संसदीय समिति सदस्यों ने ओटीटी, सोशल मीडिया मंचों के लिए नए नियमों पर सवाल खड़े किए

संसदीय समिति के सदस्यों ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा कि क्या नियम कानूनी ढांचे के अनुरूप हैं? नियामक व्यवस्था में केवल नौकरशाह ही क्यों हैं और नागरिक समाज, न्यायपालिका तथा पेशेवर लोगों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?

/
(फोटो साभार: nominalize/Pixabay)

संसदीय समिति के सदस्यों ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा कि क्या नियम कानूनी ढांचे के अनुरूप हैं? नियामक व्यवस्था में केवल नौकरशाह ही क्यों हैं और नागरिक समाज, न्यायपालिका तथा पेशेवर लोगों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?

(फोटो साभार: nominalize/Pixabay)
(फोटो साभार: nominalize/Pixabay)

नई दिल्ली: सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के कुछ सदस्यों ने ओटीटी और सोशल मीडिया मंचों के विनियमन के लिए सरकार द्वारा तय किए गए नए नियमों पर सोमवार को सवाल उठाए.

सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग कंपनियों के लिए नियम कड़े करते हुए केंद्र ने पिछले महीने वॉट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, नेटफ्लिक्स, यूट्यूब और अमेजॉन प्राइम वीडियो आदि के लिए इंटरमीडियरी गाइडलाइन एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता की घोषणा की थी.

संसदीय समिति के समक्ष सोमवार को सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी पेश हुए. समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर हैं.

समिति के सूत्रों ने कहा कि कुछ सदस्यों और अध्यक्ष ने अधिकारियों से कई सवाल पूछे, जिनमें यह भी पूछा गया कि क्या नियम कानूनी ढांचे के अनुरूप हैं.

समिति में अलग-अलग दलों के सांसदों ने अधिकारियों से पूछा कि नियामक व्यवस्था में केवल नौकरशाह ही क्यों हैं और नागरिक समाज, न्यायपालिका तथा पेशेवर लोगों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है.

समिति के सदस्यों को सरकारी अधिकारियों ने बदलते समय में इस तरह के नियमों की आवश्यकता को उचित ठहराया और इसे लाने के बारे में तर्क पेश किए.

इससे पहले कांग्रेस ने कहा था कि नए सोशल मीडिया नियमों में संसदीय स्वीकृति का अभाव है और इनके दुरूपयोग होने की संभावना है.

कांग्रेस का कहना है कि नए नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व रचनात्कता के लिए ‘बेहद खतरनाक’ हैं. इसमें नौकरशाह को असीम शक्तियां दी गई है, जिसका दुरूपयोग हो सकता है.

बता दें कि बीते 25 फरवरी को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद ने ओटीटी मंच और डिजिटल मीडिया के लिए नई नीतियों की घोषणा की थी.

इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के नाम से लाए गए ये दिशानिर्देश देश के टेक्नोलॉजी नियामक क्षेत्र में करीब एक दशक में हुआ सबसे बड़ा बदलाव हैं. ये इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2011 के कुछ हिस्सों की जगह भी लेंगे.

नए नियमों के हिसाब से बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को किसी उचित सरकारी एजेंसी या अदालत के आदेश/नोटिस पर एक विशिष्ट समय-सीमा के भीतर गैर कानूनी सामग्री हटानी होगी.

इन नए बदलावों में ‘कोड ऑफ एथिक्स एंड प्रोसीजर एंड सेफगार्ड्स इन रिलेशन टू डिजिटल/ऑनलाइन मीडिया’ भी शामिल हैं. ये नियम ऑनलाइन न्यूज और डिजिटल मीडिया इकाइयों से लेकर नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी लागू होंगे.

नियमों के तहत स्वनियमन के अलग-अलग स्तरों के साथ त्रिस्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली भी स्थापित की गई है. इसमें पहले स्तर पर प्रकाशकों के लिए स्वनियमन होगा, दूसरा स्तर प्रकाशकों के स्वनियामक निकायों का स्वनियिमन होगा और तीसरा स्तर निगरानी प्रणाली का होगा.

नियम आने के बाद ऑनलाइन प्रकाशकों के संगठन डिजिपब ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर अपना विरोध भी जताया है.

ऑनलाइन प्रकाशनों ने नए नियमों को अनुचित, इनके नियमन की प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक और इनके क्रियान्वयन के तरीके को अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन बताया है.

वहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए विवादित डिजिटल मीडिया नियमों को वापस लेने की मांग करते हुए कहा था कि नए डिजिटल मीडिया नियमों से प्रेस की आजादी को धक्का लगेगा.

गिल्ड ने कहा था कि ‘बेलगाम सोशल मीडिया’ को कंट्रोल करने के नाम पर सरकार ‘मीडिया को मिली संवैधानिक सुरक्षा’ को छीन नहीं सकती है.

राज्यसभा में शिवसेना सदस्य ने प्रेस की आजादी का मुद्दा उठाया

राज्यसभा में सोमवार को शिवसेना सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने सरकार से सवाल करने वाले मीडिया संगठनों पर ‘नियंत्रण के लिए’ तरीके सुझाने की खातिर कथित तौर पर पिछले साल मंत्रियों का एक समूह गठित किए जाने का मुद्दा उठाया.

उन्होंने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि नौ मंत्रियों के समूह का गठन कथित तौर पर कुछ मीडिया एजेंसियों को काबू करने के लिए किया गया था जिनके सुर सरकार के खिलाफ थे.

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्र के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ.’

शिवसेना सदस्य के अनुसार, समूह को कहा गया था कि उन्हें कैसे काबू किया जाए. और उन एजेंसियों को कैसे बढ़ावा दिया जाए जो सरकार के पक्ष में बोल रही हैं.

मंत्रियों के समूह में कथित तौर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, कपड़ा और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर शामिल थे.

चतुर्वेदी ने कहा, ‘हम लोकतंत्र में ऐसी एजेंसियों के बीच कैसे भेदभाव कर सकते हैं जो देश के लोगों के लिए बोलती हैं और जो सरकार के खिलाफ बोलती हैं तथा उनसे सवाल करती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘क्या यह अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ प्रेस की आजादी के खिलाफ नहीं है?’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq