उत्तराखंड के अस्पतालों पर कैग की फ़टकार- आईसीयू नहीं, बिना लाइसेंस के चल रहे एक्स-रे मशीन

कैग ने साल 2014 से 2019 के बीच उत्तराखंड के स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए कार्यों का आकलन किया है. इसके लिए चार जिलों के छह अस्पतालों को चुना गया था. ख़ास बात ये है कि राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास स्वास्थ्य विभाग का भी प्रभार था.

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त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)

कैग ने साल 2014 से 2019 के बीच उत्तराखंड के स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए कार्यों का आकलन किया है. इसके लिए चार जिलों के छह अस्पतालों को चुना गया था. ख़ास बात ये है कि राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास स्वास्थ्य विभाग का भी प्रभार था.

त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)
त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उत्तराखंड विधानसभा में पिछले हफ्ते शनिवार को पेश की गई एक नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) रिपोर्ट में राज्य की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कड़ी फटकार लगाई गई है.

कैग ने कहा कि राज्य के जिला अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं जैसे कि आईसीयू सुविधा, एक्स-रे मशीन और एंबुलेंस इत्यादि की कमी के साथ-साथ इसमें अनियमितताएं भी बरती जा रही हैं.

खास बात ये है कि बीते मंगलवार को राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास स्वास्थ्य विभाग था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राष्ट्रीय ऑडिटर ने साल 2014 से 2019 के दौरान राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए कार्यों का आकलन किया है. इसके लिए चार जिलों के छह अस्पतालों को चुना गया, जिसमें अलमोड़ा और हरिद्वार के जिला अस्पताल एवं जिला महिला अस्पताल तथा उधम सिंह नगर और चमोली के अस्पताल शामिल हैं.

कैग ने पाया कि साल 2014-19 के दौरान आपातकालीन सर्जरी के लिए किसी भी अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर नहीं था. सिर्फ दो अस्पतालों में ही आईसीयू सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन वो भी जरूरी उपकरणों और योग्य लोगों की कमी के चलते बंद पड़ा हुआ था.

चमोली अस्पताल में 20 फरवरी 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा एक ट्रॉमा सेंटर को उद्घाटन किया गया था, लेकिन 20 मार्च 2020 तक यह बंद पड़ा रहा. इसकी वजह ये है कि यहां पर विशेषज्ञों की भर्ती नहीं हुई और सीटी स्कैन जैसे जरूरी उपकरण भी नहीं थे.

एक दवा काउंटर पर दौरे के दौरान कैग ने पाया कि सिर्फ 41 फीसदी मरीजों को पूरी दवाइयां दी जा रही हैं. चमोली में सिर्फ 17 फीसदी लोगों को ही पूरी दवा मिल पाती है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इस तरह मुफ्त में दवा मुहैया कराने के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाई है, 59 फीसदी ओपीडी मरीजों को दवा खरीदने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने होते हैं.’

कैग की रिपोर्ट में एक बड़ी हैरानी वाली बात ये निकलकर सामने आई है कि ऑडिट में शामिल किए गए किसी भी अस्पताल ने एक्स-रे मशीन के इस्तेमाल के लिए लाइसेंस प्राप्त नहीं किया था.

यह एटॉमिक एनर्जी (रेडिएशन प्रोटेक्शन) रूल्स, 2004 की धारा तीन का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि एक्स-रे और सीटी स्कैन यूनिट के इस्तेमाल के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) से लाइसेंस प्राप्त करना होगा.

कैग ने ये भी कहा कि इन अस्पतालों में से एक में भी बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) वाले एंबुलेंस नहीं थे और एक भी एंबुलेंस में एएलएस सिस्टम नहीं था. इतना ही नहीं ये एंबुलेंस बिना इंश्योरेंस, फिटनेस और प्रदूषण सर्टिफिकेट के चल रहे थे.

कैग ने बताया कि नौ में से आठ एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर तो था, लेकिन इनका इस्तेमाल टेक्नीशियन के बजाय ड्राइवर द्वारा कराया जा रहा था.

इसके अलावा ऑडिट में यह भी पाया गया कि अस्पतालों में बेडशीट नियमित रूप से नहीं बदले जा रहे थे. इस तरह मरीजों को साफ-सुथरा बेड, बेडशीट और तकिया नहीं मुहैया कराया जा रहा था. इसके साथ ही अस्पतालों में मरीजों को शुद्ध खान-पान भी मुहैया नहीं कराया जा रहा था.

मातृत्व सेवाओं के संबंध में ऑडिटर ने कहा कि चमोली को छोड़कर सभी जिला अस्पतालों में आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) की गोलियां उपलब्ध थीं. चमोली में 2014-17 के दौरान आईएफए टैबलेट उपलब्ध नहीं थे और वर्ष 2018-19 के दौरान 223 दिन स्टॉक में नहीं था.

इस रिपोर्ट पर राज्य के मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने कहा, ‘कैग ने कई चीजों पर ध्यान खींचा है, लेकिन इस 2019 तक के लिए है. 2019 के बाद कई मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति की गई है और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास भी किया गया है.’