नए सोशल मीडिया नियमों में संसदीय स्वीकृति का अभाव, दुरूपयोग की संभावना: कांग्रेस

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए दिए गए नए दिशानिर्देशों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व रचनात्कता के लिए ‘बेहद ख़तरनाक’ हैं, वहीं कई विशेषज्ञों ने इसके दुरूपयोग को लेकर भी आशंकाएं ज़ाहिर की हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया के नियमन के लिए दिए गए नए दिशानिर्देशों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व रचनात्कता के लिए ‘बेहद ख़तरनाक’ हैं, वहीं कई विशेषज्ञों ने इसके दुरूपयोग को लेकर भी आशंकाएं ज़ाहिर की हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को आरोप लगाया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगाम कसने के लिए सरकार ‘गैर सांविधिक’ दिशानिर्देश लेकर आयी है, जिसके लिए संसद की मंजूरी नहीं ली गई है.

पार्टी ने कहा कि इसमें नौकरशाह को असीम शक्तियां दी गई है जिसका दुरूपयोग हो सकता है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि सोशल मीडिया को बिना नियमन के नहीं छोड़ा जा सकता है. किंतु उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी आदेशों एवं गैर सांविधिक नियमों के द्वारा इसे नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए .

उन्होंने इन नियमों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं रचनात्कता के लिए ‘बेहद खतरनाक’ करार दिया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सिंघवी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘कोई नहीं कह रहा है कि इस क्षेत्र में पूरा ‘जंगल राज’ या कोई नियम नहीं होना चाहिए, लेकिन उसी तरह गैर-सांविधिक और सरकारी आदेशों की आड़ में इतने बड़े क्षेत्र पर नियंत्रण पाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं होना चाहिए।’

सिंघवी ने कहा कि आप इतने बड़े बदलाव कर रहे हैं लेकिन इनकी कमान एक नौकरशाह के हाथ में है. उन्होंने कहा, ‘यह फ्री स्पीच और सृजनात्मकता के लिए बेहद खतरनाक हैं, जब तक कि किसी तरह का अंकुश इन [नियमों] पर नहीं होता, लेकिन इस सरकार में मुझे तो किसी तरह का कोई अंकुश नजर नहीं आता.’

सिंघवी ने यह कहते हुए कि इन नियमों का क्रियान्वयन नौकरशाहों पर निर्भर करता है, आगे जोड़ा, ‘इतने महत्वपूर्ण और बड़े नियमों को बिना किसी संसदीय जांच या समीक्षा के अनुमति दे दी गई है. जहां तक इस सरकार का सवाल है, 20 ऐसे क्षेत्रों में ऐसा किसी अंकुश का स्पष्ट अभाव है.’

सिंघवी ने यह भी कहा कि सरकार आईटी एक्ट के तहत नए नियम लेकर आई है जबकि इसमें ओटीटी या सोशल मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है. ये दिशानिर्देश आईटी एक्ट के तहत लाए गए हैं लेकिन इन्हें संसद के रास्ते आना चाहिए और साथ ही यह भी पूछा जाना चाहिए कि चार साल बाद भी डेटा संरक्षण कानून क्यों अब तक पारित नहीं हुआ है.

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने गुरुवार को सोशल मीडिया मंचों के दुरूपयोग रोकने के लिए नए दिशा-निर्देशों की घोषणा की, जिनके तहत संबंधित कंपनियों के लिए एक पूरा शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा. साथ ही ख़बर प्रकाशकों, ओटीटी मंचों और डिजिटल मीडिया के लिए ‘आचार संहिता’ और त्रिस्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली लागू होगी.

इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के नाम से लाए गए ये दिशानिर्देश देश के टेक्नोलॉजी नियामक क्षेत्र में करीब एक दशक में हुआ सबसे बड़ा बदलाव हैं. ये इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2011 के कुछ हिस्सों की जगह भी लेंगे.

इन नए बदलावों में ‘कोड ऑफ एथिक्स एंड प्रोसीजर एंड सेफगार्ड्स इन रिलेशन टू डिजिटल/ऑनलाइन मीडिया’ भी शामिल हैं. ये नियम ऑनलाइन न्यूज़ और डिजिटल मीडिया इकाइयों से लेकर नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम पर भी लागू होंगे.

