कोविड-19: हाईकोर्ट ने कहा- गुजरात ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ की​ स्थिति की ओर बढ़ रहा है

गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की कार्यवाही शुरू की. कोरोना वायरस की स्थिति को लेकर हाईकोर्ट में दाख़िल इस तरह की यह दूसरी जनहित याचिका है. बीते साल हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की कार्यवाही शुरू की. कोरोना वायरस की स्थिति को लेकर हाईकोर्ट में दाख़िल इस तरह की यह दूसरी जनहित याचिका है. बीते साल हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)
गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य में कोरोना वायरस की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका की कार्यवाही शुरू की. मीडिया में महामारी को लेकर आई खबरों में यह संकेत दिया गया था कि प्रदेश ‘स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति’ की तरफ बढ़ रहा है.

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने एक मौखिक आदेश के जरिये उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को खुद नई जनहित याचिका दायर करने को कहा, जिसका शीर्षक ‘अनियंत्रित बढ़ोतरी और कोविड नियंत्रण में गंभीर प्रबंधन’ मुद्दा है.

यह कोरोना वायरस की स्थिति को लेकर प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा दाखिल इस तरह की दूसरी जनहित याचिका है. पहली जनहित याचिका पिछले साल दायर की गई थी और उस पर अब भी नियमित अंतराल पर सुनवाई चल रही है.

मुख्य न्यायाधीश ने रजिस्ट्री को सूचित किया कि नई जनहित याचिका में गुजरात सरकार, उसके स्वास्थ्य विभाग के साथ ही केंद्र सरकार को भी पक्ष बनाया जाए.

इस याचिका पर सोमवार को मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव डी. करिया की पीठ द्वारा नाथ के आधिकारिक आवास पर ऑनलाइन तरीके से सुनवाई होगी.

बार एंड बेंच के मुताबिक आदेश में कहा गया, ‘अखबार एवं न्यूज चैनल भयावह कहानियों, अकल्पनीय तकलीफें, इन्फ्रास्ट्रक्चर की दयनीय स्थिति, टेस्टिंग, बेड्स, आईसीयू में कमी और ऑक्सीजन तथा बेसिक दवाई रेमडेसिविर इत्यादि की कमी को लेकर भरे पड़े हैं.’

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस संबंध में इतनी सारी खबरें आ रही हैं कि इसे नजरअंदाज करना बिल्कुल मुश्किल हो गया है. उन्होंने इस संबंध में टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस की खबरों का उल्लेख किया.

उन्होंने कहा कि ये खबरें भयावह समस्या का एक छोटा सा उदाहरण है, जो यह दर्शाता है कि राज्य स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है.

बीते रविवार को गुजरात में कोरोना के कुल 5,469 मामले सामने आए, जिसके बाद राज्य में संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 347,495 हो गई है.

बीते साल अगस्त महीने में गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत शहर में कोरोना वायरस की स्थिति और इससे सबंंधित दिक्कतों से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्य में उभर रही स्थिति काफी भयावह है.

गुजरात हाईकोर्ट कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को बीते साल फटकार भी लगा चुकी है.

जस्टिस जेबी पर्दीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की पीठ ने इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 मई 2020 को अपने आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.

मालूम हो कि जस्टिस जेबी पर्दीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की पीठ ने कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे. हालांकि बीते 28 मई को इस पीठ में बदलाव कर दिया गया था.

नए रोस्टर के मुताबिक, जस्टिस आईजे वोरा का हटाकर कोरोना से संबंधित जनहित याचिकाओं पर सुनवाई का जिम्मा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पर्दीवाला को सौंप दिया गया था.

पीठ में बदलाव के बाद गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार की आलोचना से मरे हुए वापस नहीं आएंगे. कोर्ट ने कहा था कि महज सरकार की आलोचना करने से न तो चमत्कारिक रूप से लोग ठीक होने लगेंगे और न ही मर चुके लोग जिंदा होने वाले हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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