किसान हित के दावों के बीच सरकार ने लक्ष्य के मुकाबले छह फीसदी से भी कम दालें और तिलहन खरीदा

सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि खरीफ 2020-21 सीजन में सरकार ने 51.91 लाख टन दालें एवं तिलहन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीद हुई है. इसके लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 1.67 लाख को ही लाभ मिला है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि खरीफ 2020-21 सीजन में सरकार ने 51.91 लाख टन दालें एवं तिलहन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीद हुई है. इसके लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 1.67 लाख को ही लाभ मिला है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ छह महीने से भी अधिक समय से चल रहे आंदोलनों के बीच केंद्र ने साल 2021-22 की खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है.

भाजपा और केंद्र सरकार इस मौके को किसानों के प्रति अपनी छवि सुधारने के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जहां केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा के नेता एवं कार्यकर्ता तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘किसान हितैषी’ बताने की होड़ में लगे हुए हैं.

मोदी ने भी बीते नौ जून को ट्वीट कर कहा था, ‘अन्नदाताओं के हित में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी को मंजूरी दी है. कई फसलों के एमएसपी में वृद्धि से किसान भाई-बहनों की आय बढ़ने के साथ उनके जीवन स्तर में भी सुधार होगा.’

हालांकि हकीकत ये है कि जहां एक तरफ केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी, कृषि लागत की तुलना में काफी कम होती है, वहीं दूसरी तरफ सरकार जो भी एमएसपी घोषित कर रही है, उसका भी लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा दालें (दलहन) और तिलहन का उत्पादन करने वाले किसानों को उठाना पड़ रहा है.

खुद सरकारी फाइलें इस स्थिति की तस्दीक करते हैं. आलम ये है कि पिछले खरीफ सीजन, यानी कि 2020-21 के दौरान मोदी सरकार ने जितनी दालें एवं तिलहन खरीदने का लक्ष्य रखा था, उसकी तुलना में छह फीसदी से भी कम खरीदी हुई है.

इतना ही नहीं, सरकारी रेट पर दाल एवं तिलहन बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराए 8.93 लाख किसानों से खरीद नहीं हुई. दूसरे शब्दों में कहें, तो सरकार ने ऐसे कुल किसानों में से महज 16 फीसदी से ही उनकी उपज खरीदा है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खरीफ 2020-21 सीजन में 51.91 लाख टन दालें (तुअर, मूंग, उड़द ) एवं तिलहन (मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल) खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीदी हो पाई है.

इस दौरान अपनी उपज बेचने के लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से 1.67 लाख किसानों से ही सरकार ने दाल एवं तिलहन खरीदा.

बता दें कि कृषि मंत्रालय केंद्रीय खरीद एजेंसी नैफेड के जरिये ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा)’ में शामिल मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत दालें, तिलहन एवं खोपरा (सूखा नारियल) की एमएसपी पर खरीदी करता है.

अक्टूबर 2018 में इस योजना को इसलिए लॉन्च किया गया था ताकि गेहूं, धान के अलावा इन फसलों के किसानों को भी एमएसपी दिलाया जाए, ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो.

कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों की एक प्रमुख मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए कि कोई भी खरीददार एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपज को नहीं खरीदेगा और यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो.

हालांकि आंकड़े दर्शाते हैं कि कोरोना महामारी के बीच भी सरकारों ने कृषि संकट के प्रति गंभीरता का परिचय नहीं दिया है.

फसल-वार और राज्य-वार इनका विवरण इस प्रकार है:

तुअर

दस्तावेजों के मुताबिक, भारत सरकार ने खरीफ 2020-21 सीजन में 7.20 लाख टन तुअर खरीदने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से महज 11 हजार टन की खरीद हुई है.

केंद्र ने कर्नाटक से 2.10 लाख टन, महाराष्ट्र से 2.89 लाख टन, तेलंगाना से 77,000 टन, गुजरात से 66,350, ओडिशा से 38,325 टन खरीदने की योजना बनाई गई थी.

