यूपी: डॉक्टरों ने प्रशा​सनिक कार्यों से हटाने के विरोध में योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश में डॉक्टरों को केवल क्लीनिकल और मेडिकल ड्यूटी के लिए तैनात किया जाना चाहिए. उन्हें प्रशासनिक या प्रबंधन कार्यों के लिए तैनात नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाय उनकी जगह एमबीए डिग्री धारकों की नियुक्ति करनी चाहिए. डॉक्टरों का कहना है कि वे सेवा के लिए मरने को तैयार हैं, लेकिन सम्मान का त्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं.

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योगी आदित्यनाथ (फोटो: पीटीआई)

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश में डॉक्टरों को केवल क्लीनिकल और मेडिकल ड्यूटी के लिए तैनात किया जाना चाहिए. उन्हें प्रशासनिक या प्रबंधन कार्यों के लिए तैनात नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाय उनकी जगह एमबीए डिग्री धारकों की नियुक्ति करनी चाहिए. डॉक्टरों का कहना है कि वे सेवा के लिए मरने को तैयार हैं, लेकिन सम्मान का त्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

लखनऊः उत्तर प्रदेश प्रांतीय स्वास्थ्य एवं मेडिकल सेवा संघ (यूपीएमएस) ने सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के उलट कहा है कि उन्हें प्रशासनिक या प्रबंधन के कार्यों से मुक्त न किया जाए.

दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो दिन पहले बैठक में कहा था कि राज्य में डॉक्टरों को केवल क्लीनिकल और मेडिकल ड्यूटी के लिए तैनात किया जाना चाहिए. उन्हें प्रशासनिक या प्रबंधन कार्यों के लिए तैनात नहीं किया जाना चाहिए और उनकी जगह एमबीए डिग्री धारक युवाओं को प्रशासनिक पदों पर तैनात किया जाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब यूपीएमएस ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि उनके लिए किसी गैर तकनीकी प्रमुख के तहत काम करना मुश्किल होगा.

उन्होंने कहा कि वे सेवा के लिए मरने को तैयार हैं, लेकिन सम्मान का त्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं.

यूपीएमएस ने सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर पूछा कि क्या इसी तरह की व्यवस्था अन्य विभागों या वहां भी की जाएगी, जहां तकनीकी शख्स विभाग का नेतृत्व कर रहा है?

उन्होंने कोविड-19 के दौरान जिला प्रशासन में लोगों द्वारा मानसिक शोषण और अपमान का भी आरोप लगाया.

अपने पत्र में एसोसिएशन ने कहा, ‘अगर इस तरह के कदम को लागू किया जाता है तो उनके लिए चीजें जटिल हो जाएंगी क्योंकि उन्हें संकट और आपातकालीन स्थितियों का प्रबंधन करने के लिए अनुभवी डॉक्टरों की आवश्यकता होती है. इसके अलावा प्रशासनिक पदों से कुछ मुट्ठी भर डॉक्टरों को हटाकर मांग और सरकारी डॉक्टर की उपस्थिति के बीच का व्यापक अंतर कम नहीं होगा.’

उत्तर प्रदेश प्रांतीय स्वास्थ्य एवं मेडिकल सेवा संघ के महासचिव अमित सिंह ने कहा, ‘हम नहीं कर पाएंगे. नॉन टेक्निकल को अपने बॉस के रूप में नहीं स्वीकार कर सकते. जान दे सकते हैं, मान सम्मान नहीं दे सकते.’

उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में डॉक्टरों की जान गई है और उन्होंने खराब स्थितियों में कम से कम सुविधाओं में काम किया है और कर रह हैं, लेकिन उनका गैर तकनीकी प्रमुख होगा तो इससे चीजें और बदतर होंगी.

सिंह ने कहा, ‘हर जगह व्यक्तियों को वर्षों के अनुभव के साथ प्रमोट किया जाता है. यह प्रोत्साहन की तरह है, लेकिन मुख्यमंत्री का यह सुझाव ऐसा है, जैसे हमें बताया जा रहा है कि हम स्वार्थरहित सेवा देना जारी रख सकते हैं, लेकिन वर्षों के अनुभव के बाद भी प्रबंधन करने में सक्षम नहीं हैं.’

उन्होंने कहा कि जहां सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु 58 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी है, वहीं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को सेवा से हटा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘हमें आवश्यक सेवाओं के रूप में संदर्भित किया जाता है, लेकिन जब सुविधाओं और प्राथमिकता की बात आती है, तो हम सीढ़ी के सबसे आखिरी पायदान पर खड़े हैं. कोरोना से मरने वाले डॉक्टरों के सिर्फ एक वर्ग को मुआवजा दिया गया, जबकि पैरा मेडिकल में अब तक शायद ही किसी को मुआवजा दिया गया है. अब प्रशासन कहा है?’

बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते पांच जून को हुई टीम-9 की बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया कि चिकित्सकों को केवल चिकित्सकीय कार्य में ही तैनात किया जाए. स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अलग-अलग अस्पतालों और कार्यालयों सहित, जहां भी चिकित्सकों की तैनाती प्रशासनिक व प्रबंधकीय कार्यों में की गई है, उन्हें तत्काल कार्यमुक्त कर चिकित्सकीय कार्यों में ही लगाया जाए.

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