रामदेव जी! विज्ञान व तर्क को बख़्शकर अपने काम से काम रखिए

एम्स के एक डॉक्टर द्वारा एक बड़े कारोबारी संस्थान के मालिक रामदेव को लिखा गया पत्र.

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रामदेव. (फोटो साभार: फेसबुक/पतंजलि)

एम्स के डॉक्टर द्वारा एक बड़े कारोबारी संस्थान के मालिक रामदेव को लिखा गया पत्र.

रामदेव. (फोटो साभार: फेसबुक/पतंजलि)
रामदेव. (फोटो साभार: फेसबुक/पतंजलि)

प्रिय रामदेव यादव जी,

पहली बात, सबसे पहले तो यह कि मैं आपके नाम से पहले ‘बाबा’ नहीं लगा रहा हूं इसका सीधा-सा कारण है कि मेरे लिए बाबा शब्द फरीद शाह, बुल्ले शाह और रहमान बाबा जैसे लोगों के लिए है. मेरी ईमानदार राय यह है कि स्वयंभू बाबा होना आप जैसे सफल बिजनेसमैन के लिए दिखावे से ज़्यादा कुछ नहीं है. मेरे प्रिय बाबा, बाबा फरीद गंज -ए- शंकर ने कभी कहा था कि अगर तुम संत होना चाहते हो, तुम्हें राजा के परिवार से दूर रहना चाहिए.

बहरहाल, मैं आपके द्वारा हाल ही एलोपैथी और उसके चिकित्सकों का मज़ाक उड़ाए जाने पर आता हूं. मैं आपके इस अघोषित उपहास के पीछे की कुंठा को समझ सकता हूं. आखिर, एक बीमार इंसान किसी भी शिफ़ा (इलाज) देने वाले के लिए सबसे आसान दांव होता है. यहां शिफ़ा देने वाले से मेरी मुराद शिफ़ा के सारे तौर-तरीके वालों से है, इस देश के कमजोर बीमार, जिसे सरकारों ने वास्तव में पराया कर रखा है, को शिफ़ा देने वाले पैसा लूटने का मौका मान सकते हैं.

क्योंकि आपको सीधे सरल शब्दों में बात करना पसंद है तो यह वैसा ही है जैसे शिकारी कुत्ते को मांस की खुशबू आ जाए. बेशक़ इस वैश्विक महामारी ने ऐसे शिकारी कुत्तों के लिए खासा मांस उपलब्ध करवाया है कि आएं और दावत उड़ाएं. पर रामदेव जी, शिकारी कुत्ते भी एक दूसरे की इज्ज़त करते हैं. वे अपनी ताक़त और खास बात यह कि अपनी सीमाओं और कमजोरियों की भी इज्ज़त करते हैं. यह अलग बात है कि शिकारी कुत्तों से भी बुरे सियार होते हैं. वो कायर होते हैं जो भूख के समय चीखते हैं, गुस्से के समय चीखते हैं, जो अपने दुश्मन को अपने से ताकतवर जानकर चीखते हैं और अधखाए शव को लेकर चले जाते हैं. हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम कम से कम सियारों की तरह तो न पेश आएं!

आपने एलोपैथी और डॉक्टर्स की जिस बेहूदा तरीके से निंदा की है, उससे मेरा ये अंदाज़ा लगाना गलत नहीं होगा कि आपके अहंकार का सही रूप इस समय बाहर आ गया है और आप उसमें बह गए. आप जैसे मूर्ख व्यवसायी से ऐसी टिप्पणियों के अलावा उम्मीद भी क्या की जा सकती है! या आप इतने नादान थे कि आपको मेरी बिरादरी की प्रतिक्रिया का आभास नहीं हो!

मुझे नहीं लगता कि आप इतने बेवकूफ हैं यादव जी! आपकी तरह सब अपने हितों की रक्षा करते हैं, डॉक्टर्स भी. आइए, आपकी वीडियो में कही बात को रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं, आपकी एलोपैथी और डॉक्टर्स को लेकर कही गई बातें अवैज्ञानिक तो थी ही, आपकी जहालत की महक भी दे रही थीं: नफरत से भरी जहालत. जब जहालत नफ़रत से जुड़ती है, इतना खतरनाक रसायन बनती है कि नफरत करने वाले को भी झुलसा देती है.

सच तो यह है कि आपकी तरफ से ऐसी जहालत मैने कई मौकों पर देखी है. पर उसकी बात आज करना ठीक नहीं है, क्योंकि मैं देख रहा हूं कि आप पहले से ही अपनी बेवकूफाना टिप्पणियों की वजह से इतने दबाव में हैं.