लेकिन कर्नाटक से सिर्फ 8,969 टन, महाराष्ट्र से 1,246 टन, तेलंगाना से शून्य, गुजरात से 572 टन, ओडिशा से कुछ भी नहीं और आंध्र प्रदेश से 184.55 टन की खरीद हुई.

सरकार ने इतनी कम खरीद ऐसे समय पर की जब तुअर (अरहर) का औसत बाजार मूल्य एमएसपी की तुलना में 3.9 फीसदी कम था.

पिछले सीजन में तुअर की एमएसपी 6,000 रुपये प्रति क्विंटल थी, यानी सरकारी खरीद न होने पर किसानों को कम कीमत पर कृषि उत्पाद बेचना पड़ा.

बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पोर्टल एगमार्कनेट और आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय के आंकड़ों के मुताबिक, एमएसपी के मुकाबले बाजार मूल्य सबसे ज्यादा कम मध्य प्रदेश (-14.1%) में रहा. इसके अलावा तुअर का बाजार मूल्य उत्तर प्रदेश में एमएसपी की तुलना में सात फीसदी और गुजरात में 6.3 फीसदी कम था.

एगमार्कनेट देश भर की 3000 से अधिक थोक मंडियों में कृषि उत्पादों की आवक एवं उनके बिक्री मूल्यों की जानकारी देता है.

मध्य प्रदेश में अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच 128 दिनों में से 109 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम रहा. वहीं इसी दौरान गुजरात में 139 दिन में से 101 दिन और उत्तर प्रदेश में 151 दिन में से 149 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे रहा.

इसी तरह कर्नाटक में 129 दिन में से 73 दिन और महाराष्ट्र में 137 दिन में से 84 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम था.

मूंग

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खरीफ 2020-21 सीजन में 4.62 लाख मूंग खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से महज 13,730 टन खरीद हुई है.

मंत्रालय ने सबसे ज्यादा राजस्थान से 3.57 लाख टन मूंग खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसके मुकाबले राज्य से सिर्फ 12,024 टन की ही खरीद हुई.

आलम ये है कि कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के लिए लक्ष्य निर्धारित करने के बावजूद एक भी क्विंटल की खरीद नहीं हुई.

जबकि इस दौरान मूंग का औसत बाजार मूल्य एमएसपी की तुलना में 10.8 फीसदी कम था. पिछले खरीफ सीजन में मूंग की एमएसपी 7,196 रुपये प्रति क्विंटल थी.


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आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच मध्य प्रदेश में 100 दिनों में से सिर्फ एक दिन बाजार मूल्य एमएसपी से ऊपर था.

इसी तरह राजस्थान में 143 दिनों में से सिर्फ दो दिन बाजार मूल्य एमएसपी से ऊपर था. इस दौरान 61 दिन राज्य में बाजार मूल्य एमएसपी की तुलना में 10 से 15 तक कम रहा था.

वहीं महाराष्ट्र में 127 दिनों में से 81 दिन तक बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे था. नतीजन बहुत बड़ी संख्या में किसानों को कम दाम पर अपने कृषि उत्पाद बेचने पड़े.

उड़द

तुअर और मूंग की तरह ही केंद्र सरकार ने पीएसएस योजना के तहत 1.88 लाख टन उड़द खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से महज 137 टन की खरीद हुई है.

मोदी सरकार ने खरीफ 2020-21 सीजन में महाराष्ट्र को छोड़कर किसी भी राज्य से एक भी किलो उड़द नहीं खरीदा है.

वैसे यदि कुल मिलाकर देखें, तो पिछले सीजन में उड़द का बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा था. लेकिन यदि राज्य-वार स्थिति देखते हैं, तो एक अलग ही कहानी बयां होती है.