मंत्रालय ने एक बयान में बताया है कि डिजिटल मीडिया पर खबरों के प्रकाशकों को भारतीय प्रेस परिषद की पत्रकारीय नियमावली तथा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियामकीय अधिनियम की कार्यक्रम संहिता का पालन करना होगा, जिससे ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया के बीच समान अवसर उपलब्ध हो.

नियमों के तहत स्वनियमन के अलग-अलग स्तरों के साथ त्रिस्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली भी स्थापित की गई है. इसमें पहले स्तर पर प्रकाशकों के लिए स्वनियमन होगा, दूसरा स्तर प्रकाशकों के स्वनियामक निकायों का स्वनियिमन होगा और तीसरा स्तर निगरानी प्रणाली का होगा.

नियम आने के बाद ऑनलाइन प्रकाशकों के संगठन डिजिपब ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर अपना विरोध भी जताया है.

ऑनलाइन प्रकाशनों ने नए नियमों को अनुचित, इनके नियमन की प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक और इनके क्रियान्वयन के तरीके को अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन बताया है.

विशेषज्ञों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

नए नियमों को लेकर कुछ सवाल जाने- माने साइबर विशेषज्ञ और वकील पवन दुग्गल ने भी उठाए हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से बात करते हुए उन्होंने कहा कि नए नियमों की कुछ सकारात्मक भूमिकाएं हैं पर साथ ही इनके नकारात्मक पहलू और चुनौतियां भी हैं.

उन्होंने कहा, ‘इन नियमों में और संतुलन होता तो ये और मजबूत बनते. जितने सुरक्षात्मक उपाय होने चाहिए थे, वह नहीं हैं. इसलिए मुझे लगता है कि इन नियमों के अनावश्यक इस्तेमाल और दुरूपयोग की आशंका हो सकती है.’

सरकार द्वारा लाए नए नियम क्या ऑनलाइन प्रकाशकों को नियंत्रित करने का प्रयास हैं, के जवाब में दुग्गल ने कहा, ‘इसमें दो राय नहीं है कि यह ऑनलाइन समाचारों को विनियमित करने का प्रयास है. साथ में ओटीटी (ओवर द टॉप/वेब सीरीज़ आदि) मंचों की सामग्री को भी स्वनियमन के दौर से आगे ले जाना चाहते हैं. चाहे आप स्वनियमन की बात करें या नजर रखने की बात करें, यह नियंत्रण ही है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मीडिया पर कोई अंकुश कानून के दायरे में ही लगाया जा सकता है और नजर रखने के तंत्र कानून के दायरे में नहीं आते हैं. इसके तहत कार्रवाई अदालत नहीं, नौकरशाह करेंगे. इन नियमों का दुरूपयोग होने की संभावना है.’

नए नियमों की घोषणा के बाद इसे मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली हैं. कुछ लोग सोशल मीडिया के कंटेट के नियमन को लेकर संतुष्टि जाहिर कर रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि यह निजता के अधिकारों का उल्लंघन है.

नए नियमों का पक्ष लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अजित सिन्हा का कहना है कि अगर पाबंदियां उचित हैं तो नियम लगाए जा सकते हैं, वहीं वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी का मानना है कि इससे निजता के अधिकारों और प्रेस की आजादी पर प्रभाव पड़ेगा.

सिन्हा ने कहा, ‘प्रथमदृष्ट्या विचार यह है कि ये सोशल मीडिया मंच भारतीय कानून से संचालित होंगे और सरकार के पास नियमन की ताकत होगी. सोशल मीडिया के नियम तब तक वैध होंगे जब तक अनुच्छेद 19 (बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत उचित पाबंदियां होंगी. अगर पाबंदियां उचित हैं तो निश्चित तौर पर नियम लागू किए जा सकते हैं.’

वहीं मेनका गुरुस्वामी ने सवाल उठाए हैं कि नौकरशाह कैसे निर्णय कर सकते हैं कि ओटीटी मंचों की विषय वस्तु क्या होगी और अदालत इस तरह की चिंताओं के समाधान के लिए है.

उन्होंने कहा, ‘नौकरशाह कौन होते हैं जो निर्णय करें कि विषय वस्तु क्या होगी? चिंताओं को सुनने के लिए अदालतें हैं. अंतत: डिजिटल मीडिया को नियमित करने वाले नियमों से प्रेस की आजादी प्रभावित होगी.’

