आईटीबीपी में भर्ती के लिए मंदारिन भाषा अनिवार्य

डोकलाम विवाद के बाद आईटीबीपी के जवानों को प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान चीनी भाषा- मंदारिन और तिब्बत में बोली जाने वाली चीनी भाषा के एक स्वरूप का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो: MyViMu.com)

डोकलाम विवाद के बाद आईटीबीपी के जवानों को प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान चीनी भाषा- मंदारिन और तिब्बत में बोली जाने वाली चीनी भाषा के एक स्वरूप का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो: MyViMu.com)

भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) ने भर्ती होने वाले नए जवानों के लिए चीनी भाषा के ज्ञान को अनिवार्य कर दिया गया है. सैनिकों को चीनी भाषा- मंदारिन के अलावा तिब्बत में बोली जाने वाली चीनी भाषा के ही एक स्वरुप का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

अधिकारियों का कहना है कि उनके सैनिक चीनी सैनिक से बातचीत कर सके इसलिए ऐसा फैसला लिया गया है. इसके अलावा तिब्बत में बोले जानी वाली भाषा भी अनिवार्य रूप से सीखनी होगी, जो मंदारिन भाषा का ही एक स्वरूप है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आईटीबीपी के एक अधिकारी ने बताया कि इस साल से नए प्रशिक्षुओं के एक साल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मंदारिन भाषा सिखाने का कार्यक्रम भी शामिल कर लिया गया है.

अधिकारी आगे कहते हैं, हम एक ऐसी फोर्स का हिस्सा है जो पूरी तरह से चीन से लगी सीमा पर तैनात रहती है. इसलिए विवेकपूर्ण ये है कि फोर्स के हर कर्मचारी को इस भाषा का ज्ञान होना चाहिए. हम लगभग हर दिन चीनी सैनिकों के साथ बातचीत करते हैं उनकी भाषा का एक अच्छा ज्ञान ग़लतफहमी से बचने में मदद कर सकता है और बेवजह पैदा होने वाले टकरावों के बेहतर समाधान दे सकता है.

रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में आईटीबीपी के 90 हज़ार कर्मचारियों में से महज़ 150 सैनिक और अधिकारी ही इस भाषा को जानते हैं. यह सैन्य बल भारत-चीन की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात हैं.

इनमें से अधिकांश अधिकारी इस भाषा को मिड करिअर प्रशिक्षण के दौरान सेना प्रशिक्षण अकादमियों या जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सीखते हैं.

सूत्रों का कहना है कि यह कदम पूरे सैन्य बल को इस भाषा से वाकिफ़ करवाने के लिए उठाया गया है ताकि जवान चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों के साथ सहजता से संवाद कायम कर सकें.

वर्तमान में जब भी दोनों में से किसी एक तरफ से सीमा पर कथित गतिरोध बढ़ता है तो दोनों देशों की सेना बैनर उठा लेती है जो उस स्थान की स्थापित सीमा की स्थिति को बताता है और दूसरी ओर की सेना से पीछे हटने को कहता है.

अधिकारी कहते हैं, ‘मौखिक भाषा का अधिक प्रभाव पड़ता है. यह गतिरोध कम करने में मदद करता है. कम से कम छोटे-मोटे झगड़े और पत्थरबाज़ी जैसी घटना हाल ही में जैसा पैंगॉन्ग त्सो में देखा गया, उससे बचा जा सकता था. यह ज़मीनी स्तर पर दोनों देशों के बीच संबंध बनाने में भी मददगार होगा.’

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि आईटीबीपी ने भाषा का प्रशिक्षण देने के लिए 12 शिक्षकों की भी नियुक्ति कर ली है, जो मसूरी सेना प्रशिक्षण केंद्र में सैनिकों और अफसरों को प्रशिक्षित करेंगे. इन सभी को पोस्टिंग से पहले इस भाषा में टेस्ट पास करना होगा.

अधिकारी ने बताया, ‘जो लोग इस भाषा में प्रशिक्षित हैं उन्हें बाद में रिफ्रेशर कोर्स के लिए भेजा जाएगा और उनका उपयोग दूसरों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाएगा. वर्तमान में जो लोग इस भाषा को जानते हैं वे मुश्किल से 10 वाक्य बोल पाते हैं. विचार ये है कि ऐसे लोगों की इस भाषा पर पकड़ हो जाए और वे चीनी सैनिकों के साथ 50 से 60 वाक्य बोल सकें.’

वे कहते हैं, ‘चूंकि हम लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं पर कई चीनी सैनिकों से मिलते हैं जो चीनी भाषा के तिब्बती स्वरूप में बात करते हैं. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम मंदारिन और चीनी भाषा के तिब्बती स्वरूप सीखने के लिए खासतौर से तैयार किया गया है.’ उन्होंने आगे कहा कि सिर्फ मंदारिन पर नहीं बल्कि तिब्बत में बोली जाने वाली चीनी भाषा में जवानों के प्रशिक्षिण का ज़ोर दिया जा रहा है.

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