एगमार्कनेट के मुताबिक, अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच मध्य प्रदेश में 128 दिनों में से 93 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम था. कुल मिलाकर देखें, तो पूरे सीजन के दौरान राज्य में उड़द का बाजार मूल्य एमएसपी से 4.8 फीसदी कम रहा था.

इसी तरह महाराष्ट्र में 79 दिनों में से 47 दिन और तमिलनाडु में 87 दिनों में से 22 दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम था.

हालांकि राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किसानों के अच्छे भाव मिले, जहां का बाजार मूल्य अधिकतर समय एमएसपी से ऊपर रहा था.

मूंगफली

यदि तिलहन को देखें, तो कृषि मंत्रालय ने खरीफ 2020-21 में 20.31 लाख टन मूंगफली खरीदने का लक्ष्य रखा था. हालांकि इसमें से सिर्फ 2.84 लाख टन की ही खरीद हुई.

मंत्रालय ने सबसे ज्यादा 13.66 लाख टन मूंगफली गुजरात से खरीदने की इजाजत दी थी, जिसमें से 2.02 लाख टन की ही खरीद हुई. सरकार ने राजस्थान से भी 3.74 लाख टन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसके मुकाबले महज 74.5 हजार टन ही खरीदा गया.

केंद्र द्वारा इतनी कम खरीद ऐसे समय पर की गई है जब मूंगफली का औसत बाजार मूल्य इस सीजन में एमएसपी के मुकाबले 8.4 फीसदी कम था. इसमें से राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में ज्यादातर समय बाजार मूल्य एमएसपी से कम रहा था.

आंकड़ों के मुताबिक, एमएसपी के मुकाबले बाजार मूल्य आंध्र प्रदेश में 13.9 फीसदी, कर्नाटक में 12.2 फीसदी और गुजरात में 5.4 फीसदी कम था.

अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच गुजरात में 137 दिनों में से सिर्फ सात दिन बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा था.

वहीं, इसी दौरान राजस्थान में 141 दिनों में से तीन दिन, कर्नाटक में 131 दिन में से आठ दिन और आंध्र प्रदेश में 71 दिन में से 15 दिन ही बाजार मूल्य एमएसपी से ज्यादा था.

सोयाबीन

मूंगफली की तरह ही केंद्र सरकार ने पिछले खरीफ सीजन में 17.60 लाख टन सोयाबीन खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से महज 3.69 टन की ही खरीदी हुई है. सरकार ने महाराष्ट्र को छोड़कर किसी और राज्य से इस कृषि उत्पाद को नहीं खरीदा है.

इसी एक प्रमुख वजह ये हो सकती है कि इस बीच बाजार मूल्य ठीक-ठाक रहा था. यदि पूरे सीजन को मिलाकर देखें, तो इस दौरान मूंगफली का बाजार मूल्य एमएसपी के मुकाबले 2.7 फीसदी अधिक रहा था.

हालांकि अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच मध्य प्रदेश में जितने दिन बिक्री हुई, उसमें से 21.5 फीसदी दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम था.

इसी तरह महाराष्ट्र में 21.7 फीसदी दिन और राजस्थान में 9.8 फीसदी दिन बाजार मूल्य एमएसपी से कम रहा था.

खोपरा (नारियल)

दालें और तिलहन के अलावा केंद्र ने 1.22 लाख टन खोपरा यानी सूखे नारियल खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से महज 5,088 टन खरीदी हुई है.

इसके लिए 9806 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 3961 किसानों को ही लाभ मिला.

केंद्र ने कर्नाटक से 38,250 टन, तमिलनाडु से 50,000 टन, आंध्र प्रदेश से 4,500 टन और केरल से 30,000 टन खोपरा खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से सिर्फ कर्नाटक से 5,040 टन और तमिलनाडु से 48.88 टन की ही खरीद हुई है.

बाकी किसी राज्य से पीएसएस के तहत खोपरा की खरीद नहीं हुई है.

