निजता का अधिकार और समाज

निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सत्ता और समाज को ठहर के सामूहिक चिंतन करने का एक अवसर देता है.

/

निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सत्ता और समाज को ठहर के सामूहिक चिंतन करने का एक अवसर देता है.

Right to Privacy
(फोटो साभार: kylaborg/Flickr, CC BY 2.0.)

अगर आपको पता चले कि चीनी मोबाइल कंपनियों से लेकर, अमेरिकी गूगल से फेसबुक, वॉट्सऐप तक न जाने कितनी निजी कंपनियां हैं जिनके पास आपकी पूरी जानकारी है, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी?

गूगल जैसी कंपनी के पास तो आपका सारा हिसाब-किताब होगा. आप कहां गए, कितनी देर बाद लौटे, कब तक रात को जगे रहे, किस तरह का साहित्य पढ़ा, आपकी विचारधारा, आपकी पसंद-नापसंद से लेकर आपके दोस्तों की भी जानकारी इनके पास होगी. रोज़ साथ उठने-बैठने वाले आपके दोस्तों से ज़्यादा अगर गूगल, फेसबुक को आपके बारे में पता हो तो इसमें अचरज मत करिएगा.

आजकल हम तरह तरह के मोबाइल ऐप डाउनलोड करते हैं, कई वेबसाइट पर साइन इन करते हैं. आप कोई भी ऐप डाउनलोड करें या किसी भी वेबसाइट पर जाएं, काम उसका कोई भी हो, लेकिन उन्हें आपकी सारी जानकारी चाहिए- आपका लोकेशन, आपके सारे संपर्क, आपके फोटो, वीडियो और पता नहीं क्या-क्या. अगर जानकारी नहीं देंगे, तो ऐप आगे ही नहीं बढ़ेगा. करते रहिए डाउनलोड!

अब करते हैं सरकार की बात! निजी कंपनियों द्वारा ली जा रही इन सूचनाओं से कई कदम आगे बढ़कर सरकार ने आधार कार्ड बनवाने के नाम पर आपका बायोमेट्रिक डिटेल भी ले लिया है.

बायोमेट्रिक का मतलब होता है आपके अंगूठे के निशान, आपकी आंखों की पुतलियां जैसी जानकारी. यानी अब तो कुछ बचा ही नहीं. और इस आधार कार्ड को बैंक अकाउंट, राशन कार्ड, पैन कार्ड से लेकर मोबाइल फोन के अलावा पता नहीं कहां-कहां से लिंक किया जा रहा है.

सरकार के वेबसाइट से आधार के लिए ली जा रही संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने की ख़बरें भी आ चुकी हैं. सरकारी प्रोजेक्ट्स पर काम करने वाली और किन निजी कंपनियों को हमारी व्यक्तिगत जानकारियां दी जा रही हैं, ये तो हम जानते ही नहीं. वैसे, आपको अपने बैंक ब्रांच से प्यार भरी धमकियां तो आ रही होंगी कि अपना अकाउंट फलाना तारीख तक आधार से लिंक कर लो, वरना…

ख़ैर, ये तो हो गई डेटा सिक्योरिटी की बात, जो आज के नए दौर के लोकतांत्रिक सरकारों की सबसे बड़ी चिंता होनी चाहिए. अब बात करते हैं आपकी निजी ज़िंदगी और व्यक्तिगत इच्छाओं की, जिसका सबसे अहम पहलू है- निजता का अधिकार.

हर सभ्य समाज अपनी जीवन पद्धति और प्रगति के लिए कोई न कोई तंत्र या मॉडल बनाती है. हर मॉडल में एक सत्ता होगी जो शासन करेगा ताकि समाज सामूहिक तौर पर शांति-सौहार्द से रह सके. इस तंत्र को विकसित करने और चलाने के लिए नियम, क़ानून, संविधान बनाए जाते हैं. सत्ता द्वारा बनाए गए नियम-क़ानून का किसी न किसी स्तर पर हमारी व्यक्तिगत इच्छाओं और निजता से टकराना लाज़मी है.

