यूपी: पंचायत चुनाव में संक्रमित कर्मचारियों की मौत पर कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को नोटिस भेजा

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर रहे कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत की ख़बरों पर संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग की आलोचना की और पूछा कि महामारी संबंधी नियमों का पालन करवाने में विफल होने पर क्यों उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.

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अप्रैल 2021 में मथुरा के एक केंद्र पर पंचायत चुनाव के लिए बैलेट बॉक्स आदि लेने पहुंचे पोलिंग एजेंट. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर रहे कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत की ख़बरों पर संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग की आलोचना की और पूछा कि महामारी संबंधी नियमों का पालन करवाने में विफल होने पर क्यों उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.

मथुरा के एक केंद्र पर पंचायत चुनाव के लिए बैलेट बॉक्स आदि लेने पहुंचे पोलिंग एजेंट. (फोटो: पीटीआई)
मथुरा के एक केंद्र पर पंचायत चुनाव के लिए बैलेट बॉक्स आदि लेने पहुंचे पोलिंग एजेंट. (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों के दौरान ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारियों की मौत से जुड़ी खबरों को संज्ञान में लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा कि उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस फैलने और पृथक-वास केंद्रों की स्थिति को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया.

पीठ ने कहा कि खबरों में लोगों ने आरोप लगाया है कि हाल में पंचायत चुनावों में कोविड-19 संबंधी दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया.

लाइव लॉ के अनुसार, पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि न तो पुलिस और न ही चुनाव आयोग ने चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर्मियों को इस घातक संक्रमण से बचाने के लिए कुछ किया है.

अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर पूछा है कि वह बताए कि आयोग पंचायत चुनाव के विभिन्न चरणों में कोविड दिशानिर्देशों का पालन करवा पाने में क्यों विफल क्यों रहा.

कोर्ट  ने आयोग से यह भी पूछा है कि इस तरह के उल्लंघन के लिए उसके और उसके अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में  58,189 ग्राम पंचायत हैं, जहां ग्राम प्रधान के चुनाव होने हैं, जबकि ग्राम पंचायत सदस्यों के लिए 732, 563 पदों पर चुनाव होना है. इनके अलावा 75,855 क्षेत्र पंचायत सदस्य के पदों पर निर्वाचन होना है. राज्‍य के 75 ज़िलों में ज़िला पंचायत सदस्य के कुल 3,051 पदों पर चुनाव होने हैं.

मतदान चार चरणों- 15 अप्रैल, 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को होना था, जिनमें से बस एक ही चरण बचा है. मतगणना दो मई को होगी.

चुनाव में लगे सरकारी कर्मियों की कोविड-19 से मौत का मामला तब प्रकाश में आया जब अमर उजाला अख़बार ने 26 अप्रैल 2021 को प्रकाशित एक खबर में बताया कि अब तक पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले राज्य के 135 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अनुदेशक कोरोना संक्रमण के चलते जान गंवा चुके हैं.

इस खबर को सत्यापित करने के बाद अदालत ने इसका संज्ञान लिया. कोर्ट ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस संबंध में उठाए गए कदमों और वे पर्याप्त हैं, ये दिखाने के लिए हम किसी कागजी कार्रवाई या सार्वजनिक घोषणा को बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि अब यह एक खुला रहस्य है कि राज्य में 2020 के अंत तक वायरस के प्रभाव के कमजोर होने के कारण सरकार बहुत खुश हो गई और पंचायत चुनावों सहित अन्य गतिविधियों में लग गई.’

अदालत ने कहा कि अगर सरकार सतर्क रही होती तो इसने महामारी की दूसरी लहर के लिए खुद को तैयार कर लिया होता.

गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में हाईकोर्ट ने राज्य में पंचायत चुनाव ख़ारिज करने की एक जनहित याचिका को ख़ारिज किया था.

इस याचिका में बढ़ते कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए इन चुनावों को टालने की मांग की थी, जिसके जवाब में अदालत ने कहा था कि  संक्रमण फैलने से रोकने के लिए जरूरी सावधानियां बरती जाएंगी.

हालांकि बुधवार को अदालत ने कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान किसी भी कोविड दिशानिर्देश का पालन नहीं हुआ.

इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, कानपुर नगर और गोरखपुर में स्थिति सामान्य करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है.

अदालत ने निर्देश दिया कि इन शहरों के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में दिन में दो बार स्वास्थ्य संबंधी बुलेटिन जारी करने की प्रणाली लागू की जानी चाहिए, ताकि लोग मरीजों के स्वास्थ्य की स्थिति जान सकें और तीमारदार अस्पताल जाने से बच सकें.

उसने कहा कि ये अस्पताल मरीजों संबंधी जानकारी देने के लिए बड़ी स्क्रीन का उपयोग कर सकते हैं.

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सरकार इन शहरों के अपने जिला पोर्टल पर सभी अस्पतालों में कोविड-19 वार्ड और आईसीयू में भरे हुए और खाली बिस्तरों की स्थिति बताए.

अदालत ने कहा कि केवल एंटीजन जांच रिपोर्ट में व्यक्ति के संक्रमणमुक्त होने की पुष्टि ही किसी मरीज को अस्पताल से छुट्टी देने का आधार नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस तरह के मरीज दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं.

उसने कहा कि उन्हें कम से कम एक सप्ताह के लिए गैर कोविड-19 वार्ड में भर्ती रखा जाना चाहिए.

अदालत ने निर्देश दिया कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक जिले में सभी सरकारी कोविड-19 अस्पतालों और संक्रमण के इलाज के लिए निर्धारित निजी अस्पतालों एवं कोविड-19 केंद्रों में प्रत्येक व्यक्ति की मौत की सूचना एक न्यायिक अधिकारी को दी जाए, जिसकी नियुक्ति जिला न्यायाधीश द्वारा की जाएगी.

अदालत ने लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, कानपुर नगर, आगरा, गोरखपुर, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और झांसी के जिला न्यायाधीशों से एक-एक न्यायिक अधिकारी नामित करने का अनुरोध किया, जो अपने-अपने जिलों में नोडल अधिकारी के तौर पर काम करेंगे और हर सप्ताहांत महानिबंधक को रिपोर्ट करेंगे और इस रिपोर्ट को सुनवाई की अगली तारीख तीन मई, 2021 को अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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