यूपी: गोरखनाथ मंदिर के पास रहने वाले मुस्लिम परिवार क्यों छत छिनने के डर से ख़ौफ़ज़दा हैं

ग्राउंड रिपोर्ट: बीते दिनों गोरखपुर प्रशासन पर गोरखनाथ मंदिर के पास ज़मीन अधिग्रहण के लिए यहां के रहवासी कई मुस्लिम परिवारों से जबरन सहमति पत्र पर दस्तख़त करवाने का आरोप लगा है. कई परिवारों का कहना है कि उन्होंने एक कागज़ पर साइन तो कर दिए, लेकिन वे अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

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ग्राउंड रिपोर्ट:  बीते दिनों गोरखपुर प्रशासन पर गोरखनाथ मंदिर के पास ज़मीन अधिग्रहण के लिए यहां के रहवासी कई मुस्लिम परिवारों से जबरन सहमति पत्र पर दस्तख़त करवाने का आरोप लगा है. कई परिवारों का कहना है कि उन्होंने एक कागज़ पर साइन तो कर दिए, लेकिन वे अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

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गोरखनाथ मंदिर. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

गोरखपुर: गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के पास एक दर्जन से अधिक घरों को ‘मंदिर की सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस बल की तैनाती के लिए’ हटाने की कथित योजना विवाद में आ गई है. प्रभावित परिवारों का कहना है कि उन्हें पूरी जानकारी दिए बिना दबाव में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए जबकि वे अपना घर-बार छोड़कर जाना नहीं चाहते क्योंकि यही उनकी रिहाइश और आजीविका का आधार है.

उधर जिला प्रशासन का कहना है कि सुरक्षा योजना अभी प्रारंभिक चरण में है और किसी से जोर-जबरदस्ती नहीं की जा रही है. सभी परिवारों ने बिना दबाव के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.

इस मसले में ‘कथित सहमति पत्र’ पर दस्तखत करने वाले लोग डरे हुए और चिंतित है. अधिकतर अपना फोन बंद किए हुए हैं या उठा नहीं रहे हैं. द वायर  से बात करते हुए तीन परिवारों ने कहा कि उनसे सहमति पत्र पर दस्तखत लिए गए हैं. तहसील से आए लेखपाल और कानूनगो ने उनके घर की नाप-जोख भी की.

एक परिवार का कहना था कि उनसे राजस्वकर्मियों ने मकान को अधिग्रहीत किए जाने के बारे में बातचीत की, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक उन्हें लिखित रूप से कोई नोटिस आदि मिलेगा, तभी वे जवाब दे पाएंगे.

दरअसल, यह मामला सबसे पहले सोशल मीडिया पर 28 मई को आया. एक सहमति पत्र वायरल हुआ जिसमें लिखा हुआ था कि ‘गोरखनाथ मंदिर परिक्षेत्र में सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस बल की तैनाती हेतु शासन के निर्णय के क्रम में गोरखनाथ मंदिर के दक्षिण पूर्वी कोने पर ग्राम पुराना गोरखपुर तप्पा कस्बा परगना हवेली तहसील सदर जनपद गोरखपुर स्थित हम निम्नांकित व्यक्ति अपनी भूमि व भवन को सरकार के पक्ष में हस्तान्तरित करने के लिए सहमत हैं. हम लोगों को कोई आपत्ति नहीं है. सहमति की दशा में हम लोगों के हस्ताक्षर निम्नांकित हैं.’

इस कागज पर 11 परिवारों के 19 लोगों के नाम, उनकी वल्दियत और मोबाइल नंबर लिखा हुआ. आखिरी कॉलम में लोगों के दस्तखत और तारीख हैं.  इस पेपर पर दो परिवारों के छह लोगों- इकबाल अहमद व अनवर अहमद पुत्र स्व. इमादुल हसन, मो. अकमल, मो. शाहिल, मो. सरजिल और मो. इसराइल के दस्तखत नहीं हैं और न उनके मोबाइल नंबर अंकित हैं. इस कागज पर न किसी अधिकारी का नाम है और न कोई मुहर है.

सोशल मीडिया पर सहमति पत्र वायरल होने के बाद जिला प्रशासन की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए जाने लगे. कुछ खबरें भी मीडिया में साया हुई.

