मरकज़ में प्रवेश के लिए संख्या निर्धारित नहीं कर सकते, अन्य स्थलों पर ऐसा कोई नियम नहीं: हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र और दिल्ली पुलिस के इस दावे को ख़ारिज कर दिया कि रमज़ान के लिए निज़ामुद्दीन मरकज़ में 200 लोगों की पुलिस-सत्यापित सूची में से केवल 20 लोगों को प्रार्थना के लिए परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी जा सकती है.

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(फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र और दिल्ली पुलिस के इस दावे को ख़ारिज कर दिया कि रमज़ान के लिए निज़ामुद्दीन मरकज़ में 200 लोगों की पुलिस-सत्यापित सूची में से केवल 20 लोगों को प्रार्थना के लिए परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी जा सकती है.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को यह कहते हुए कि किसी और धार्मिल स्थल पर पूजा करने वालों के लिए संख्या संबंधी कोई नियम न होने के चलते निजामुद्दीन मरकज में भी इबादत करने वालों की कोई निश्चित संख्या तय नहीं की जा सकती.

अदालत ने केंद्र और दिल्ली पुलिस से कहा कि रमजान के लिए मस्जिद बंगले वाली को दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रार्थना के लिए खोलें.

रमजान का महीना 14 अप्रैल से शुरू होने की उम्मीद है. दक्षिण दिल्ली के निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद में यह मरकज स्थित है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने यह देखते हुए यह आदेश दिया कि जब किसी अन्य धार्मिक स्थान पर श्रद्धालुओं की संख्या को निर्धारित करने वाले मानक नहीं हैं तब निजामुद्दीन मरकज में प्रवेश करने की अनुमति देने वाले भक्तों की कोई निश्चित सूची नहीं हो सकती है.

यही कारण है कि अदालत ने केंद्र और दिल्ली पुलिस के इस दावे को खारिज कर दिया कि 200 लोगों की पुलिस-सत्यापित सूची में से केवल 20 लोगों को प्रार्थना के लिए परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी जा सकती है.

जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, ‘यह एक खुली जगह है. उनके पास इबादतगारों की कोई निश्चित संख्या नहीं हैं और कोई अन्य धार्मिक स्थान नहीं है… ‘

उन्होंने आगे कहा कि कोई भी मंदिर या मस्जिद या चर्च में जा सकता है और 200 व्यक्तियों की एक विशिष्ट सूची किसी के भी द्वारा नहीं दी जा सकती है.’

अदालत ने कहा, ‘200 लोगों की सूची स्वीकार्य नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता है. हां, आप मस्जिद के सटीक क्षेत्र पता लगाएंगे कि यह कितना है और मुझे बताएं कि सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों के अनुसार उस मस्जिद में कितने लोग आ सकते हैं और इसलिए हम अनुमति देंगे कि केवल एक समय में यह केवल इतनी संख्या होगी. नाम कोई नहीं दे सकता. किसी भी धार्मिक स्थल पर नाम नहीं मांगे गए.’

कोर्ट ने कहा, ‘आपकी शिकायत आगंतुकों के वहां ठहरने को लेकर हो सकती है. फिलहाल, हम नमाज के लिए खोल रहे हैं और आने वाले व्यक्ति नमाज अदा करेंगे और फिर बाहर चले जाएंगे.’

अदालत ने केंद्र सरकार के वकील के बयान को दर्ज किया कि दिल्ली में कोविड मामलों के बढ़ने के मद्देनजर सोशल डिस्टेंसिंग के संबंध में डीडीएमए द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार श्रद्धालुओं के लिए मस्जिद का संचालन किया जा सकता है और मस्जिद प्रबंधन के नाम वक्फ बोर्ड द्वारा स्थानीय एसएचओ को दिए जा सकते हैं.

अदालत ने केंद्र और दिल्ली वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के बयान को भी दर्ज किया कि मस्जिद के एसएचओ हजरत निजामुद्दीन और मस्जिद के पदाधिकारियों द्वारा वक्फ सदस्य हिमाल अख्तर और अधिवक्ता वाजिह शफीक की उपस्थिति में मस्जिद का संयुक्त निरीक्षण किया जाएगा.

