केंद्र ने विज्ञान संस्थान को हिंदी में काम का लक्ष्य पूरा करने को कहा, वैज्ञानिकों ने की आलोचना

भारत के सबसे पुराने विज्ञान शोध संस्थान इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस को जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि वे हिंदी में कामकाज के लिए पर्याप्त कदम उठाएं. एक वैज्ञानिक का कहना है कि यह चिंताजनक है कि विज्ञान को लेकर स्थापित संस्थान विज्ञान की बजाय भाषा पर बात कर रहा है.

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भारत के सबसे पुराने विज्ञान शोध संस्थान इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस को जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि वे हिंदी में कामकाज के लिए पर्याप्त कदम उठाएं. एक वैज्ञानिक का कहना है कि यह चिंताजनक है कि विज्ञान को लेकर स्थापित संस्थान विज्ञान की बजाय भाषा पर बात कर रहा है.

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इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस. (फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने भारत से सबसे पुराने विज्ञान शोध संस्थान ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ (आईएसीएस) से कहा है कि वे हिंदी भाषा में कार्य करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं.

इसे लेकर देश भर के वैज्ञानिकों ने नाराजगी जताई है और राजभाषा के नाम पर इसे ‘उत्पीड़न’ करार दिया है.

साल 1876 से ही विज्ञान की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाते हुए आईएसीएस ने कई सारे खोज किए हैं, जिसमें वर्ष 1928 का रमन इफेक्ट भी शामिल है. इसे लेकर साल 1930 में सीवी रमन को नोबेल पुरस्कार मिला था.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, आईएसीएस के कार्यवाहक रजिस्ट्रार पूर्वाशा बनर्जी ने 19 मार्च को जारी किए एक सर्कुलर में कहा है कि गृह मंत्रालय ने इस बात का संज्ञान लिया है कि भारत सरकार द्वारा तय किए गए हिंदी भाषा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए संस्थान ‘उचित परिणाम’ नहीं दे पा रहा है.

इस सर्कुलर को संस्थान के निदेशक, डीन, अध्यक्षों, स्कूल प्रमुखों एवं अन्य विभागों में भेजा गया था और कहा गया कि पहले से ही एक हिंदी ऑफिसर की नियुक्ति हुई है, इस संबंध में उनसे मदद ली जाए.

खास बात ये है कि 23 मार्च को संस्थान ने एक और सर्कुलर जारी किया और 19 मार्च को जारी किए गए पिछले सर्कुलर को निरस्त कर दिया. नए पत्र में मामले को लेकर थोड़े नरम लहजे में बात की गई और कम आरोप लगाया गया है.

इसमें कहा गया, ‘डीएसटी (विज्ञान एवं तकनीकी विभाग) कहा है कि आईएसीएम में पर्याप्त ढंग से राजभाषा को लागू नहीं किया जा रहा है. लोगों से गुजारिश है कि वे इस बात का ध्यान रखें और मदद के लिए संस्थान के पार्ट-टाईम हिंदी ऑफिसर से संपर्क करें.’

मालूम हो कि मौजूदा केंद्र सरकार ‘हिंदी’ थोपने के लिए जानी जाती है, जिसे लेकर गैर-हिंदी भाषा विरोध करते आए हैं.

आईएसीए के लोगों का कहना है कि इससे पहले उन्हें कभी भी राजभाषा को सही से लागू न करने या इसके टार्गेट को पूरा करने के लिए आरोप नहीं लगाया गया था.

19 मार्च को जारी सर्कुलर में कहा गया था कि 55 फीसदी पत्राचार हिंदी में होने चाहिए और हिंदी में प्राप्त किए गए पत्र का जवाब हिंदी में ही दिया जाहिए. इसके अलावा 33 फीसदी फाइल नोटिंग्स को हिंदी में तैयार करने और फाइलों के नाम हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखने के लिए कहा गया था.

इसके साथ ही हर तिमाही के अंत में सभी विभागों को एक प्रोग्रेस रिपोर्ट तैयार कर हिंदी सेल को भेजने का आदेश दिया गया था. सर्कुलर में कहा गया कि इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में राजभाषा विभाग का दौरा होने पर संस्थान ‘असहज परिस्थितियों’ से बचाया जा सके.

इस मामले को लेकर वैज्ञानिक बिकाश सिन्हा ने कहा, ‘ये बेहद चिंताजनक बात है कि डॉ. महेंद्र लाल सरकार द्वारा स्थापित किया गया संस्थान विज्ञान की जगह हिंदी भाषा पर बात कर रहा है.’

सरकार एक प्रसिद्ध चिकित्सक, समाज सुधारक तथा विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान के एक उत्साही प्रचारक थे. कॉलेज स्ट्रीट और बॉउबाजार स्ट्रीट (संस्थान अब जादवपुर में है) के चौराहे पर लीज पर लिए गए एक घर में 29 जुलाई, 1876 को इंडियन एसोसिएशन ऑफ द कल्टिवेशन ऑफ साइंस की स्थापना हुई थी. सरकार अपनी मृत्यु तक संस्थान के सचिव थे.

सरकार के अलावा आचार्य जगदीश चंद्र बोस, आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे और चुन्नीलाल बसु जैसे कई प्रख्यात वैज्ञानिकों ने आईएसीएस में भाषण दिया था.

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