सोशल मीडिया पर सामने आया कथित सहमति पत्र. (साभार: ट्विटर)
सोशल मीडिया पर सामने आया कथित सहमति पत्र. (साभार: ट्विटर)

दिल्ली से संचालित ‘द क्विंट’ ने एक रिपोर्ट इस पर प्रकाशित की और एक पोर्टल इंडिया टुमारो ने भी इस पर खबर प्रकाशित की. इंडिया टुमारो डॉट इन पर खबर लिखने वाले रिपोर्टर मसिहुज्जमा अंसारी ने आरोप लगाया कि इस खबर के लिए जब उन्होंने डीएम का पक्ष जानने की कोशिश की कि तो डीएम के विजयेंद्र पांडियन ने उन पर रासुका लगाने की धमकी दी.

अंसारी ने ट्वीट कर कहा, ‘गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर से लगे मुस्लिम घरों को खाली करने की नोटिस दिए जाने के मामले में डीएम से बात करने पर मेरे साथ अभद्रता की गई और अफवाह फैलाने का आरोप लगाते हुए एनएसए लगाने की धमकी दी गई जिसकी शिकायत मैने एनएचआरसी में दर्ज कराई है.’

इसके बाद 3 जून की शाम कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने पत्रकार और गोरखपुर के डीएम से बातचीत का ऑडियो जारी किया.

उन्होंने अपने बयान में कहा, ‘गोरखनाथ मठ के दक्षिण पूर्वी कोने पर स्थित एक सौ पच्चीस सालों से बसे मुस्लिम परिवारों से जमीन खाली करने की सहमति पत्र पर प्रशासन ने जबरन हस्ताक्षर करवा लिया है. उन्होंने कहा कि कई पत्रकारों से प्रभावित लोगों ने ऑन रिकॉर्ड इस बात को कहा है. इस बारे में मीडिया में खबरें भी चल रही हैं लेकिन लोगों को न्याय दिलाने के बजाए डीएम विजयेंद्र पांडियन न सिर्फ जबरन हस्ताक्षर कराने की बात को नकार रहे हैं बल्कि खबर चलाने वाले पत्रकारों पर ही उल्टे एनएसए लगाने की बात कर रहे हैं.’

आलम ने गोरखपुर डीएम को तत्काल निलंबित करने और पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच कराने की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा, ‘मुख्यमंत्री जी को अपने पद और महान संत गोरखनाथ जी की गरिमा का खयाल रखते हुए ऐसे अनैतिक और लोकतंत्र विरोधी काम नहीं करना चाहिए.’

इस मामले की पड़ताल करने पर पता चला कि 27 मई को पुलिस के साथ सदर तहसील के लेखपाल व अन्य कर्मचारियों ने गोरखनाथ मंदिर के मुख्य द्वार के पास बैंक व पोस्ट आफिस के निकट स्थित घरों की नापजोख की थी.

अगले दिन लेखपाल व कर्मचारियों ने इन घरों में रहने वालों से बातचीत कर सुरक्षा कारणों से इस स्थान पर पुलिस बल की तैनाती का जिक्र किया और कहा कि घर और जमीन इस हेतु ली जाएगी. इसके बदले सर्किट रेट से दो गुना मुआवजा दिया जाएगा. इसी दौरान एक कागज पर दस्तखत कराए गए.

सदर तहसील के राजस्व कर्मी मंदिर के ठीक पीछे चहारदीवार के पास स्थित तीन और घरों के लोगों से भी मिले और इस बारे में बातचीत की हलांकि इन लोगों से किसी कागज पर दस्तखत करने की बात नहीं आई है. इसके बाद से ही चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि इन घरों को सुरक्षा कारणों से खाली कराया जाएगा.

गोरखनाथ मंदिर के आस-पास सुरक्षा के कौन से इंतजाम होने है और इसके लिए कहां व कितनी जमीन की आवश्कता है, इसके बारे में प्रशासन ज्यादा कुछ नहीं बता रहा है.

