वर्दी वाला ग़ुंडा, दुल्हन मांगे दहेज़, दहेज़ में रिवॉल्वर जैसे उपन्यासों के रचयिता वेद प्रकाश शर्मा ने शुक्रवार देर रात दुनिया को अलविदा कह दिया.

फोटो साभार: वेद प्रकाश शर्मा डॉट कॉम
साहित्य की मुख्यधारा से इतर एक सोता फूटता है जिसे लुगदी साहित्य या पल्प फिक्शन के नाम से जाना जाता है. शुक्रवार देर रात इसके एक मजबूत स्तंभ वेद प्रकाश शर्मा ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
शुक्रवार रात तकरीबन 12 बजे लुगदी साहित्य के गढ़ कहलाने वाले उत्तर प्रदेश के मेरठ के शास्त्रीनगर में स्थित अपने घर में उन्होंने आखिरी सांस ली. वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे. मूल रूप से मुजफ्फरनगर के बिरहा गांव के निवासी वेद प्रकाश शर्मा का जन्म 06 जून, 1955 को हुआ था.
उनका बेस्टसेलर उपन्यास वर्दी वाला गुंडा की अब तक आठ करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं. यह उपन्यास 1993 में पहली बार प्रकाशित हुआ था. इसी उपन्यास से उन्हें लोकप्रियता हासिल हुई. लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह ‘क्लासिक’ का दर्जा रखता है. बताया जाता है कि पहले ही दिन पूरे देश में इस उपन्यास की 15 लाख प्रतियां बिकीं थीं.

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पिछले साल तहलका मैगजीन से बात करते हुए उन्होंने इस उपन्यास के लिखे जाने के पीछे की कहानी सुनाई थी. उन्होंने बताया था, ‘एक शाम मैंने देखा कि उत्तर प्रदेश पुलिस का एक वर्दीधारी सिपाही नशे में धुत चौराहे पर इधर-उधर लाठियां भांज रहा है. इस सिपाही को देखकर पहली दफा मेरे मन में ख़्याल आया कि ये तो वर्दी की गुंडागर्दी है और इसी से ‘वर्दी वाला गुंडा’ नाम मेरे ज़ेहन में आया. मुझे लगा कि ये रोचक नाम है और फिर मैं इस नाम से उपन्यास लिखने लगा. थोड़ा लिखने के बाद महसूस हुआ कि कहानी में अभी दम नहीं है, कहानी कमज़ोर है. इसी दौरान एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हो गई और मैंने इस घटना को भी अपने उपन्यास में शामिल किया. लोगों ने इसे बहुत पसंद किया. मुझे लगता है कि पाठकों को कथानक से ज्यादा ‘वर्दी वाला गुंडा’ नाम पसंद आया.’
अपने उपन्यासों में उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के बारे में लिखा. जैसे दहेज के कारण युवतियों का जला देने या उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाओं से प्रेरित होकर उन्होंने ‘दुल्हन मांगे इंसाफ’ नाम का उपन्यास लिखा.
इसी तरह, कुछ घटनाएं ऐसी भी सामने आती हैं जिसमें पता चलता है कि लड़के वालों के ख़िलाफ दहेज का झूठा मामला दर्ज़ करा दिया जाता है. इन घटनाओं से प्रेरित होकर उन्होंने ‘दुल्हन मांगे दहेज’ नाम का उपन्यास लिखा.
युवावस्था में ही उन्हें लेखन से लगाव था. लिखने पढ़ने का ये सिलसिला उन्हें ताउम्र जारी रहा. शुरुआती दौर में खुद के लिखे उपन्यासों को बतौर लेखक उनका नाम नहीं मिलता था.
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1973 में आए उपन्यास आग के बेटे के कवर पर उनका नाम बतौर लेखक पहली बार प्रकाशित किया गया. इसके बाद उन्हें प्रसिद्धि मिलने लगी. उनके उपन्यासों की 50,000 से लेकर एक लाख प्रतियां छपने लगीं.
इस रिपोर्ट के अनुसार, उनके 100वें उपन्यास कैदी नं. 100 की 2.5 लाख प्रतियां बिकी थीं. 1985 में उन्होंने तुलसी पॉकेट बुक्स के नाम से प्रकाशन शुरू किया. उनके 70 से ज्यादा उपन्यास इसी प्रकाशन ने छापे हैं.

फिल्म सबसे बड़ा खिलाड़ी की कहानी वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास लल्लू पर आधारित है. फोटो साभार: यूट्यूब
उपन्यास के अलावा उन्होंने फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं हैं. कई फिल्में तो उनके उपन्यास से प्रेरित होकर बनाई गईं. 1995 में आई अक्षय कुमार और ममता कुलकर्णी की फिल्म सबसे बड़ा खिलाड़ी उनके ही उपन्यास लल्लू पर आधारित थी. इस फिल्म में अक्षय कुमार ने लल्लू का किरदार निभाया था. इसके अलावा अक्षय कुमार की एक और फिल्म इंटरनेशनल खिलाड़ी जिसमें वे ट्विंकल खन्ना के साथ नज़र आए थे, की पटकथा भी वेद प्रकाश शर्मा ने लिखी थी.
उनका बचपन बेहद अभावों में गुज़रा. वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे थे. एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी प्राकृतिक-अप्राकृतिक मौत हो गई. अपने पीछे वे पत्नी मधु शर्मा, तीन बेटियों करिश्मा, गरिमा और खुशबू और बेटे शगुन शर्मा को छोड़ गए हैं.
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