असम एनआरसी के समन्वयक हितेश शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर दावा किया है कि एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं, इसलिए इसके पुन: सत्यापन की आवश्यकता है. सत्यापन का कार्य संबंधित जिलों में निगरानी समिति की देखरेख में किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: असम राज्य के एनआरसी समन्वयक ने उच्चतम न्यायालय से संपर्क कर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे और पूरक सूची के पूर्ण, समग्र एवं समयबद्ध तरीके से पुन: सत्यापन का आग्रह किया है तथा कहा है कि इसमें ‘कुछ प्रत्यक्ष खामियां’ दिखी हैं.
एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित मामले में हस्तक्षेप आवेदन दायर कर यह आग्रह भी किया कि पुनर्सत्यापन का कार्य संबंधित जिलों में निगरानी समिति की देखरेख में किया जाना चाहिए तथा इस तरह की समिति में प्राथमिकता के साथ जिला न्यायाधीश, जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक जैसे लोग शामिल होने चाहिए.
मई 2014 से फरवरी 2017 तक असम एनआरसी के कार्यकारी निदेशक रहे शर्मा को अक्टूबर 2019 में हुए प्रतीक हजेला के तबादले के बाद 24 दिसंबर 2019 को एनआरसी का राज्य समन्वयक नियुक्त किया गया था.
शर्मा ने कहा कि खामियों को न्यायालय के समक्ष लाए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि एनआरसी अपडेशन की प्रक्रिया शीर्ष अदालत की निगरानी में हो रही है और समूची एनआरसी अपडेशन प्रक्रिया ‘राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखंडता’ से जुड़ी है.
इससे पहले राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी इस तरह की बात की थी और कहा था कि उनकी सरकार की मांग है कि एनआरसी में शामिल किए गए सीमावर्ती जिलों में 20 फीसदी नामों और अन्य जिलों के 10 फीसदी नामों का पुन: सत्यापन किया जाना चाहिए.
इतना ही नहीं भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में भी कहा था कि सत्ता में आने के बाद उनकी पार्टी अवैध प्रवासियों को बाहर करने और भारतीयों को एनआरसी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करेगी.
एनआरसी राज्य समन्वयक शर्मा ने दावा किया है कि कई अयोग्य व्यक्तियों को सूची में शामिल कर लिया गया है, जिसे बाहर किया जाना चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं. इसने पूरी प्रक्रिया को प्रभावित किया है और एनआरसी में शामिल एवं बहिष्कृत करने के लिए वर्तमान प्रकाशित की गई ड्राफ्ट एवं सप्लीमेंट्री सूची में कई त्रुटियां हैं. इस प्रकार एनआरसी के मसौदे को समयबद्ध पुन: सत्यापन का आदेश देकर फिर से तैयार करने की आवश्यकता है.’
शर्मा ने शीर्ष अदालत से अपील की है कि संबंधित जिलों में एक निगरानी समिति की देखरेख में पुन: सत्यापन किया जा सकता है. उन्होंने सुझाव दिया कि समिति का प्रतिनिधित्व संबंधित जिला न्यायाधीश, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस प्रमुख द्वारा किया जा सकता है.
मालूम हो कि असम के नागरिकों की तैयार अंतिम सूची यानी कि अपडेटेड एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई थी, जिसमें 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 1,906,657 लोगों को इसके योग्य नहीं माना गया था.
हालांकि प्रशासन ने बाहर किए गए लोगों को अभी तक बहिष्करण पर्ची (रिजेक्शन स्लिप) जारी नहीं की है. इस पर्ची के आधार पर एनआरसी से बाहर किए गए लोग फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपील कर सकते हैं.
एनआरसी राज्य समन्वयक ने पिछले साल दो जुलाई को हुई बैठक में सूचित किया था कि साल 2020 के दिसंबर अंत तक एनआरसी से बाहर किए गए लोगों को बहिष्करण पर्ची (रिजेक्शन स्लिप) जारी कर दिया जाएगा.
हालांकि अब प्रशासन ने असम में पूरी एनआरसी कार्यवाही के ही पुनर्सत्यापन की मांग की है. शर्मा ने न्यायालय से कहा कि साल 2019 में प्रकाशित की गई एनआरसी फाइनल नहीं है. भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा फाइनल एनआरसी प्रकाशित करना अभी बाकी है.
इससे पहले भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) ने असम सरकार के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बचे हुए कार्य के लिए 31 मार्च के बाद भी वित्तीय मदद जारी रखने की बात की गई थी.
आरजीआई कार्यालय ने प्रक्रिया पूरी करने में हुई ‘अत्यंत देरी’ पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को 23 मार्च को पत्र लिखा था.
असम सरकार ने चार मार्च को लिखे पत्र में एनआरसी के लंबित कार्यों को 31 मार्च के बाद पूरा करने के लिए पूर्व में पूरी परियोजना के लिए आवंटित 1,602.66 करोड़ रुपये के अलावा अतिरिक्त 3.22 करोड़ रुपये प्रतिमाह जारी करने का अनुरोध किया था.
इस पर आरजीआई ने कहा कि 31 मार्च 2021 के बाद खर्च के लिए अतिरिक्त कोष का प्रावधान नहीं है.