चुनाव आयोग ने चुनावी बॉन्ड पर रोक का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रखा

इस संबंध में याचिका दायर करने वाली ग़ैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से कहा गया कि इस तरह के गोपनीय चुनावी बॉन्ड के चलते ‘भ्रष्टाचार को क़ानूनी मान्यता’ मिल रही है और चूंकि सरकार फायदा पहुंचा सकती है, इसलिए कंपनियां सत्ताधारी दल को ही इसके ज़रिये फंड करेंगी.

इस संबंध में याचिका दायर करने वाली ग़ैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से कहा गया कि इस तरह के गोपनीय चुनावी बॉन्ड के चलते ‘भ्रष्टाचार को क़ानूनी मान्यता’ मिल रही है और चूंकि सरकार फायदा पहुंचा सकती है, इसलिए कंपनियां सत्ताधारी दल को ही इसके ज़रिये फंड करेंगी.

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(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें पश्चिम बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और पुदुचेरी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर विवादित चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग की गई थी.

चुनाव सुधार की दिशा में कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर की गई याचिका पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमणियन ने सुनवाई की. इसी संबंध में एडीआर की एक और याचिका पहले से ही लंबित है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पारदर्शिता की वकालत की, लेकिन उन्होंने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की समर्थन नहीं किया.

आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि चुनावी बॉन्ड को लेकर पारदर्शिता के गंभीर सवाल हैं, जिस पर बहस के दौरान विचार किया जा सकता है और इस पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.

आयोग ने कहा कि बॉन्ड पर रोक लगाना हमें बेहिसाब कैश ट्रांसफर वाले दौर में ले जाएगा, जिसके चलते और नुकसान होंगे.

20 जनवरी, 2020 को शीर्ष अदालत ने 2018 के चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इसे लेकर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था.

याचिकाकर्ता एडीआर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ प्रशांत भूषण ने कहा कि इस तरह के गोपनीय बॉन्ड के चलते ‘भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता’ मिल रही है. उन्होंने कहा कि इस तरह की योजना के खिलाफ भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने कड़ी आपत्ति जताई थी.

जब इसे लेकर मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठाया तो भूषण ने बताया कि चूंकि सरकार फायदा पहुंचा सकती है, इसलिए कंपनियां सत्ताधारी दल को ही इसके जरिये फंड करेंगी. इसके साथ ही सरकार ये भी पता लगा सकती है कि किसने, किसको चुनावी बॉन्ड के जरिये चंदा दिया है, जबकि बाकी लोगों के लिए ये गोपनीय बना रहता है.

प्रशांत भूषण ने ये भी कहा कि इस योजना को पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए लाया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने इसे वित्त विधेयक के जरिये पारित किया, ताकि ये राज्यसभा में न जा पाए जहां सरकार बहुमत में नहीं थी. इस तरह की योजना को वित्त विधेयक के तहत नहीं बनाया जा सकता है.

इस पर सीजेआई ने कहा, ‘यदि आपकी बात सही है तो हमें पूरे कानून को ही रद्द करना पड़ेगा. ये काम अंतरिम आदेश के जरिये कैसे हो सकता है?’

इस पर भूषण ने कहा कि वे अगले चरण में चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश की मांग कर रहे हैं.

वहीं केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनाव आयोग ने बॉन्ड के बिक्री की इजाजत दी है.

उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड का मकसद काले धन की व्यवस्था पर रोक लगाना है, क्योंकि इसमें बैंकिंग चैनल का इस्तेमाल होता है. इस पर भूषण ने कहा कि चुनावी बॉन्ड खरीदने वाला व्यक्ति कैश के जरिये भी इसे खरीद सकता है.

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