अधिकारी ने एक सरकारी कॉलेज में शिक्षक पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक मांगा था. दोनों की शादी 2006 में हुई थी. वे कुछ महीने तक साथ रहे, लेकिन शादी की शुरुआत से ही उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और वे 2007 से अलग रहने लगे थे.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक सैन्य अधिकारी का उसकी पत्नी से तलाक मंजूर करते हुए कहा कि जीवनसाथी के खिलाफ मानहानिकारक शिकायतें करना और उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना मानसिक क्रूरता के समान है.

जस्टिस एसके कौल के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टूटे हुए संबंध को मध्यमवर्गीय वैवाहिक जीवन की सामान्य टूट-फूट करार देकर अपने निर्णय में त्रुटि की.

पीठ ने कहा, ‘यह निश्चित तौर पर प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ क्रूरता का मामला है और उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करने तथा परिवार अदालत के फैसले को बहाल करने के लिए पर्याप्त औचित्य पाया गया है.’

न्यायालय ने कहा, ‘इसलिए अपीलकर्ता अपनी शादी को खत्म करने का हकदार है और वैवाहिक अधिकारों की बहाली का प्रतिवादी का आवेदन खारिज माना जाता है. अत: यह आदेश दिया जाता है.’

सैन्य अधिकारी ने एक सरकारी स्नातकोत्तर कॉलेज में शिक्षक पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक मांगा था.

दोनों की शादी 2006 में हुई थी. वे कुछ महीने तक साथ रहे, लेकिन शादी की शुरुआत से ही उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और वे 2007 से अलग रहने लगे थे.

पत्नी ने भी पति के ख़िलाफ़ वैवाहिक अधिकारों की बहाली और दाम्पत्य जीवन फिर से शुरू करने के लिए याचिका दायर की थी.

पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय भी थे.

सैन्य अधिकारी ने अपनी पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए कहा था कि उसने विभिन्न जगहों पर उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है.

अदालत ने कहा कि आरोप एक उच्च शिक्षित व्यक्ति द्वारा लगाए गए थे और उनके पास अपीलकर्ता के चरित्र और प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंचाने की प्रवृत्ति है.

न्यायालय ने कहा, ‘जब जीवनसाथी की प्रतिष्ठा को उसके सहकर्मियों, उसके वरिष्ठों और समाज के बीच बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जाता है तो प्रभावित पक्ष से ऐसे आचरण को क्षमा करने की उम्मीद करना मुश्किल होगा.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले से जुड़ी सामग्री से पता चलता है कि पत्नी ने सेना में अपीलकर्ता (पति) के वरिष्ठों से उसके खिलाफ तमाम मानहानिकारक शिकायतें की थीं, जिसके लिए अपीलकर्ता के खिलाफ सेना के अधिकारियों द्वारा जांच कमेटी का गठन किया गया था.

अदालत ने पाया कि इससे अपीलकर्ता की तरक्की प्रभावित हुई और पत्नी ने राज्य महिला आयोग जैसे प्राधिकारियों के अलावा और अन्य जगहों पर भी बदनाम करने वाली सामग्री पोस्ट की थी.

अदालत ने यह भी कहा कि मामले में पत्नी की ओर दिया गया स्पष्टीकरण कि उन्होंने वैवाहिक संबंधों की रक्षा के लिए उन शिकायतों को किया, यह अपीलकर्ता की गरिमा और प्रतिष्ठा को कम करने के लिए उसके द्वारा लगातार किए गए प्रयास को उचित नहीं ठहराता.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)