गुरुस्वामी ने कहा, ‘नये सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में वॉट्सऐप और सिग्नल जैसे सोशल मीडिया मंचों को नियमित करने की बात है. इससे संविधान के तहत मिले निजता, बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार प्रभावित होंगे.’

उन्होंने कहा कि कंटेंट के लेखक की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य करने से मंचों द्वारा मुहैया कराया जाने वाला ‘एंड टू एंड इन्क्रिप्शन’ समाप्त हो जाएगा.

नये सोशल मीडिया नियमों से बढ़ेगी अनुपालन लागत, छोटी कंपनियों के लिए होगी मुश्किल: विशेषज्ञ

नये सोशल मीडिया नियम इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए अनुपालन की लागत बढ़ा सकते हैं. इससे फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर पाना छोटी कंपनियों के लिए मुश्किल हो सकता है. उद्योग जगत के विशेषज्ञों का ऐसा मानना है.

पिछले सप्ताह घोषित नये नियम सोशल मीडिया कंपनियों को दो वर्ग ‘सोशल मीडिया मध्यस्थ और महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ’ में बांटते हैं.

महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ के लिए सरकार ने 50 लाख प्रयोगकर्ताओं की सीमा तय की है. इस श्रेणी में आने वाली कंपनियों को अतिरिक्त अनुपालन करना होगा.

फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों ने कहा कि वे अभी नियमों का अध्ययन कर रही हैं. कई लोगों ने नये नियमों की सराहना की है.

इनका कहना है कि नये नियम शिकायत निवारण, फर्जी समाचार और उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा जैसी चिंताओं को दूर करते हैं. हालांकि अनुपालन की लागत में वृद्धि पर भी कई लोगों ने चिंता व्यक्त की है.

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) की संस्थापक मिशी चौधरी ने कहा कि नियम अनुचित बोझ और अनुपालन बढ़ाने वाले हैं. ये इस क्षेत्र में प्रवेश को मुश्किल बना सकते हैं और हर किसी के लिसे अनुपालन की लागत बढ़ा सकते हैं.

भारत में वॉट्सएप के 53 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ और ट्विटर के 1.75 करोड़ उपयोक्ता हैं.

टेलीग्राम और सिग्नल जैसी कंपनियां उपयोक्ताओं की संख्या के बारे में जानकारी नहीं देती हैं.  हालांकि, गोपनीयता संबंधी विवाद उठने के बाद हालिया समय में इन कंपनियों का डाउनलोड ठीक-ठाक बढ़ा है.

सामग्री को ब्लॉक करने का नियम नया नहीं, 2009 से अस्तित्व में: मंत्रालय

इस बीच सोशल मीडिया सहित अन्य ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने संबंधी विवाद पर भारत सरकार का कहना है कि डिजिटल माध्यमों पर साझा सामग्री को आपात स्थिति में ब्लॉक करने का नियम देश में नया नहीं है और वह 2009 से ही अस्तित्व में है.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डिजिटल मीडिया के नए दिशा-निर्देशों पर शनिवार को स्पष्टीकरण देते हुए इस आशय की जानकारी दी.

25 फरवरी को जारी नियमानुसार प्रावधान में इसका उपयोग करने का अधिकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को दे दिया गया है.

मंत्रालय ने कहा, ‘यह दोहराया जाता है कि… प्रावधान में कोई बदलाव नहीं किया गया है और न हीं सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थता दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया नीति संहिता) नियम, 2021 के तहत सामग्री को ब्लॉक करने के लिए कोई नया प्रावधान जोड़ा गया है.’

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दिशा-निर्देशों के भाग तीन के नियम 16 को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति है. इस नियम के तहत आपात स्थिति में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव सामग्री को अंतरिम रूप से ब्लॉक करने का निर्देश दे सकते हैं.

बयान के अनुसार, ‘यहां स्पष्ट किया जाता है कि यह कोई नया प्रावधान नहीं है. यह पिछले 11 साल से (2009 से) अस्तित्व में है और प्रावधान के तहत अधिकार का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के सचिव द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (जनता के लिए सूचना को ब्लॉक करने की प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 के तहत किया जाता है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)