क़रीब 57.51 लाख लंबित मामलों में 54 प्रतिशत पांच उच्च न्यायालयों में: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार, 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान मामले दायर किए गए हैं, जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार, 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान मामले दायर किए गए हैं, जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. इसके साथ ही न्यायालय ने स्थिति से निपटने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का रास्ता साफ कर दिया.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एक फैसले द्वारा संविधान के अनुच्छेद 224ए का उपयोग किया जिसका बहुत ही कम इस्तेमाल हुआ है. इसी के साथ लंबित मामलों के निपटारे के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दो से तीन साल की अवधि के लिए तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का मार्ग प्रशस्त हो गया.

पीठ में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्राथमिक उद्देश्य उन मामलों का निपटारा है, जो पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं.

प्रधान न्यायाधीश द्वारा लिखे गए फैसले में राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों का भी जिक्र किया गया है और कहा गया कि इससे पता चलता है कि केवल पांच उच्च न्यायालय ही 54 प्रतिशत लंबित मामलों के लिए जिम्मेदार हैं.

आदेश में कहा गया है कि मद्रास उच्च न्यायालय में सात प्रतिशत से कम रिक्तियों के बावजूद 5.8 लाख मामले लंबित हैं वहीं कलकत्ता उच्च न्यायालय में 44 प्रतिशत रिक्तियों के बीच 2.7 लाख लंबित मामले हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान दायर किए गए हैं जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.

सर्वोच्च अदालत ने ऐसे उच्च न्यायालयों में ‘संकटपूर्ण स्थिति’ को लेकर बीते 20 अप्रैल को चिंता व्यक्त की थी, जहां न्यायाधीशों के 40-50 प्रतिशत पद रिक्त हैं.

नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समयसीमा पर जोर देते हुए प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि केंद्र को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा नामों की सिफारिश किए जाने के तुरंत बाद नियुक्ति करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.

पीठ ने कहा था, ‘उच्च न्यायालय संकट की स्थिति में हैं. उच्च न्यायालयों में करीब 40 प्रतिशत पद रिक्त हैं और कई उच्च न्यायालय 50 प्रतिशत से भी कम क्षमता के साथ काम कर रहे हैं.’

उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के संबंध में कहा था कि 1,080 न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों के बीच 664 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है और 464 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं. उन्होंने कहा था कि विभिन्न रिक्तियों के संबंध में सरकार को केवल 196 सिफारिशें मिली हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)