देश के लगभग आधे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नियमित वाइस चांसलर नहीं

दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू और बीएचयू समेत देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से बीस में नियमित वाइस चांसलर नहीं हैं. अधिकारियों के अनुसार नियुक्तियों में विलंब पीएमओ की ओर से हुई देरी के चलते ऐसा हो रहा है. बताया गया कि क़ानूनन पीएमओ की कोई भूमिका नहीं है पर इन दिनों फाइलें अनधिकृत तौर पर वहां भेजी जाती हैं.

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बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू और बीएचयू समेत देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से बीस में नियमित वाइस चांसलर नहीं हैं. अधिकारियों के अनुसार नियुक्तियों में विलंब पीएमओ की ओर से हुई देरी के चलते ऐसा हो रहा है. बताया गया कि क़ानूनन पीएमओ की कोई भूमिका नहीं है पर इन दिनों फाइलें अनधिकृत तौर पर वहां भेजी जाती हैं.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी. (फोटो: पीटीआई)
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः मौजूदा समय में देश के लगभग आधे केंद्रीय विश्वविद्यालय बिना नियमित कुलपति (वाइस चांसलर) के काम कर रहे हैं, जिससे स्थाई शिक्षकों की भर्ती और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को क्रियान्वित करने में बाधा उत्पन्न हो रही है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 20 में कोई नियमित वाइस चांसलर नहीं है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इन विश्वविद्यालयों में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी जैसे अग्रणी विश्वविद्यालय भी शामिल हैं.

इसके साथ ही नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (शिलॉन्ग), मणिपुर यूनिवर्सिटी, असम यूनिवर्सिटी (सिल्चर), गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी (छत्तीसगढ़), सागर यूनिवर्सिटी (मध्य प्रदेश), दिल्ली की दो संस्कृत यूनिवर्सिटी, जम्मू कश्मीर और बिहार की दो-दो केंद्रीय यूनिवर्सिटी, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड में एक-एक केंद्रीय विश्वविद्यालय भी हैं.

शिक्षा मंत्रालय के दो अधिकारियों ने बताया कि इनमें से 12 विश्वविद्यालयों में चार महीने पहले चुनाव समितियों ने वाइस चांसलर के पदों के लिए शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए गए और उनके नाम सबमिट किए. इसके अलावा अन्य आठ विश्वविद्यालयों के लिए चुनाव प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है.

मंत्रालय अधिकारियों ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों की फाइलों को मंजूरी देने में असफल रहने की वजह से देरी हुई.

पहचान उजागर न करने की शर्त पर डीयू के एक प्रोफेसर ने बताया कि सरकार पॉलिसी पैरालिसिस से जूझ रही है. वे विचारधारा से इतने प्रेरित हैं कि उन्हें उच्च शिक्षण संस्थानों की कोई परवाह नहीं है.

शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कानूनी तौर पर पीएमओ की वाइस चांसलर की नियुक्ति में कोई भूमिका नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘मंत्रालय को शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों की फाइल राष्ट्रपति को भेजनी होती है, जो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विजिटर हैं और अंतिम चुनाव करते हैं. इसके बाद नियुक्ति पत्र जारी करने में आमतौर पर एक हफ्ते का समय लगता है.’

अधिकारी ने बताया कि इन दिनों फाइलें अनधिकृत तौर पर पीएमओ को भेजी जाती हैं. फाइलें वहां से देरी से आती हैं.

पीएमओ शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों की जांच करता है और इसकी सूची अपनी सिफारिशों के साथ वापस शिक्षा मंत्रालय भेजते हैं, जिसके बाद मंत्रालय फाइलों को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं. इसके साथ ही सरकार की पसंद के बारे में भी मौखिक तौर पर राष्ट्रपति को इससे अवगत कराया जाता है.

प्रक्रिया के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय को किसी वाइस चांसलर का कार्यकाल समाप्त होने से कम से कम छह महीने पहले उसके उत्तराधिकारी के चुनाव के लिए सर्च एवं चुनाव समिति का गठन करना चाहिए.

इन्हें सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विजिटर के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है, जो राष्ट्रपति का कार्यालय भी है और इसके बाद ही आखिरी नियुक्तियों का ऐलान किया जाता है.

अधिकारियों के मुताबिक, पिछले साल अगस्त महीने में चुनाव समितियों ने लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और दिल्ली की केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के शॉर्टलिस्ट वाइस चांसलर के साक्षात्कार लिए थे. हालांकि, इसके बाद से ही शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों की फाइलों को पीएमओ से मंजूरी का इंतजार है.

डीयू के एक प्रोफेसर ने कहा कि इन 20 में से अधिकतर यूनिवर्सिटी में निवर्तमान वाइस चांसलर को सेवाविस्तार मिला है जबकि बाकियों में सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर को कार्यवाहक वाइस चांसलर नियुक्त किया गया है.

डीयू के एक प्रोफेसर ने कहा, ‘सेवाविस्तार पाए वाइस चांसलर और कार्यवाहक वाइस चांसलर एनईपी का क्रियान्वयन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला लेने से हिचक रहे हैं. उदाहरण के लिए इंटर डिसिप्लिनरी पाठ्यक्रमों और चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम या एमफिल पाठ्यक्रमों को बंद करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले लेने में भी हिचक है.’

उन्होंने कहा कि कार्यवाहक वाइस चांसलर महामारी के दौरान शैक्षणिक गतिविधियों की योजना और कैंपस में कोविड-19 केयर सेंटर शुरू करने और संस्थान बंद होने से इस्तेमाल में नहीं लाए जा रही सुविधाओं के लिए फीस का भुगतान करने से छात्रों को छूट देने तक में झिझक रहे हैं.

इसके अतिरिक्त अंतरिम वाइस चांसलर को स्थाई शिक्षकों या कर्मचारियों की नियुक्ति करने की भी मंजूरी नहीं है.

पिछले हफ्ते आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पूर्णकालिक वाइस चांसलरों को नियुक्त करने का आग्रह किया था.

एबीवीपी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मेघालय की केंद्रीय यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर की नियुक्तियां एक साल से अधिक समय से लंबित हैं. मणिपुर में पिछले साल इस पद के लिए साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी अभी तक नियुक्तियां नहीं की गई हैं.

एबीवीपी की राष्ट्रीय महासचिव निधि त्रिपाठी ने कहा, ‘कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक साल से भी अधिक समय से पूर्णकालिक वाइस चांसलर की नियुक्ति नहीं होना एक गंभीर चिंता का विषय है. यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक और प्रशासनिक गतिविधियों में वाइस चांसलर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.’

वहीं, भुवनेश्वर, पटना, इंदौर और मंडी आईआईटी में भी एक साल से अधिक समय से नियमित निदेशक नहीं हैं.

शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में पिछले साल एक चुनाव समिति ने आईआईटी भुवनेश्वर और आईआईटी पटना के लिए उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए थे लेकिन अभी तक पीएमओ की ओर से इसकी फाइलें लौटाई नहीं गई हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)