वैक्सीन वितरण में असमानता: निजी क्षेत्र के लिए निर्धारित कोटे का 50 फीसदी नौ अस्पतालों ने खरीदा

मई महीने में केंद्र द्वारा वैक्सीन पॉलिसी में संशोधन किए जाने और इसे बाज़ार के लिए खोलने के बाद वैक्सीन की कुल 1.20 करोड़ खुराक में से 60.57 लाख नौ निजी अस्पतालों ने खरीदी हैं. बाकी पचास फीसदी टीके भी अधिकतर शहरों में बने 300 अस्पतालों द्वारा खरीदे गए हैं.

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वाराणसी के एक टीकाकरण केंद्र पर कतार में लगे लोग. (फोटो: पीटीआई)

मई महीने में केंद्र द्वारा वैक्सीन पॉलिसी में संशोधन किए जाने और इसे बाज़ार के लिए खोलने के बाद वैक्सीन की कुल 1.20 करोड़ खुराक में से 60.57 लाख नौ निजी अस्पतालों ने खरीदी हैं. बाकी पचास फीसदी टीके भी अधिकतर शहरों में बने 300 अस्पतालों द्वारा खरीदे गए हैं.

वाराणसी के एक टीकाकरण केंद्र पर कतार में लगे लोग. (फोटो: पीटीआई)
वाराणसी के एक टीकाकरण केंद्र पर कतार में लगे लोग. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः देश में कोरोना वैक्सीन की कमी के बीच देश के नौ बड़े निजी अस्पतालों ने मई महीने में निजी सेक्टर के लिए निर्धारित 1.20 करोड़ वैक्सीन में से लगभग पचास फीसदी खरीद ली थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मई महीने में केंद्र द्वारा वैक्सीन पॉलिसी में संशोधन और इसे बाजार के लिए खोलने के बाद इन नौ निजी अस्पतालों ने वैक्सीन की 1.20 करोड़ डोज में से 60.57 लाख डोज खरीदी थी.

वहीं, बाकी पचास फीसदी टीके भी अधिकतर शहरों में स्थापित 300 अस्पतालों ने खरीदे. इन शहरों में से शायद ही कुछ टीके टियर-2 शहरों से बाहर खरीदे गए हों.

केंद्र सरकार ने एक मई से राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को सीधे वैक्सीन निर्माताओं से कुल उत्पादन का पचास फीसदी खरीदने को मंजूरी दी थी.

केंद्र ने इसी दिन से अपनी खरीद सिर्फ पचास फीसदी तक सीमित रखी थी. ये टीके भी राज्यों को दिए जाने थे ताकि वे 45 साल से अधिक की उम्र वाले लोगों को टीका लगा सकें.

निजी अस्पतालों ने मई में 1.20 करोड़ डोज खरीदी, जो अब तक खरीदी गई कुल 7.94 करोड़ डोज का 15.6 फीसदी है. इनमें से मई में सिर्फ 22 लाख यानी 18 फीसदी वैक्सीन ही लगाई गईं.

राज्यों ने 2.66 करोड़ डोज यानी 33.5 फीसदी और केंद्र ने 4.03 करोड़ यानी 50.9 फीसदी वैक्सीन खरीदीं.

इन नौ शीर्ष निजी अस्पतालों में अपोलो हॉस्पिटल्स (समूह के नौ अस्पतालों ने 16.1 लाख डोज), मैक्स हेल्थकेयर (छह अस्पतालों ने 12.97 लाख डोज), रिलायंस फाउंडेशन का एचएन हॉस्पिटल ट्रस्ट (9.89 लाख डोज), मेडिका हॉस्पिटल्स (6.26 लाख डोज), फोर्टिस हेल्थकेयर (आठ अस्पतालों ने 4.48 लाख डोज खरीदी), गोदरेज (3.35 लाख डोज), मनिपाल हेल्थ (3.24 लाख डोज), नारायण हृदयालय (2.02 लाख डोज) और टेक्नो इंडिया डामा (2 लाख डोज) ने खरीदीं.

ये समूह अधिकतर मेट्रो शहरों, राज्यों की राजधानियों और टियर-1 शहरों में हैं.

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक अपनी वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन केंद्र सरकार को प्रति डोज 150 रुपये में बेच रही हैं जबकि निजी अस्पतालों में इन वैक्सीन के दाम में काफी अंतर है. निजी अस्पताल कोविशील्ड के लिए प्रति डोज 600 रुपये और कोवैक्सीन के लए 1,200 रुपये प्रति डोज शुल्क ले रहे हैं.

