केरल में वोटिंग के दिन मुख्यमंत्री विजयन बोले- सबरीमला के भगवान एलडीएफ के साथ हैं

सबरीमाला मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करने के लिए राज्य के वामपंथी दलों को विरोध झेलना पड़ा है. विपक्ष ने कहा है कि डर के मारे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भगवान का नाम ले रहे हैं.

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केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन. (फोटो: पीटीआई)

सबरीमला मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करने के लिए राज्य के वामपंथी दलों को विरोध झेलना पड़ा है. विपक्ष ने कहा है कि डर के मारे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भगवान का नाम ले रहे हैं.

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन. (फोटो: पीटीआई)
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: साल 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद केरल विधानसभा चुनाव में भी सबरीमला मुद्दा छाया रहा. सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही नहीं, बल्कि वामपंथी दल ने भी इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश की.

बीते मंगलवार को राज्य में हुए वोटिंग के दिन मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि ‘देवों (भगवान) की सेना’ सत्ताधारी माकपा की अगुवाई वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के साथ है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विजयन ने पत्रकारों से कहा, ‘केरल के लोग एलडीएफ को ऐतिहासिक जीत दिलाएंगे. सरकार संकट में लोगों के साथ खड़ी थी. वे एलडीएफ का समर्थन करेंगे.’

सबरीमला मामले पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘भगवान अयप्पा और देवों की सेना एलडीएफ के साथ है क्योंकि संकट के समय ये सरकार लोगों के साथ खड़ी थी.’

पिनाराई विजयन ने नायर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले नायर सर्विस सोसायटी (एनएसएस) के महासचिव जी. सुकुमारन नायर के उस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए ये टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘ऐसी सरकार को चुना जाना चाहिए जो धर्म की रक्षा करता हो.’

मुख्यमंत्री का ही अनुसरण करते हुए माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य कोडियेरी बाराकृष्णनन ने कहा, ‘यदि भगवान का वोट होता तो बेशक एलडीएफ को ही ये वोट मिलता. सरकार ने सभी को सुरक्षा प्रदान की है. धार्मिक लोग बड़ी संख्या में एलडीएफ के समर्थन में आगे आ रहे हैं.’

मालूम हो कि एनएसएस, जिसने कांग्रेस का समर्थन किया है, साल 2018 में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के विरोध में रहा है, जिसमें न्यायालय ने सभी वर्ग की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की थी.

कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत न देना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है. लिंग के आधार पर भक्ति (पूजा-पाठ) में भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

इससे पहले इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और चूंकि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है, तो इससे मंदिर की पवित्रता बनी नहीं रह सकेगी.

केरल में 14.5 फीसदी जनसंख्या नायर समुदाय की है. एलडीएफ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जबरदस्त समर्थन किया था, जिसका राजनीतिक खामियाजा उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. वामपंथी गठबंधन 20 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई थी.

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस ने हमला बोला और कहा कि चूंकि वे चुनावी नतीजों से डरे हुए हैं इसलिए ‘भगवान’ से मदद मांग रहे हैं. वहीं भाजपा ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को ले जाकर विजयन ने ‘असुर’ का काम किया है.

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