आदेश में आगे कहा गया, ‘मस्जिद के उस क्षेत्र को मापने की कवायद जहां इबादतगार दिन में पांच बार नमाज अदा कर सकते हैं, आज ही के दिन और डीडीएमए द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार की जा सकती है. वहां दूरी बनाए रखने के लिए जरूरी ब्लॉक बनाए जाएंगे.’

केंद्र की ओर से पेश होते हुए वकील रजत नायर ने पहले अदालत को बताया था कि 200 लोगों की एक सूची पुलिस को सौंपी जा सकती है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग मानदंडों का पालन करने के लिए केवल 20 लोग एक बार में मस्जिद में प्रवेश कर सकते हैं.

हालांकि, दिल्ली वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने अदालत को बताया था कि वे सभी प्रोटोकॉल का पालन करेंगे लेकिन ऐसी सूची को संकलित करना व्यावहारिक रूप से कठिन होगा.

केंद्र से सवाल करते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘हाल ही में धार्मिक स्थलों के लिए जारी किए गए नोटिफिकेशन के आधार पर क्या आपने एक बार में 20 लोगों के इकट्ठा होने को प्रतिबंधित कर दिया है? अधिकतम संख्या क्या है जो आपने प्रत्येक धार्मिक स्थानों के लिए दी है.’

इस पर नायर ने कहा कि ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है लेकिन संबंधित धार्मिक स्थल के प्रबंधन द्वारा ऐसी संख्या निर्धारित की जाती है. हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि मरकज निजामुद्दीन के मस्जिद के संबंध में यह मामला दूसरा हो जाता है.

इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘आखिरकार आप अधिकारियों पर छोड़ दे रहे हैं कि वे कैसे (व्यवस्था) करते हैं और सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का इस्तेमाल करते हैं. यह पूजा के लिए उपलब्ध जगह के अनुरूप होना चाहिए.’

नायर ने कहा कि किसी को तो जगह की निगरानी करनी होगी क्योंकि वह मामले से जुड़ी हुई संपत्ति है. हालांकि, अदालत ने कहा कि कोई बिल्डिंग को लेकर नहीं चला जाएगा.

अदालत ने आगे कहा, ‘यह भूमि के लिए एक संरचना है और कोई भी संरचना को हटा नहीं सकता है. मैं नहीं जानता कि मामले की संपत्ति से क्या मतलब है लेकिन कोई भी जांच में बाधा नहीं है.’

नायर ने यह भी कहा कि मस्जिद में एक कैमरा लगाया जा सकता है. दिल्ली वक्फ बोर्ड मंगलवार तक ऐसा करने के लिए सहमत हो गया.

गौरतलब है कि देश में कोविड-19 महामारी के शुरूआती दिनों में वहां पिछले साल तबलीगी जमात का एक धार्मिक समागम हुआ था और इसे पिछले साल 31 मार्च से बंद रखा गया है.

केंद्र ने 24 मार्च को कहा था कि वक्फ बोर्ड द्वारा चुने गये 50 लोगों को शब-ए-बारात के दौरान मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत दी जा सकती है.

हालांकि, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने नियमों में ढील दिए जाने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

इससे पहले बीते छह मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने निजामुद्दीन मरकज को दोबारा खोलने के लिए दायर याचिका पर केंद्र, आप सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था. रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया था.

बता दें कि पिछले साल मार्च में दिल्ली का निजामुद्दीन मरकज कोरोना हॉटस्पॉट बनकर उभरा था. दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम स्थित मरकज में 13 मार्च से 15 मार्च तक कई सभाएं हुई थीं, जिनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया, दुबई, उज्बेकिस्तान और मलेशिया समेत अनेक देशों के मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने भाग लिया था.

इनके अलावा देशभर के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में भारतीयों ने भी इसमें हिस्सा लिया था, जिनमें से कई कोरोना संक्रमित पाए गए थे. इसे लेकर मुस्लिम समुदाय पर कोरोना फैलाने का आरोप लगाया गया था.

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मरकज में आयोजित तबलीगी जमात कार्यक्रम और विदेशियों के ठहरने के संबंध में महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम, विदेश अधिनियम और दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थीं. हालंकि कई मामलों में अदालत द्वारा हस्तक्षेप के बाद आरोपियों को बरी करते हुए मामले रद्द भी किये गए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)