कोरोना महामारी की दूसरी लहर से भारत में आजीविका संकट गहराने की आशंका: अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़

सरकार द्वारा कोविड-19 की दूसरी लहर के अनुमान में चूक पर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा कि सरकार लंबे समय तक वायरस के समुदाय के बीच फैलने की बात से इनकार करती रही है, जबकि रिकॉर्ड में मामले लाखों में थे. जनता को आश्वस्त करने के लिए कि सब ठीक है, भ्रामक आंकड़ों का सहारा लिया गया. हम अब इसकी कीमत चुका रहे हैं.

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ज्यां द्रेज. (फोटो: रॉयटर्स)

सरकार द्वारा कोविड-19 की दूसरी लहर के अनुमान में चूक पर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा कि सरकार लंबे समय तक वायरस के समुदाय के बीच फैलने की बात से इनकार करती रही है, जबकि रिकॉर्ड में मामले लाखों में थे. जनता को आश्वस्त करने के लिए कि सब ठीक है, भ्रामक आंकड़ों का सहारा लिया गया. हम अब इसकी कीमत चुका रहे हैं.

अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता ज्यां द्रेज. (फोटो: द वायर)
अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता ज्यां द्रेज. (फाइल फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच कामकाजी वर्ग के लिए स्थिति इस बार बदतर लग रही है और इससे भारत में ‘आजीविका संकट’ गहराने की आशंका है.

उन्होंने यह भी कहा कि इस महामारी की रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाया गया ‘लॉकडाउन’ देशव्यापी बंद जैसी ही स्थिति है.

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का 2024-25 तक देश को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कभी भी ‘व्यवहारिक लक्ष्य’ नहीं था.

भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड महामारी की दूसरी लहर के प्रभाव के बारे में द्रेज ने कहा कि जहां तक कामकाजी लोगों का सवाल है, स्थिति पिछले साल से बहुत अलग नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘स्थानीय स्तर पर ‘लॉकडाउन’ का प्रभाव उतना विनाशकारी संभवत: नहीं होगा, जो राष्ट्रीय स्तर पर लगाई गई तालाबंदी (लॉकडाउन) का था, लेकिन कुछ मामलों में चीजें इस बार कामकाजी समूह के लिए ज्यादा बदतर है.’

अर्थशास्त्री ने कहा कि इस बार संक्रमण फैलने की आशंका अधिक व्यापक है और इससे आर्थिक गतिविधियों के पटरी पर आने में समय लगेगा.

उन्होंने कहा, ‘व्यापक स्तर पर टीकाकरण के बावजूद, इस बात की काफी आशंका है कि रुक-रुक कर आने वाला संकट लंबे समय तक बना रहेगा.’

द्रेज ने कहा, ‘पिछले साल से तुलना की जाए तो लोगों की बचत पर प्रतिकूल असर पड़ा. वे कर्ज में आ गए. जो लोग पिछली बार संकट से पार पाने के लिए कर्ज लिए, वे इस बार फिर से ऋण लेने की स्थिति में नहीं होंगे.’

उन्होंने कहा कि पिछले साल राहत पैकेज दिए गए थे, लेकिन आज राहत पैकेज की कोई चर्चा तक नहीं है.

अर्थशास्त्री ने कहा, ‘दूसरी तरफ स्थानीय लॉकडाउन जल्दी ही राष्ट्रीय लॉकडाउन में बदल सकता है. वास्तव में जो स्थिति है, वह देशव्यापी तालाबंदी जैसी ही है.’

उन्होंने कहा, ‘संक्षेप में अगर कहा जाए तो हम गंभीर आजीविका संकट की ओर बढ़ रहे हैं.’

यह पूछे जाने पर कि सरकार कैसे कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के अनुमान से चूक गई, द्रेज ने कहा कि भारत सरकार हमेशा से इनकार की मुद्रा में रही है. उन्होंने कहा, ‘सरकार लंबे समय तक कोविड के समुदाय के बीच फैलने की बात से इनकार करती रही है, जबकि रिकॉर्ड में मामले लाखों में थे.’

उन्होंने कहा, ‘जब आधिकारिक आंकड़ों के एक प्रारंभिक विश्लेषण ने स्वास्थ्य सेवाओं में कमी का खुलासा किया, तो सरकार ने आंकड़े को वापस ले लिया.’

अर्थशास्त्री ने कहा कि जनता को यह आश्वस्त करने के लिए कि सब ठीक हैं, भ्रामक आंकड़ों का सहारा लिया गया. संकट से इनकार करना इसे बदतर बनाने का सबसे विश्वस्त तरीका है. हम अब इस आत्मसंतोष की कीमत चुका रहे हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय के बुधवार को सुबह जारी आंकड़े के अनुसार 24 घंटे में देश में कोविड-19 के 3.48 लाख मामले सामने आए जबकि संक्रमण के कारण 4,205 लोगों की मौत हो गई.

उन्होंने कहा कि भारत में खासकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी का लंबा इतिहास रहा है और हम आज उसी की कीमत चुका रहे हैं. गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए स्वास्थ्य से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं. इसके बावजूद भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च दशकों से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का एक प्रतिशत बना हुआ है.

एक सवाल के जवाब में पूर्व यूपीए शासन में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएससी) से जुड़े रहे द्रेज ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून और राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा सहायता कार्यक्रम जैसे मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कानून के तहत काफी कुछ किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि सभी राशन कार्डधारकों को प्रस्तावित दो महीने के बजाय लंबे समय तक पूरक (सप्लीमेंट्री) खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है. साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली का दायरा बढ़ाया जा सकता है.

द्रेज के अनुसार, ‘मौजूदा योजनाओं के अलावा मुझे लगता है कि बेहतर रूप से तैयार, समावेशी नकदी अंतरण कार्यक्रम उपयोगी साबित होगा.’

एक अन्य सवाल के जवाब में बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशात्री ने कहा, ‘भारत को 2024-25 तक 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कभी भी व्यवहारिक लक्ष्य नहीं था. इस लक्ष्य का मकसद केवल भारत के अभिजात वर्ग की महाशक्ति की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है.’

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024-25 तक भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा था.

द्रेज ने कहा कि यदि हम जीडीपी को एक वैध विकास इंडिकेटर के रूप में स्वीकार कर भी लेते हैं, लेकिन इसके लिए स्टैंडर्ड अप्रोच यह होना चाहिए कि हम जीडीपी को प्रति व्यक्ति के आधार पर देखें.

उन्होंने कहा कि चूंकि भारत दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है और यदि हम ‘कुल जीडीपी’ को देखते हैं तो यह भारत की बड़ी आबादी के चलते काफी बड़ी दिखाई देता है, नतीजतन ये समृद्धि और शक्ति का भ्रम पैदा करती है.

ज्यां द्रेज ने कहा कि यदि सरकार की रुचि लोगों की वास्तविक स्थिति के बजाय भारत को विश्व स्तर पर बड़ी शक्ति के रूप में दिखाना है तो जरूर ‘कुल जीडीपी’ महत्वपूर्ण होगी.

अर्थशास्त्री ने कहा कि यह आपको एक बड़ी सेना बनाने में मदद कर सकता है, लेकिन इसका विकास से कोई लेना-देना नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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