उल्लेखनीय है कि गोरखनाथ मंदिर परिसर 52 एकड़ क्षेत्र में है और सुरक्षा के लिए एक पुलिस चौकी परिसर के अंदर है. मंदिर के मुख्य गेट के पास सड़क की पूर्वी पटरी पर गोरखनाथ थाना स्थित है.

कथित सहमति पत्र पर मो. फैजान व मो. इमरान, मो. सलमान पुत्र स्व.फजरुल रहमान, मो. जाहिद, मो. तारिक व मो. आशिक पुत्र स्व. साजिद हुसैन, मो. शाहिद हुसैन मो. शाहिर हुसैन, खुर्शीद आलम, मो. जमशेद आलम पुत्र स्व. अब्दुल रहमान, मुशीर अहमद पुत्र स्व. नाजिर अहमद, नूर मोहम्मद पुत्र स्व. दीन मोहम्मद के दस्तखत हैं.

मंदिर के पास का क्षेत्र.
मंदिर के पास का क्षेत्र. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

इनमें से एक 45 वर्षीय नूर मोहम्मद अपने पांच भाइयों के परिवार के साथ 2,200 स्क्वायर फुट वाले मकान में रहते हैं. इसमें उनकी टीवी मरम्मत करने की दुकान भी है. इसके अलावा किराना की एक दुकान है.

वे बताते हैं, ‘दो-तीन दिन लगातार लेखपाल कानूनगो आए. उन्होंने कहा कि सुरक्षा कारणों से आप लोगों का मकान लिया जाना है. घर के बदले सर्किल रेट से दो गुना मुआवजा देंगे. जिस कागज पर मैंने दस्तखत किया वह सादा कागज था. वह कोई लेटर पैड न था. उस पर किसी अधिकारी का नाम या मुहर नहीं थी.’

नूर मोहम्मद का कहना है, ‘हम लोगों की रोजी रोटी इसी घर से चलती है. मेरे दादा के दादा के यहां रहे हैं. इसे छोड़कर हम कहां जाएंगे. सरकार मुआवजा तो दे सकती है लेकिन रोजी-रोटी कैसे मिलेगी?’

बारहवीं तक पढ़े नूर मोहम्मद कहते हैं कि वे ज्यादा लिखे-पढ़े नहीं हैं. वह इस मामले को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं. ‘आपस में बातचीत हुई है. जैसा सब लोग करेंगे, वैसा मैं भी करूंगा।’

उनका कहना है कि उन्हें दस्तखत करने के लिए डराया नहीं गया . ‘बाबा (योगी आदित्यनाथ) गोरखपुर आने वाले हैं. हम लोग उनसे मिलकर बात करेंगे.’

कथित सहमति पत्र पर दस्तखत करने वाले रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी 71 वर्षीय जावेद अख्तर कहते हैं कि उन्होंने दबाव में दस्तखत किया. उन्हें एक तरह से धमकी दी गई. घर आए लेखपाल -कानूनगो ने कहा कि आप दस्तखत नहीं करेंगे तो हमें दूसरा रास्ता आता है. जिन लोगों ने दस्तखत किया है, वे भी अपना घर देने को राजी नहीं है. दबाव में कुछ लोग सहमत होना बता रहे हैं.

जावेद अख्तर ने बताया, ’27 को लेखपाल-कानून जब हमारे और आसपास के घरों की नापजोख कर रहे थे तो लगा कि सड़क को चौड़ा करने की योजना है. ऐसे में घर का दो फीट का हिस्सा सड़क में आ सकता है लेकिन राजस्व कर्मियों ने कहा कि पूरा मकान लिया जाएगा. हमसे कहा गया कि यहां पुलिस चौकी बनेगी. हमसे मुआवजा की कोई बात नहीं की गई. जिस कागज पर मैंने दस्तखत किया उस पर कम्प्यूटर से पहले से सबके नाम लिखे हुए थे. उस पर लिखा हुआ था कि सुरक्षा कारणों से मकान लिया जाएगा.’

वर्ष 2010 में रिटायर हुए जावेद कहते हैं कि उनके घर में उनकी जनरल मर्चेंट की दुकान और भाई की आटा चक्की है. उनके मकान कामर्शियल महत्व का है. उनके पास इसके अलावा और कहीं घर व जमीन नहीं है.