बंगलुरू में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर तेजल कांतिकर ने कहा, ‘वैक्सीन निर्माता वैक्सीन निजी अस्पतालों को बेचना पसंद करेंगे क्योंकि वह दाम को लेकर मोल-भाव अधिक कर सकते हैं.’

अस्पताल लोगों से कोविशील्ड के लिए 850-1000 रुपये प्रति डोज और कोवैक्सीन के लिए 1,250 रुपये शुल्क ले रहे हैं. शहरों में रहने वाले एक वर्ग के लिए यह दाम किफायती हो सकते हैं लेकिन निम्न मध्यवर्ग और गरीबों के लिए यह वाजिब नहीं हैं.

किफायत के अलावा अन्य अहम पहलू पहुंच का है. ये डोज शहरों में 18-44 साल तक के लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं.

इस अखबार ने अस्पतालों को मई में उनके टीकाकरण वितरण के भौगोलिक प्रसार (शहरी और ग्रामीण) को लेकर विस्तृत सवाल भेजे हैं, जिनके अभी तक जवाब नहीं आए हैं इसलिए अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इन अस्पतालों ने अपनी पूरी श्रृंखला में वैक्सीन का परिवहन किया है या सिर्फ कॉरपोरेट, हाउसिंग सोसाइटी या अन्य शहरों के छोटे क्लीनिक या फिर तुलनात्मक रूप से कम शहरी इलाकों में ही डोज उपलब्ध कराने को लेकर करार किया है.

आंकड़ों से पता चलता है कि निजी सेक्टर ने कुल प्राप्त स्टॉक का पच्चीस फीसदी से भी कम खरीदा है और उनकी मौजूदा दैनिक टीकाकरण क्षमता को देखते हुए उनके पास सिर्फ एक और पखवाड़े के लिए पर्याप्त सप्लाई है.

टीकाकरण पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति को लेकर उसे फटकार लगाते हुए केंद्र से अपनी वैक्सीन नीति की समीक्षा करने को भी कहा था. अदालत ने 18-44 आयुवर्ग के लोगों को वैक्सीन के लिए भुगतान करने के फैसले को मनमाना और तर्कहीन करार दिया था.

आंकड़ों से पता चलता है कि मई में निजी अस्पतालों द्वारा वैक्सीन शहरी क्षेत्रों को ध्यान में रखकर खरीदी गई. अपोलो हॉस्पिटल्स ने नौ शहरों में स्टॉक खरीदा.

अपोलो के प्रवक्ता ने कहा कि खरीदे गए स्टॉक का कुछ हिस्सा अपोलो क्लीनिक, अपोलो स्पेक्ट्रा और नासिक और इंदौर जैसे टियर-2 शहरों में समूह के अस्पतालों में वितरित किए गए. उन्होंने स्वीकार किया कि ग्रामीण इलाकों में समूह की कोई पहुंच नहीं है.

इसी तरह मैक्स हेल्थकेयर ने छह शहरों मे स्टॉक खरीदा और फोर्टिस ने आठ शहरों में. फोर्टिस के एक प्रवक्ता ने बताया कि देशभर में अस्पतालों में डोज वितरित किए गए, विशेष रूप से टियर-1 और टियर-2 शहरों में. उदाहरण के लिए दिल्ली में खरीदी गई तीन लाख डोज देशभर के शहरों में वितरित किए गए. एचएन अस्पताल के मुंबई और नवी मुंबई में सिर्फ दो अस्पताल हैं जबकि मेडिका का कोलकाता में एक अस्पताल है.

बड़े शहरों और मेट्रो में भी छोटे अस्पतालों ने इस असमानता के मुद्दे को उठाया है. मुंबई के हिंदू सभा अस्पताल के मेडिकल निदेशक डॉ. वैभव दियोगिरकर ने कहा,’ हमने 30,000 डोज  का ऑर्डर दिया था लेकिन हमेंसिर्फ 3,000 डोज मिली. मजबूत नेटवर्क और संसाधन वाले बड़े अस्पताल वैक्सीन निर्माताओं से बढ़िया सौदा करने में सफल रहे.’

उन्होंने कहा कि वह सप्लाई जारी रखने के लिए प्रतिदिन सिर्फ कुछ हजार स्लॉट ही खोल सकते हैं.