दिल्ली हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में पत्रकार और बिजनेस स्टैंडर्ड के ख़िलाफ़ दर्ज मामला रद्द किया

बिजनेस स्टैंडर्ड में पत्रकार मिताली सरन द्वारा मार्च 2016 में लिखे गए एक लेख के आधार पर आपराधिक अवमानना की शिकायत दर्ज कराई गई थी. शिकायतकर्ता वकील लोहिताक्ष शुक्ला का कहना था कि लेख में संघ और इसके सदस्यों के ख़िलाफ़ अपमानजनक बातें लिखी गई थीं और यह तथ्यों पर आधारित नहीं थी.

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पत्रकार मिताली सरन (फोटो साभारः ट्विटर)

बिजनेस स्टैंडर्ड में पत्रकार मिताली सरन द्वारा मार्च 2016 में लिखे गए एक लेख के आधार पर आपराधिक अवमानना की शिकायत दर्ज कराई गई थी. शिकायतकर्ता वकील लोहिताक्ष शुक्ला का कहना था कि लेख में संघ और इसके सदस्यों के ख़िलाफ़ अपमानजनक बातें लिखी गई थीं और यह तथ्यों पर आधारित नहीं थी.

पत्रकार मिताली सरन (फोटो साभारः ट्विटर)
पत्रकार मिताली सरन (फोटो साभारः ट्विटर)

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए पत्रकार मिताली सरन और बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार के खिलाफ दर्ज आपराधिक अवमानना की शिकायत सोमवार को रद्द कर दी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने कहा कि शिकायत दर्ज करने लायक नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि शिकायतकर्ता लोहिताक्ष शुक्ला को पीड़ित शख्स के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.

यह शिकायत बिजनेस स्टैंडर्ड में मिताली सरन द्वारा ‘द लॉन्ग एंड शॉर्ट ऑफ इट’ शीर्षक से मार्च 2016 को प्रकाशित लेख के आधार पर दर्ज की गई थी.

शिकायतकर्ता अधिवक्ता लोहिताक्ष शुक्ला का कहना था कि इस लेख में आरएसएस और इसके सदस्यों के खिलाफ अपमानजनक बातें लिखी गई थीं और यह तथ्यों पर आधारित नहीं थी.

उन्होंने कहा कि आरएसएस के सदस्य के रूप में उनकी प्रतिष्ठा लेख के प्रकाशन से प्रभावित हुई है.

बिजनेस स्टैंडर्ड और इसके संपादकीय निदेशक एके भट्टाचार्य ने इस आधार पर इस शिकायत को रद्द करने की मांग की थी कि अगर कोई मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर मानहानि के अपराध पर संज्ञान लेता है, जो खुद पीड़ित नहीं है तो इस तरह के मामले में आरोपी की सुनवाई और सजा अवैध होगी.

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि यह मामला याचिकाकर्ताओं को प्रताड़ित करने के लिए दायर किया गया था.

पत्रकार मिताली सरन ने शिकायत रद्द करने की मांग करते हुए कहा था कि शिकातयकर्ता ने अपनी शिकायत के समर्थन में कोई साक्ष्य पेश नहीं किए थे.

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता कोई भी सबूत पेश करने में असफल रहा कि किस तरह से उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा.

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता का कहना था कि इस लेख की वजह से आरएसएस ने उन्हें संगठन छोड़ने के लिए कहा था, लेकिन इस दावे के लिए वह किसी गवाह को पेश नहीं कर सका.

शुक्ला ने खुद को आरएसएस का सदस्य होने का दावा किया था, लेकिन वह इसे सिद्ध करने के लिए कोई गवाह या सामग्री पेश नहीं कर सके.

अदालत ने कहा, ‘उन्होंने (शिकायतकर्ता) ने यह दावा किया है कि इस लेख की वजह से उनके दोस्तों ने उन्हें आरएसएस छोड़ने को कहा, लेकिन इस दावे के समर्थन में वह किसी गवाह को पेश नहीं कर ससके. वह यह सिद्ध नहीं कर सके कि इस लेख की वजह से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है या उन्होंने अपने दोस्तों या आरएसएस की नजरों में आरएसएस की प्रतिष्ठा को कमतर किया है. इसलिए ट्रायल कोर्ट ने इस पहलू पर अपना कोई विचार न रखने का फैसला किया है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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