उनका कहना था, ‘इसलिए मैं कह रहा हूं कि हमें यहां से न हटाया जाए.’ यह पूछे जाने पर कि यदि उनका घर लिया जाएगा तो वे क्या करेंगे, जावेद बोले, ‘हम लड़ेंगे. हमारी आपस में बातचीत हुई है. प्रशासन की ओर से आगे जैसी पहल होगी, हम वैसा कदम उठायेंगे.’

‘सहमति पत्र’ पर दस्तखत करने वालों में से एक 70 वर्षीय मुशीर अहमद बुनकर हैं. वे बताते हैं, ‘मई को पुलिस के साथ आए लेखपाल और कानूनगो ने हमारे घर और आस-पास के घरों की नाप जोख की. दूसरे दिन फिर वही लोग आए और कहा कि सुरक्षा कारणों से यहां पर काम होना है. इसके लिए सहमति पत्र पर दस्तखत कर दीजिए. मैंने दस्तखत कर दिया. बाद में पता चला कि मेरे घर को इस काम के लिए ले लिया जाएगा. इसके बाद से घर के लोग रो रहे हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘दो जून को तहसीलदार, लेखपाल और कानूनगो आए थे. उन्होंने कहा कि शासन को यहां जमीन की जरूरत है. आपकी सहमति से ही घर- जमीन ली जाएगी. मुझे यह नहीं समझ में आ रहा है कि सवा सौ वर्ष पुराना मेरा घर ही क्यों लिया जा रहा है. मुझे डर लग रहा है. अपनी आवाज खुलकर उठाने के पहले हम खुद मुख्यमंत्री से मिलकर इस बारे में बातचीत करना चाहते हैं.’

चिंतातुर स्वर में मुशीर अहमद कहते हैं, ‘कहीं मैंने मौत के परवाने पर दस्तखत तो नहीं कर दिया?’

मुशीर अहमद के अनुसार, दो हजार वर्ग फीट के इस घर में उनके दादा-परदादा रहे हैं. पहले कच्ची दीवार का घर था. हमने एक-एक ईंट चुनकर इसे पक्का किया. इस घर में हमारे दो भाइयों का परिवार भी रहता है. मेरा एक बेटा किताब की दुकान से और दूसरा आटा चक्की चलाकर आजीविका चलता है. घर में चार पावरलूम है लेकिन उससे अब कोई आमदनी नहीं होती है. पिछले डेढ़ महीने से पावरलूम बंद है. हालत इतनी खराब है कि इस पावरलूम से साल में सौ-डेढ़ सौ रुपये की भी आमदनी नहीं होती है.

मुशीर के पास भी इस घर के अलावा और कहीं जमीन या घर नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘इस घर के अलावा एक इंच जमीन नहीं है. यही घर हमारी रिहाइश और आजीविका है. हम इसे कैसे दे सकते हैं? शासन-प्रशासन को यह घर मेरी मौत के बाद ही मिलेगा.’

फिरोज अहमद और इंतजार हुसैन का घर गोरखनाथ मंदिर परिसर के ठीक पीछे है. पेशे से शिक्षक इंतजार हुसैन बताते हैं, ’28 मई की दोपहर हमारे पास तहसील के अधिकारी व कर्मचारी आए थे. अधिकारियों-कर्मचारियों ने कहा कि सुरक्षा के लिए आपका घर अधिग्रहीत किया जा रहा है. आप घर खाली कर दीजिए. आपको उपयुक्त मुआवजा मिलेगा. हमने कहा कि जो भी आप मौखिक तौर पर कह रहे हैं, उसे लिखित रूप से दीजिए तभी हम कुछ जवाब दे पाएंगे.’

उन्होंने आगे बताया, ‘अधिकारी दो जून को भी हमारे पास आए और समझाने की कोशिश की लेकिन मैंने वहीं जवाब दिया. इसके बाद हमसे कहा गया कि शाम चार बजे तहसील आकर बड़े अधिकारियों से बात कर लें लेकिन मैं वहां नहीं गया. अभी तक मुझे कोई कागज नहीं दिया गया है और न किसी कागज पर दस्तखत करने को कहा गया है. मुझे पता चला है कि मेरे घर के पास अफजाल अहमद और वसी अहमद के घर की भी नापजोख की गई है और उनसे भी इस बारे में बात की गई है. पास में एक कब्रिस्तान है. उसको भी अधिग्रहीत करने की बात कही जा रही है.’

