भ्रष्टाचार से अनोखी लड़ाई, बिना पैन-पते के कॉरपोरेट चंदे का 99 फीसदी भाजपा को

पार्टियों को चार साल में कॉरपोरेट से 957 करोड़ रुपये का चंदा, इसमें से सबसे ज़्यादा 705.81 करोड़ भाजपा को मिला है.

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पार्टियों को चार साल में कॉरपोरेट से 957 करोड़ रुपये का चंदा, इसमें से सबसे ज़्यादा 705.81 करोड़ भाजपा को मिला है.

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नवंबर, 2016 में भाजपा का भ्रष्टाचार और कालेधन के ख़िलाफ़ संकल्प मार्च. (फोटो: पीटीआई)

 

नई दिल्ली: देश की राजनीति में भ्रष्टाचार मुद्दा बना हुआ है. सरकार और प्रधानमंत्री का दावा है कि वे  कालाधन पर सर्जिकल स्ट्राइक करके उसे सरकारी खजाने में डाल चुके हैं और भ्रष्टाचार मिट गया है. लेकिन हालत यह है कि भाजपा खुद कॉरपोरेट घरानों से बिना पैन डिटेल्स और बिना पते के चंदा ले रही है.

देश के राजनीतिक दलों को पिछले चार साल के दौरान उद्योग घरानों से 956.77 करोड़ रुपये का चंदा मिला. यह राशि इन दलों को ज्ञात स्रोतों से प्राप्त कुल राशि का 89 प्रतिशत है. इसमें सबसे ज्यादा 705.81 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है.

रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय पार्टियों को 1933 दानदाताओं से 384.04 करोड़ रुपये ऐसे मिले हैं जिसमें कोई पैन नंबर डिटेल्स नहीं हैं. पार्टियों ने 1546 दानदाताओं से 355.08 करोड़ रुपये ऐसे लिए जिसमें दानदाता का कोई पता दर्ज नहीं है.

159.59 करोड़ रुपये ऐसे चंदे में दिए गए हैं जिसमें न तो पैन है, न ही पता है. बिना पैन और बिना पते के इस राशि का 99 प्रतिशत भाजपा को गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012-13 से लेकर 2015-16 तक राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों को कंपनियों और उद्योग घरानों से 956.77 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. इनमें भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा 2,987 कंपनियों से 705.81 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 167 औद्योगिक घरानों से 198.16 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. यह रिपोर्ट पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग को दी गई जानकारी पर आधारित है.

उद्योग घरानों से इस दौरान राष्ट्रीवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को 50.73 करोड़ रुपये, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) को 1.89 करोड़ रुपये और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई)को 18 लाख रुपये रुपये का चंदा मिला.

ADR
रिपोर्ट में बहुजन समाजवादी पार्टी बसपा को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि पार्टी ने कहा है कि उसे 2012-13 और 2015-16 के दौरान किसी भी दानदाता से 20,000 रुपये से अधिक का चंदा नहीं मिला है.

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2012-13 से लेकर 2015-16 के बीच राष्ट्रीय स्तर के पांच राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक का कुल 1,070.68 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ जिसमें से 89 प्रतिशत यानी 956.77 करोड़ रुपये उन्हें कंपनियों और उद्योग घरानों से प्राप्त हुआ.

एडीआर की इससे पहले जारी रिपोर्ट कहती है कि 2004-05 से 2011-12 के बीच आठ वर्ष में विभिन्न उद्योग घरानों ने राजनीतिक दलों को 378.89 करोड़ रुपये का चंदा दिया. यह राशि इन दलों को ज्ञात स्रोतों से प्राप्त कुल राशि का 87 प्रतिशत थी.

राजनीतिक दलों को हर साल उन्हें 20,000 रुपये से अधिक राशि देने वाले दानदाता का पूरा ब्योरा चुनाव आयोग को देना होता है.

रिपोर्ट के अनुसार 2012-13 से लेकर 2015-16 के बीच भाजपा और कांग्रेस को 20,000 रुपये से अधिक राशि दानस्वरूप देने वाले उद्योग घराने अथवा कंपनियों का योगदान क्रमश: 92 प्रतिशत और 85 प्रतिशत रहा है. सीपीआई और सीपीएम को मिलने वाला औद्योगिक अनुदान क्रमश: चार प्रतिशत और 17 प्रतिशत रहा है.

दिल्ली स्थित एडीआर के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर के दलों को सबसे ज्यादा चंदा 2014-15 में प्राप्त हुआ जब लोकसभा के चुनाव हुए. वर्ष 2012-13 से लेकर 2015-16 के चार वर्षों में कुल जितना चंदा मिला उसका 60 प्रतिशत अकेले 2014-15 में चुनावी वर्ष में प्राप्त हुआ.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2012-13 के दौरान कोई चंदा नहीं देने के बावजूद बाकी के तीन साल में सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट ने सबसे ज्यादा अनुदान दिया. इस ट्रस्ट ने तीन साल में 35 बार में कुल मिलाकर 260.87 करोड़ रुपये का चंदा दिया.

इसमें भाजपा को 193.62 करोड़ रुपये और कांग्रेस आईएनसी को 57.25 करोड़ रुपये दिए गए. इसके बाद सबसे ज्यादा अनुदान देने वालों में दूसरा नंबर जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट का रहा. चार साल की आलोच्य अवधि में इस ट्रस्ट ने भाजपा को 70.7 करोड़ और कांग्रेस को 54.1 करोड़ रुपये का चंदा दिया.

कम्युनिस्ट पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वालों में एसोसिएशनें और यूनियनें शामिल हैं. सीपीएम को विभिन्न संघों से 1.09 करोड़ रुपये और कम्युनिस्ट पार्टी को 14.64 लाख रुपये विभिन्न संगठनों और यूनियनों से प्राप्त हुए.

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