हर्ष मंदर से जुड़े आश्रय गृहों पर एनसीपीसीआर के आरोप दिल्ली बाल अधिकार आयोग द्वारा ख़ारिज

इस साल जनवरी में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर से जुड़े बच्चों के दो आश्रय गृहों को लेकर बुनियादी ढांचे, वित्त पोषण और संचालन लाइसेंस में अनियमितताओं की सूचना दी थी. साथ ही यहां यौन शोषण की संभावना को भी व्यक्त किया था. दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बताया है कि एनसीपीसीआर के आरोपों में सबूतों और योग्यता की कमी है.

हर्ष मंदर (फोटो साभारः फ्लिकर)

इस साल जनवरी में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर से जुड़े बच्चों के दो आश्रय गृहों को लेकर बुनियादी ढांचे, वित्त पोषण और संचालन लाइसेंस में अनियमितताओं की सूचना दी थी. साथ ही यहां यौन शोषण की संभावना को भी व्यक्त किया था. दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बताया है कि एनसीपीसीआर के आरोपों में सबूतों और योग्यता की कमी है.

हर्ष मंदर (फोटो साभारः फ्लिकर)
हर्ष मंदर (फोटो साभारः फ्लिकर)

नई दिल्ली: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने दिल्ली हाईकोर्ट को सौंपे गए एक हलफनामे में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा नई दिल्ली स्थित सेंटर ऑफ इक्विटी स्टडीज (सीईएस) द्वारा स्थापित लगभग दो बाल आश्रय गृहों को लेकर किए गए अधिकांश आपत्तिजनक दावों का खंडन किया है.

दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले में एक प्रतिवादी के रूप में डीसीपीसीआर द्वारा प्रस्तुत हलफनामा एनसीपीसीआर के दावों का बिंदुवार खंडन करता है.

डीसीपीसीआर ने कहा कि अक्टूबर 2020 में एनसीपीसीआर की जांच के बाद दिल्ली सरकार के तहत विभिन्न वैधानिक निकायों द्वारा आश्रय गृहों पर बार जांच-पड़ताल की गई.

उन सभी ने पाया कि कुछ विशिष्ट कमियों को छोड़कर, एनसीपीसीआर की टिप्पणियों में सबूतों और योग्यता की कमी है और साबित नहीं होते हैं.

डीसीपीसीआर की टिप्पणियां सेंटर ऑफ इक्विटी स्टडीज के निदेशक और चर्चित नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा किए गए दावे को मजबूत करेंगी कि एनसीपीसीआर की छापेमारी राजनीति से प्रेरित थी और अपने आलोचकों के खिलाफ केंद्र की प्रताड़ित करने की रणनीति का एक हिस्सा थी.

एनसीपीसीआर द्वारा किए गए निरीक्षण ऐसे समय में किए गए थे, जब केंद्र देशभर में बड़े पैमाने पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम विरोधी आंदोलन से जूझ रहा था. मंदर विवादास्पद कानून के सबसे प्रमुख आलोचकों में से एक थे.

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो और उनकी टीम ने 1 अक्टूबर, 2020 को बेघर लड़कों के लिए ‘उम्मीद अमन घर’ और लड़कियों के लिए ‘खुशी रेनबो होम’ आश्रय गृह में औचक निरीक्षण किया था, जो दक्षिण दिल्ली में स्थित हैं.

इसके बाद जनवरी 2021 में शीर्ष बाल अधिकार निकाय ने बुनियादी ढांचे, वित्त पोषण और संचालन लाइसेंस में कई अनियमितताओं की सूचना दी, जिनमें से सभी ने कथित तौर पर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे अधिनियम) और इसके नियमों का उल्लंघन किया. इसने यह भी कहा कि घरों में कोविड-19 प्रोटोकॉल का ठीक से पालन नहीं किया गया.

एक सनसनीखेज दावे में यह भी कहा गया कि हो सकता है कि ‘उम्मीद अमन घर’ ने पिछले वर्षों में यौन शोषण के मामलों को छुपाया हो. हालांकि, डीसीपीसीआर ने कहा कि इसके विपरित ‘उम्मीद अमन घर’ ऐसे मामलों का सामने लाने में आगे था और उसने नवंबर 2012, साल 2013, साल 2016 के तीन ऐसे मामलों का उदाहरण दिया, जिसमें वहां के अधिकारियों ने खुद एफआईआर दर्ज कराए थे.

आलोचकों को निशाना बनाकर सत्तारूढ़ शासन के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए चर्चित एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगो ने रिकॉर्ड पर कहा कि जिन बच्चों को आश्रय गृहों में आश्रय दिया गया था, उनका इस्तेमाल सीएए के विरोध प्रदर्शनों में भीड़ जुटाने के लिए किया गया था.

उन्होंने यह भी दावा किया था कि मंदर आश्रय गृहों के प्रबंधन में सीधे तौर पर शामिल थे और इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों आश्रय गृहों के कर्मचारियों ने जांच को यह कहते हुए भटकाने का प्रयास किया कि पूर्व में मंदर ने केवल आश्रय गृहों को स्थापित करने में मदद की थी.

मंदर ने पहले एक बयान में कहा था कि हालांकि उन्होंने कई अन्य लोगों की तरह आश्रय गृहों को स्थापित करने में मदद की, लेकिन अब वह औपचारिक रूप से उनसे नहीं जुड़े थे.

एनसीपीसीआर की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली पुलिस ने इस साल फरवरी में दोनों आश्रय गृहों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. दिल्ली हाईकोर्ट वर्तमान में इस मामले पर फैसला सुना रहा है, जिसमें डीसीपीसीआर को भी प्रतिवादी बनाया गया है.

डीसीपीसीआर ने आश्रय गृहों पर एनसीपीसीआर के वित्तीय अनियमतता के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उसे एनजीओ की फंडिंग की समझ नहीं है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)