मंदिर के पास के क्षेत्र में बनी दुकानें.
मंदिर के पास के क्षेत्र में बनी दुकानें. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

इंतजार हुसैन अपने बड़े भाई फिरोज के परिवार के साथ 2,100 वर्ग फीट के इस घर में रहते हैं. उनके बड़े भाई घर में दुकान चलाते हैं, जिससे उनकी आजीविका चलती है. इंतजार ने बताया कि सरकार-प्रशासन द्वारा घर को लिए जाने की जानकारी होने के बाद उनकी भाभी बीमार पड़ गई हैं.

इंतजार हुसैन ने बताया, ‘हमारा घर मंदिर के दक्षिणी पश्चिमी दिशा में है. हमें पता चला कि दक्षिण पूर्वी दिशा में 11 घरों को सरकार ले रही है. मैं जाकर सभी से मिला और जानने की कोशिश की कि आखिर हमारे घर-जमीन की सरकार क्यों लेना चाहती है लेकिन कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला. जिन लोगों ने सहमति पत्र पर दस्तखत कर दिया है, वे अब पछता रहे हैं, कह रहे हैं कि हम अपना घर नहीं देना चाहते.’

कथित सहमति पत्र पर दस्तखत करने वाले जमशेद आलम को जब फोन किया, तब उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि सब लोगों ने दस्तखत किया है, इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया.

शाहिद हुसैन का फोन बंद मिला. शाहिर हुसैन और खुर्शीद आलम के मोबाइल पर घंटी गई लेकिन कॉल का जवाब नहीं मिला. इसी तरह मो. फैजान, मो. इमरान, मो. सलमान से संपर्क का प्रयास विफल रहा.

इस बारे में जब तहसीलदार सदर संजीव दीक्षित ने कहा, ‘आधिकारिक रूप से कोई कार्रवाई नहीं हुई है न ही किसी को नोटिस दिया गया है. तहसील स्तर पर कोई पैमाइश भी नहीं की गई है. कोई पेपर भी साइन नहीं हुआ है. यह योजना अभी आरंभिक चरण की है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जब कोई योजना आएगी तो नियमानुसार कार्रवाई होगी. अभी केवल सहमति और असहमति जानी गई है. इस बारे में डीएम साहब ने बयान दिया है. जो कागज सोशल मीडिया में आया है, उसके बारे में जानकारी मिली है. वह पेपर बाहर के व्यक्ति ने डाला है. आप लोगों से पूछेंगे तो लोग यही कहेंगे कि उन पर कोई अनावश्यक दबाव नहीं डाला गया है.’

गौरतलब है कि गोरखनाथ मंदिर के आस-पास के कई मोहल्ले-नौरंगाबाद, जाहिदाबाद, पुराना गोरखपुर, हुमायूंपुर, रसूलपुर बुनकर बाहुल्य हैं जिनकी आबादी करीब एक लाख है. बुनकरों की हालत इस वक्त बहुत खराब है.

गोरखपुर में 1990 तक 17 हजार से अधिक हथकरघे थे लेकिन अब बमुश्किल 150 से भी कम हथकरघे बचे हैं. वर्ष 1990 के बाद से बुनकरों ने पावरलूम पर काम शुरू किया. गोरखपुर में साढ़े आठ हजार पावरलूम लगे लेकिन अब इनकी संख्या कम होते-होते तीन हजार तक पहुंच गयी है.

आए दिन बुनकरों के पावरलूम कबाड़ में बिक रहे हैं. बुनकर पावरलूम का काम छोड़ ठेले और दुकान लगा रहे हैं. मुशीर अहमद उन्हीं बुनकरों में से एक हैं जो चार पावरलूम के होते होने के बावजूद बेहद आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं.

ऐसे हालत में घरों का सर्वे किया जाना और सुरक्षा कारणों से उसे अधिग्रहीत करने की योजना के बारे में सुनकर वे अपने भविष्य को लेकर खासे चिंतित हैं.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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