तो बेहतर है कि यह बात करें कि आप मेरी बिरादरी से क्यों माफी मांगेंगे, और वो भी तब जब पेशेवर एलोपैथ देश के स्वास्थ्य मंत्री से आपकी दोस्ताना नजदीकियां हैं. आपके द्वारा एलोपैथी की निंदा में मुझे केवल आप में ज्ञान की कमी ही नहीं, मिथ्या आत्मप्रशंसा (अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने ) की भी झलक मिल रही है.

आप अपने आयुर्वेद के विज्ञान के लिए इतने परमभाव में है कि मुझे आप पर संदेह हो रहा है. परमभाव यानी श्रेष्ठताबोध तार्किकता का सबसे बड़ा दुश्मन है. कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को ठीक करने के आपके दावे हास्यास्पद हैं रामदेव जी! आपको एहसास भी है कि आप कैसे पूरी दुनिया के लिए मज़ाक का विषय बन गए हैं कि आप कई वीडियोज में ब्लड कैंसर को ठीक करने का दावा कर रहे हैं!

हां, यह मुमकिन है कि ब्लड कैंसर के कुछ मरीज आपकी देखरेख में राहत पाने लगे हों, पर इलाज का ऐसा पक्का दावा कोरी मूर्खता से कम नहीं है. मुझे पता है कि आपके ऐसे दावों के पीछे आपके आर्थिक हित हैं, पर सोचिए, आपके इस ‘परमभाव’ से आपको और आपके 9,500 करोड़ के साम्राज्य को क्या मिलेगा! इसलिए मैं आपको एहतियात बरतने की सलाह दूंगा.

बड़े-बड़े दावे, चाहे आयुर्वेद, होम्योपैथी, एलोपैथी ही क्यों न करे, को जांच और वैधता की जरूरत होती है. पर आपका यह परमभाव आपके क्षेत्र और शब्दों को खतरे में डाल देता है. हम सब संदेह की दुनिया के बाशिंदे हैं. डॉक्टरों से सवाल पूछना जायज़ है. पर विज्ञान की कसौटी पर कसे बिना उनके कामों के बारे में नतीजे निकालना पाप है.

उदाहरण के तौर पर, मेरे बहुत से लीवर स्पेशलिस्ट दोस्त गिलोय रसायन के घातक प्रभावों के बारे में बताते हैं, जिसका इस्तेमाल आपकी जादुई दवा कोरोनिल में होने की जानकारी मुझे मिली है. वे लीवर पर गिलोय के महत्वपूर्ण टॉक्सिक असर देख रहे हैं. पर वे अपने नतीजों को जांच रहे हैं, वे उनकी वैधता का इंतजार कर रहे हैं. अपने नतीजों को दुनिया के सामने पेश करने से पहले वे अपनी ही धारणाओं पर सवाल उठा रहे हैं, एलोपैथी ऐसे ही अपना काम करती है रामदेव जी! ऐसे ही विज्ञान अपना काम करता है.

ईमानदारी से कहूं तो, मैं जानता हूं कि आपके दिल में कहीं एलोपैथी और विज्ञान के लिए गहरा आदर है. वरना आप हर बार किसी बीमारी के इलाज के दावे के समय एलोपैथी के डॉक्टर को स्टेज पर क्यों बुलाते भला! मैंने बहुत सारे वीडियो देखे हैं जिनमें आप डॉक्टर्स से अपने दावों की पुष्टि करने के लिए कहते हैं! वाकई अजीब बात है!

ये ‘मेरे और आपके क्षेत्र’ के बीच की लड़ाई ही नहीं है. अगर आपके हित आर्थिक हैं भी तो विज्ञान और तर्क की जीत होनी चाहिए. मैं विज्ञान के साथ हूं और विज्ञान ने मुझे यही सिखाया है कि अपनी धारणाओं पर संदेह करूं, परमभाव को खारिज करूं और तथ्यों को जांच के लिए पेश करूं. मेरा ख़याल है कि अपने क्षेत्र के ऐसे बेहद सफल बिजनेसमैन के रूप में आपको अपने बिजनेस पर ध्यान देना चाहिए. आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि विज्ञान और तर्क को आप हमारे लिए रहने दीजिए.

याद रखिए कि इतिहास किसी को नहीं बख्शता, चाहे वे अनैतिक डॉक्टर्स हों, अन्यायी शासक या ढोंगी बाबा!

(डॉ. शाह आलम खान एम्स, नई दिल्ली के आर्थोपेडिक विभाग में प्रोफेसर हैं.)

(मूल अंग्रेज़ी लेख से दुष्यंत द्वारा अनूदित)

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