उदाहरण के लिए अगर नियम बनाया गया कि ट्रैफिक सिग्नल पर लाल रंग की बत्ती देखकर रुकना है तो वहां अपनी निजी इच्छा या व्यक्तिगत जल्दबाज़ी का हवाला देकर अगर हमने नियम नहीं माना, तो आप अच्छे से समझते हैं कि परिणाम क्या होगा.

एक सभ्य समाज का व्यक्ति ये भी नहीं कह सकता कि वो चोरी करेगा, किसी का क़त्ल या मारपीट करेगा क्योंकि ये उसकी इच्छा या निजता का अधिकार है. सत्ता को एक ऐसी व्यवस्था तो बनानी ही पड़ेगी जहां ऐसे लोगों को सज़ा मिल सके.

मतलब कि व्यक्तिगत इच्छाएं या हमारी निजता कभी भी निरंकुश या असीमित नहीं होनी चाहिए. अगर ऐसा है, तो किन मामलों में या किस स्तर तक सत्ता हमारी निजता का सम्मान करे और व्यक्तिगत इच्छाओं को रोकने का प्रयत्न न करे? ‘निजता के अधिकार’ की बहस में यही सबसे बड़ा और अहम सवाल है.

मेरे हिसाब से किसी भी नियम, क़ानून या रेगुलेशन को आपकी निजता से तब तक समझौता नहीं करना चाहिए, जब तक कि आपकी इच्छाएं और निजता किसी अन्य व्यक्ति या समुदाय को नकारात्मक तरीके से प्रभावित न करती हो.

मतलब कि हमारी सरकारों को ये तय करने का अधिकार बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि हम क्या खाएं, क्या पहनें, क्या देखें, क्या न देखें, किसको मानें या न मानें, किससे संबंध बनाएं, किसको अपनी व्यक्तिगत जानकारी दें या न दें, जब तक कि हमारे चयन, पसंद, नापसंद या क्रियाओं का किसी अन्य व्यक्ति या समुदाय पर कोई असर नहीं पड़ता.

माननीय उच्चत्तम न्यायालय की 9 जजों की पीठ ने गुरुवार को सर्वसम्मत्ति से एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. भारत की शीर्ष अदालत ने ‘निजता के अधिकार’ को हर देशवासी का मौलिक अधिकार माना है.

केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल की दलीलों को जजों ने ख़ारिज करते हुए एक ऐसा निर्णय दिया जिसका हर आमोख़ास के जीवन पर असर पड़ेगा. साथ ही, कुछ और महत्वपूर्ण मामलों पर भी इस बड़े फैसले की छाप दिखेगी. देश की सबसे ऊंची अदालत का यह फैसला हर भारतीय के लिए जश्न और ख़ुशी की बात है.

आज जिस तरह एक अंधी दौड़ में हम भागे जा रहे हैं, सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ-साथ टेक्नोलॉजी का हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी जिस तरह हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है इसके कई फ़ायदे हैं और देश को इस क्षेत्र में और भी निवेश करना चाहिए. लेकिन एक समाज के रूप में हमें ठहर के सोचने की अत्यंत आवश्यकता थी.

उच्चतम न्यायालय के फैसले ने आज हमारे उसी अंधी दौड़ पर अल्प-विराम लगाया है. मुझे दौड़ से ऐसी कोई वैचारिक आपत्ति नहीं है, बस दौड़ की दिशा सही होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सत्ता और समाज को ठहर के सामूहिक चिंतन करने का एक अवसर देता है. इसलिए सोचिए, समझिए और सही दिशा का स्वरूप कैसा हो यह तय करिए. फिर लग जाइए दौड़ में, जीत हमारी ही होगी!

(लेखक स्वराज इंडिया पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष हैं)
pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq