उत्तराखंड: आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाइयां लिखने की मंज़ूरी देने की योजना

उत्तराखंड के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे अवैध ठहराया. संगठन ने कहा है कि एलोपैथी के बारे में जाने बिना आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं कैसे लिख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की इस सबंध में स्पष्ट राय है कि आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकते, क्योंकि वे इसके योग्य नहीं हैं.

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(फोटो साभार: पिक्साबे)

उत्तराखंड के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे अवैध ठहराया. संगठन ने कहा है कि एलोपैथी के बारे में जाने बिना आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं कैसे लिख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की इस सबंध में स्पष्ट राय है कि आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकते, क्योंकि वे इसके योग्य नहीं हैं.

(फोटो साभार: पिक्साबे)
(फोटो साभार: पिक्साबे)

देहरादूनः उत्तराखंड सरकार ने आपात स्थिति में आयुर्वेदिक डॉक्टरों को मरीजों को चुनिंदा एलोपैथिक दवाएं लिखने की मंजूरी देने का फैसला किया है.

उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम से इतर आयुष मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि यह फैसला राज्य के दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के हित में किया गया है, जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ज्यादातर आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं.

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में करीब 800 आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं और लगभग इतनी ही संख्या में आयुर्वेदिक औषधालय हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में हैं.

उन्होंने कहा कि इस फैसले के लिए उत्तर प्रदेश भारतीय चिकित्सा अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता है और इससे आपदा और दुर्घटना संभावित पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद हो सकेगी, जो उचित स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं.

उत्तराखंड के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए इसे अवैध ठहराया.

उत्तराखंड आईएमए के सचिव अजय खन्ना ने कहा, ‘यह अवैध है और मिक्सोपैथी की श्रेणी में आता है.’

उन्होंने कहा कि मिक्सोपैथी आपात स्थिति में मरीजों को नुकसान ही पहुंचाएगी. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की इस सबंध में स्पष्ट राय है कि आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकते, क्योंकि वे इसके योग्य नहीं हैं.

उन्होंने सवाल किया, ‘एलोपैथी के बारे में जाने बिना आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं कैसे लिख सकते हैं?’

हालांकि, भारतीय चिकित्सा परिषद, उत्तराखंड के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ डॉक्टर जेएन नौटियाल ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य की 80 प्रतिशत आबादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है और उन्हें इससे काफी फायदा होगा.

इस घोषणा पर आईएमए की प्रतिक्रिया पर नौटियाल ने कहा, ‘आईएमए दोहरा मापदंड अपना रहा है. आयुष डॉक्टर अस्पतालों के आईसीयू और आकस्मिक वार्ड में काम करते हैं. उससे आईएमए को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन अब जब किसी फैसले से पर्वतीय इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों को फायदा होने वाला है तो उन्हें परेशानी है.’

बता दें कि आयुर्वेद बनाम एलोपैथी पर बहस पिछले महीने उस समय शुरू हुई थी, जब रामदेव ने कोविड-19 के इलाज में एलोपैथिक दवाओं ती प्रभावकारिता को लेकर सवाल उठाया था. उसके बाद आईएमए की उत्तराखंड इकाई ने योगगुरु को मानहानि नोटिस भेजा था और 1,000 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की थी.

सोशल मीडिया पर व्यापक तौर पर शेयर किए गए एक वीडियो में रामदेव को यह कहते सुना गया था कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’. उन्होंने यह भी कहा कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई.

एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताने पर रामदेव के खिलाफ महामारी रोग कानून के तहत कार्रवाई करने की डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व डॉक्टरों के अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें, जिसके बाद रामदेव ने अपना बयान वापस ले लिया था.

वहीं, आईएमए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की थी कि कोविड-19 के उपचार के लिए सरकार के प्रोटोकॉल को चुनौती देने तथा टीकाकरण पर कथित दुष्प्रचार वाला अभियान चलाने के लिए रामदेव पर तत्काल राजद्रोह के आरोपों के तहत मामला दर्ज होना चाहिए.

मालूम हो कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों को कुछ तरह के ऑपरेशन करने की अनुमति देने के केंद्र के फैसले का एलोपैथिक डॉक्टरों का एक तबका विरोध कर रहा है और वह इसे ‘मिक्सोपैथी’ या खिचड़ीकरण करार दिया है.

बता दें कि आयुष मंत्रालय के अधीन भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के नियमन से जुड़ी सांविधिक इकाई सीसीआईएम ने पिछले साल 20 नवंबर को जारी अधिसूचना में 39 सामान्य सर्जरी प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध किया था, जिनमें से 19 प्रक्रियाएं आंख, नाक, कान और गले से जुड़ी हैं.

इसके लिए भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेद शिक्षा), नियमन 2016 में संशोधन किया गया है. अधिसूचना के मुताबिक, आयुर्वेदिक पढ़ाई के दौरान ‘शल्य’ और ‘शाल्क्य’ में पीजी कर रहे छात्रों को ऑपरेशन करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) लगातार विरोध कर रहा है. आईएमए ने पिछले साल 22 नवंबर को इस कदम की निंदा की थी और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों को पीछे की ओर ले जाने वाला कदम करार दिया था.

संगठन ने कहा था कि यह चिकित्सा शिक्षा या प्रैक्टिस का भ्रमित मिश्रण या ‘खिचड़ीकरण’ (मिक्सोपैथी) है. आईएमए ने संबंधित अधिसूचना को वापस लिए जाने की मांग की थी.

केंद्र के इस फैसले का बचाव करते हुए आयुष मंत्री श्रीपद नाईक ने कहा था कि आयुर्वेद चिकित्सकों को सामान्य सर्जरी की अनुमति कोई ‘मिक्सोपैथी’ नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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