एमएसपी दिलाने वाली योजना का बजट घटाया

किसानों को उपज (दालें, तिलहन एवं खोपरा) का लाभकारी मूल्य यानी कि एमएसपी दिलाने वाली ‘पीएम-आशा योजना’ के बजट में मोदी सरकार लगातार कटौती कर रही है. इसके साथ ही इस योजना के आवंटित राशि में से काफी कम खर्च किया जा रहा है.

उदाहरण के तौर पर, वित्त वर्ष 2018-19 में आवंटित 1400 करोड़ रुपये में से एक भी पैसा खर्ज नहीं किया गया. इसके बाद वित्त वर्ष 2019-20 में इसके लिए 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन इसे संशोधित करते 321 करोड़ रुपये कर दिया गया और इसमें से भी 313.2 करोड़ रुपये ही खर्च किया गया.

इसके अगले वित्त वर्ष 2020-21 के लिए सरकार ने पीएम-आशा योजना का बजट एकदम से घटाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया. आगे चलकर इसे और संशोधित यानी कम करके 200 करोड़ रुपये कर दिया गया.

आलम ये है कि इस बजट में से भी 12 मार्च 2021 तक एक रुपये भी खर्च नहीं किया जा सका है. जाहिर है कि इसके चलते दालें एवं तिलहन की खरीद प्रभावित हुई है, नतीजन लक्ष्य के मुकाबले काफी कम खरीद हुई है.

वित्त मंत्रालय ने मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के लिए इस योजना के तहत 400 करोड़ रुपये आवंटित किया है, लेकिन पूर्ववर्ती प्रदर्शन को देखते हुए लगता है कि सरकार इसे घटाकर और कम कर देगी.

एमएसपी की सिफारिश करने वाली कृषि मंत्रालय की संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने अपनी नवीनतम खरीफ रिपोर्ट 2021-22 में कहा है कि ‘पीएम-आशा योजना’ का प्रदर्शन संतोषजनक स्तर से भी कोसों दूर है.

उन्होंने कहा, ‘इस योजना को लोकप्रिय बनाने के लिए राज्य सरकारें, निजी क्षेत्र और अन्य स्टेकहोल्डर्स के बीच विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है. आयोग का मानना है कि इस योजना से किसानों को लाभ मिलने की काफी संभावनाएं हैं, लेकिन पीएम-आशा की समीक्षा करने और इसके कार्यान्वयन सिस्टम को तत्काल ठीक करने आवश्यकता है.’

इसे लेकर सीएसीपी ने सुझाव दिया है कि केंद्र, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र की सदस्यता वाली एक समिति का गठन किया जाए, जो योजना की समीक्षा कर इसे प्रभावी बनाने के परिवर्तनों की सिफारिश करेगी.

आयोग ने ये भी कहा है कि पीएम-आशा योजना के तहत सरकार द्वारा कुल उत्पादन का 25 फीसदी खरीदने का प्रावधान दिया गया है, लेकिन सरकारें खरीदी लक्ष्य इससे काफी कम निर्धारित कर रही हैं.

सीएसीपी ने कहा कि ज्यादातर राज्य दालें, तिलहन एवं खोपरा की इतनी कम खरीद कर रहे हैं कि उत्पादन का 25 फीसदी तक खरीदने के प्रावधान को लेकर कोई समस्या खड़ी ही नहीं हुई है. आयोग ने राज्यों एवं केंद्र को इतनी लचर खरीदी व्यवस्था को ठीक करने को कहा है.

मालूम हो कि देश में दाल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने बीते 15 मई को विदेश से दाल आयात करने की इजाजत दी थी. इससे उपभोक्ताओं को तो लाभ हुआ है, लेकिन दलहन का उत्पादन करने वाले किसान काफी चिंता में हैं.

उनका कहना है कि सरकार विदेशों से सस्ते में खरीद कर बाजार भाव कम कर रही है. वहीं दूसरी ओर किसानों का ये भी कहना है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार उनके दाल नहीं खरीदती है और बाजार मूल्य बढ़ने पर विदेशी दाल आने का रास्ता खोल दिया जाता है.

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