ख़राब हालात वाले सरकारी स्कूलों को निजी कंपनियों को सौंप देना चाहिए: नीति आयोग

नीति आयोग ने सिफारिश की है कि इस बात संभावना तलाशनी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नीति आयोग ने सिफारिश की है कि इस बात संभावना तलाशनी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.

School Children PTI
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: नीति आयोग का मानना है कि देश में पढ़ाई-लिखाई के लिहाज से खराब स्तर वाले सरकारी स्कूलों को निजी हाथों को सौंप दिया जाना चाहिए. आयोग का मानना है कि ऐसे स्कूलों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत निजी कंपनियों को दे दिया जाना चाहिए.

आयोग ने हाल में जारी तीन साल के कार्य एजेंडा में यह सिफारिश की है. इसमें कहा गया है कि यह संभावना तलाशी जानी चाहिए कि क्या निजी क्षेत्र प्रति छात्र के आधार पर सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, समय के साथ सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इसमें दाखिले में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है जबकि दूसरी तरफ निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या बढ़ी है. इससे सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब हुई है.

आयोग ने कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति की ऊंची दर, शिक्षकों के क्लास में रहने के दौरान पढ़ाई पर पर्याप्त समय नहीं देना तथा सामान्य रूप से शिक्षा की खराब गुणवत्ता महत्वपूर्ण कारण हैं, जिसके कारण सरकारी स्कूलों में दाखिले कम हो रहे हैं और उनकी स्थिति खराब हुई है. निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों का परिणाम खराब है.

रिपोर्ट के अनुसार इस संदर्भ में अन्य ठोस विचारों की संभावना तलाशने के लिए इसमें रुचि रखने वाले राज्यों की भागीदारी के साथ एक कार्य समूह गठित किया जाना चाहिए.

नीति आयोग के अनुसार, इसमें पीपीपी मॉडल की संभावना भी तलाशी जा सकती है. इसके तहत निजी क्षेत्र सरकारी स्कूलों को अपनाएं जबकि प्रति बच्चे के आधार पर उन्हें सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित किया जाना चाहिए. यह उन स्कूलों की समस्या का समाधान दे सकता है जो खोखले हो गए हैं और उनमें काफी खर्च हो रहा है.

वर्ष 2010-2014 के दौरान सरकारी स्कूलों की संख्या में 13,500 की वृद्धि हुई है लेकिन इनमें दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 1.13 करोड़ घटी है. दूसरी तरफ निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या 1.85 करोड़ बढ़ी है.

आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में करीब 3.7 लाख सरकारी स्कूलों में 50-50 से भी कम छात्र थे. यह सरकारी स्कूलों की कुल संख्या का करीब 36 प्रतिशत है.

गरीब बच्चों को दाखिला न देने वाले स्कूलों को अपने नियंत्रण में ले यूपी सरकार: एनसीपीसीआर

दिल्ली में 449 निजी स्कूलों के खिलाफ अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश प्रशासन से कहा कि वह गरीब बच्चों को दाखिला नहीं देकर शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन करने वाले निजी स्कूलों की मान्यता रद्द करे या फिर उनको अपने नियंत्रण में ले.

एनसीपीसीआर ने कानपुर के दो निजी स्कूलों के खिलाफ शिकायत को लेकर सुनवाई की और राज्य एवं जिला प्रशासन को इस संदर्भ में निर्देश दिया. गौरतलब है कि इन दोनों स्कूलों के खिलाफ शिकायत मिली थी कि ये गरीब बच्चों को दाखिला नहीं दे रहे हैं.

आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने बताया, हमने प्रशासन से कहा है कि शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन करने वाले इन स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए. कानपुर के जिला एवं बेसिक शिक्षा अधिकारी तथा राज्य के सचिव (बेसिक शिक्षा) को मनमानी करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा है.

निजी स्कूलों के खिलाफ दिल्ली सरकार की कार्रवाई का हवाला देते हुए कानूनगो ने कहा, उन स्कूलों को चलने का कोई अधिकार नहीं है जो अपने यहां गरीब बच्चों को शिक्षा नहीं दे सकते. सरकार ऐसे स्कूलों की मान्यता रद्द करे या फिर उनको टेकओवर करे.

गौरतलब है कि दिल्ली में अधिक फीस वसूलने वाले 449 स्कूलों को केजरीवाल सरकार ने अतिरिक्त फीस को अभिभावकों को वापस करने का निर्देश दिया है. उसने चेतावनी दी है कि बढ़ी हुई फीस वापस नहीं करने वाले स्कूलों को सरकार टेक-ओवर कर लेगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)