एलगार परिषद: सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ज़मानत याचिका ख़रिज की

गौतम नवलखा ने मांग की थी कि चार्जशीट दायर करने की समयमीमा में साल 2018 में उनकी 34 दिनों की ग़ैर क़ानूनी हिरासत को भी शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया.

/
गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

गौतम नवलखा ने मांग की थी कि चार्जशीट दायर करने की समयमीमा में साल 2018 में उनकी 34 दिनों की ग़ैर क़ानूनी हिरासत को भी शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)
गौतम नवलखा. (फोटो: यूट्यूब)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एलगार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका बुधवार को खारिज कर दी.

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की एक पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ नवलखा कि याचिका खारिज कर दी. उच्च न्यायालय ने मामले में नवलखा को जमानत देने से इनकार कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने नवलखा की जमानत याचिका पर 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था.

उच्चतम न्यायालय ने तीन मार्च को नवलखा की उस जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा था, जिसमें दावा किया गया था कि मामले में आरोपपत्र तय समयसीमा में दायर नहीं किया गया.

नवलखा के खिलाफ जनवरी 2020 को दोबारा प्राथमिकी दर्ज की गई थी और पिछले साल 14 अप्रैल को ही उन्होंने एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. वह 25 अप्रैल तक 11 दिन के लिए एनआईए की हिरासत में रहे और उसके बाद से ही नवी मुंबई के तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं.

नवलखा ने मांग की थी यूएपीए के तहत चार्जशीट दायर करने की समयमीमा में साल 2018 में उनकी 34 दिनों की गैरकानूनी हिरासत को भी शामिल किया जाना चाहिए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना था कि 29 अगस्त से एक अक्टूबर 2018 तक नवलखा को नजरबंद करना गैरकानूनी कार्रवाई थी.

हालांकि जमानत याचिका पर विचार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘गैरकानूनी हिरासत’ के दौरान बिताए गए समय को सीआरपीसी की के तहत 90 दिन के भीतर चार्जशीट दायर करने की समयसीमा में नहीं जोड़ा जा सकता है.

नियम के मुताबिक यदि 90 दिन के भीतर जांच एजेंसी चार्जशीट नहीं दायर करती है, तो आरोपी को इस आधार पर जमानत (डिफॉल्ट बेल) दी जा सकती है.

लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की इस दलील को सही माना और याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया.

पुलिस के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने 31 दिसम्बर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित रूप से उत्तेजक और भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़की थी.

मालूम हो कि 28 अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.

महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादियों से संबंध हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq