कर्नाटक सरकार से कार्य योजना मांगते हुए कोर्ट ने कहा- टीकाकरण की रफ़्तार परेशान करने वाली

कनार्टक हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि अगर टीके की खुराक की पर्याप्त संख्या की ख़रीद के लिए तत्काल क़दम नहीं उठाए गए हैं, तो टीकाकरण के मूल उद्देश्य के विफल होने की संभावना है, जो कोविड-19 के प्रसार पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है. कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि वह 45 वर्ष से अधिक आयु के 26 लाख लाभार्थियों को किस तरह से टीके उपलब्ध कराने वाली है, जबकि वैक्सीन की केवल 9.37 लाख खुराक उपलब्ध है.

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(फोटोः पीटीआई)

कनार्टक हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि अगर टीके की खुराक की पर्याप्त संख्या की ख़रीद के लिए तत्काल क़दम नहीं उठाए गए हैं, तो टीकाकरण के मूल उद्देश्य के विफल होने की संभावना है, जो कोविड-19 के प्रसार पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है. कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि वह 45 वर्ष से अधिक आयु के 26 लाख लाभार्थियों को किस तरह से टीके उपलब्ध कराने वाली है, जबकि वैक्सीन की केवल 9.37 लाख खुराक उपलब्ध है.

(फोटो: पीटीआई)
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बेंगलुरु: राज्य में कोविड-19 टीकाकरण की गति को ‘परेशान करने वाला’ करार देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से 13 मई तक रोड मैप मांगा है कि वह राज्य में 45 वर्ष से अधिक आयु के 26 लाख लाभार्थियों को किस तरह से टीके उपलब्ध कराने वाली है, जबकि वैक्सीन की केवल 9.37 लाख खुराक उपलब्ध है.

बता दें कि 45 साल से अधिक उम्र के इन लाभार्थियों की कोविड-19 टीके की दूसरी खुराक लगनी बाकी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने संकेत दिया कि पांच मई तक स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और 45 साल से अधिक उम्र जैसे विभिन्न श्रेणियों के 56.83 लाख लाभार्थियों को वैक्सीन की दूसरी खुराक लगनी थी.

चीफ जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य में टीकाकरण के प्रयास की जांच करने के बाद कहा, ‘हम आशा करते हैं और विश्वास करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों टीकों की उपलब्धता के संबंध में राज्य में परेशान करने वाली स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देंगे. यदि टीके की खुराक की पर्याप्त संख्या की खरीद के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए हैं, तो टीकाकरण के मूल उद्देश्य के विफल होने की संभावना है, जो कोविड-19 के प्रसार पर एक व्यापक प्रभाव डाल सकता है.’

हाईकोर्ट ने आगे कहा, ‘शुरुआत में हमें यह दर्ज करना चाहिए कि यह एक अच्छी तरह से स्वीकार किया गया तथ्य है कि आक्रामक टीकाकरण अभियान कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए एक बड़ा कदम है. हालांकि, रिकॉर्ड पर लाए गए तथ्य और आंकड़े बताते हैं कि कर्नाटक में टीकों की उपलब्धता के बारे में स्थिति बहुत परेशान करने वाली है.’

कोर्ट ने कहा, ‘45 से अधिक आयु वर्ग में कोविशील्ड की पहली खुराक लेने वाले लगभग 16.83 लाख और कोवैक्सीन की पहली खुराक लेने वाले 9.25 लाख लाभार्थियों को वर्तमान में टीके की दूसरी खुराक लेनी बाकी है.’

हाईकोर्ट ने कहा, ‘अदालत में दाखिल हलफनामे के अनुसार कर्नाटक को 45 से अधिक आयु वर्ग के लिए मई में कुल 13.36 लाख वैक्सीन की खुराक आवंटित की गई थी, जो 26 लाख लाभार्थियों की आवश्यकता को पूरा नहीं करेगा, जो पहले से ही वैक्सीन की पहली खुराक की तारीख से आवश्यक दिनों को पूरा कर चुके हैं.’

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि कर्नाटक को 5 मई तक 1.08 करोड़ वैक्सीन की खुराक मिली और 1 करोड़ टीके वितरित किए गए (जिसमें से 83.28 लाख पहली खुराक के लिए और 17.44 लाख दूसरी खुराक के लिए था).

यद्यपि राज्य सरकार ने 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के लिए 22 और 29 अप्रैल को केंद्र सरकार के साथ कोविशील्ड की 2 करोड़ खुराक और 3 मई को कोवैक्सीन की 1 करोड़ खुराक के लिए इच्छा जाहिर की थी, लेकिन अभी तक कोविशील्ड की केवल 6.5 लाख खुराक की आपूर्ति की गई है.

पीठ ने कहा कि केंद्र को कर्नाटक में टीकों की आवश्यक मात्रा उपलब्ध कराने के लिए वैक्सीन आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क करना चाहिए, ताकि 18-44 आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाया जा सके. हाईकोर्ट ने अपने आदेश के अनुपालन के लिए केंद्र को 13 मई तक का समय दिया.

बता दें कि बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान आपूर्ति और जरूरी सेवाओं के पुनर्वितरण से संबंधी एक स्वत: संज्ञान याचिका को लेकर कहा था कि जिस तरह से केंद्र की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है.

वहीं, वैश्विक रेटिंग एजेंसी ‘फिच रेटिंग्स’ ने चेतावनी दी है कि भारत के टीकाकरण की धीमी गति का मतलब है कि देश दूसरी लहर के थमने पर भी कोविड-19 की आगे की लहरों की चपेट में रह सकता है. उसने संकेत दिया कि केवल 9.4 फीसदी लोगों ने 5 मई तक कम से कम एक वैक्सीन की खुराक प्राप्त की थी.

हालांकि, केंद्र ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया कि उसकी वैक्सीन नीति वैक्सीन की सीमित उपलब्धता, जोखिम का मूल्यांकन और महामारी के अचानक आने के कारण पूरे देश में एक बार में संभव नहीं हो सकने के तथ्यों को मुख्य रूप से ध्यान में रखते हुए तैयार की गई थी.

केंद्र ने कहा था, ‘इस प्रकार यह नीति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के अनुसार है और विशेषज्ञों, राज्य सरकार और वैक्सीन निर्माताओं के साथ परामर्श और चर्चा के कई दौर के बाद बनी है.’

हलफनामे में कहा गया, ‘नीति को इस माननीय न्यायालय द्वारा किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस स्तर की एक महामारी से निपटने के दौरान कार्यपालिका के पास जनहित में फैसले लेने का अधिकार है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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