बीते 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने यह टिप्पणी की है. उन्होंने जम्मू कश्मीर का परिसीमन देश के बाकी राज्य के साथ 2021 की जनगणना के बजाय 2011 की जनगणना पर कराने पर भी सवाल उठाए. नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने उन चर्चाओं को ख़ारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री के साथ बैठक गुपकर घोषणा-पत्र गठबंधन (पीएजीडी) के अंत का संकेत है.
नई दिल्ली/श्रीनगर: जम्मू कश्मीर के 14 वरिष्ठ नेताओं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद अब्दुल्ला ने कहा है कि मौजूदा सरकार से अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करना मूर्खता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अब्दुल्ला ने कहा, ‘(अनुच्छेद) 370 के अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने में भाजपा को 70 साल लग गए. हमारा संघर्ष अभी शुरू हुआ है. हम लोगों को यह कहकर मूर्ख नहीं बनाना चाहते कि हम इन वार्ताओं में 370 वापस लाएंगे. यह उम्मीद करना मूर्खता होगी कि 370 वापस आ जाएगा. कोई संकेत नहीं है कि वर्तमान सरकार द्वारा इसे बहाल किया जाएगा.’
बता दें कि बीते 24 जून को 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने न केवल प्रधानमंत्री, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वरिष्ठ नौकरशाहों से भी मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्यों में पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुल्ला आदि शामिल थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सर्वदलीय बैठक में शामिल अधिकांश राजनीतिक दलों ने जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और जल्द से जल्द विधानसभा का चुनाव संपन्न कराने की मांग उठाई.
रिपोर्ट के अनुसार, 24 जून को तीन घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में उमर अब्दुल्ला उन पांच व्यक्तियों में से एक थे, जिन्हें बोलने का मौका नहीं मिला था. अन्य चार निर्मल सिंह, तारा चंद, गुलाम ए. मीर और रविंदर रैना थे.
बैठक को शुरुआत करार देते हुए उन्होंने कहा, ‘यह पहला कदम है और यह विश्वास के पुनर्निर्माण के लिए एक लंबा रास्ता होगा.’
उन्होंने कहा कि पीएम ने खुद विधानसभा चुनाव, परिसीमन प्रक्रिया में तेजी लाने, चुनी हुई सरकार को जम्मू कश्मीर में बहाल करने और राज्य का दर्जा देने की बात की.
अब्दुल्ला ने कहा, ‘उन्होंने (पीएम) कहा है कि वह जिला विकास परिषदों के चुनाव के बाद एक बैठक करने के लिए बहुत उत्सुक हैं. उन्होंने यह उल्लेख किया कि पिछले साल कोविड की शुरुआत के बाद उनकी यह सबसे बड़ी व्यक्तिगत बैठक थी.’
यह पूछे जाने पर कि क्या नेशनल कांफ्रेंस ने अनुच्छेद 370 की बहाली की अपनी मांग को छोड़ दिया है, अब्दुल्ला ने जोर देकर कहा कि गुरुवार की (24 जून) बैठक में इसे नहीं रखने का मतलब यह नहीं है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इसे छोड़ दिया है.
उन्होंने कहा, ‘हम इसे कानूनी, शांतिपूर्ण और संवैधानिक रूप से करेंगे. हम रणनीति के साथ से लड़ रहे हैं. यह सर्वोच्च न्यायालय में लड़ा जा रहा है, जहां हमारे पास अधिक मौका है.’
अब्दुल्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पूरी निष्पक्षता के साथ, दोनों में से किसी ने भी बातचीत के लिए कोई शर्त नहीं रखी.
उन्होंने कहा, ‘बातचीत के लिए कोई पूर्व शर्त नहीं थी. हमें अपनी कोई भी मांग सरेंडर नहीं करनी पड़ी. हमने जो कुछ कहा या मांगा, उसके लिए उन्होंने हमें फटकार नहीं लगाई गई.’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘हमारे दो बुनियादी उद्देश्य थे: एक- भारत सरकार से यह समझना कि उनके मन में क्या है और आगे के रोडमैप का विचार. दूसरा- हम भी अपनी बात रखना चाहते थे. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से जो कहा, वह श्रीनगर में हमने जो कहा, उससे अलग नहीं था, यानी उन्होंने जो किया वह गलत था और आबादी का एक बड़ा हिस्सा दुखी था.’
परिसीमन प्रक्रिया के बारे में अपनी आशंकाओं को रखते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘जम्मू कश्मीर के लिए यह अभ्यास देश के बाकी हिस्सों के साथ क्यों नहीं किया जाना चाहिए, जब 5 अगस्त, 2019 का पूरा उद्देश्य (विशेष दर्जा हटाना) जम्मू कश्मीर को देश के बराबर लाना था, तो हमारे साथ अलग व्यवहार क्यों?’
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि अभी स्थिति है, देश के बाकी हिस्सों के लिए परिसीमन की कवायद 2021 की जनगणना पर आधारित होगी और 2026 तक तैयार हो जाएगी, जबकि जम्मू कश्मीर के लिए यह 10 साल पुरानी 2011 की जनगणना पर आधारित होगी.’
उन्होंने कहा, ‘परिसीमन का राजनीतिक पक्ष अनिश्चितता पैदा कर रहा है, जिसमें सीटों का फेरबदल होगा और उन्हें कहां जोड़ा जाएगा.’
जहां परिसीमन आयोग में सहयोगी सदस्यों के रूप में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन नेताओं ने बीते 18 फरवरी को हुई इसकी बैठक में शामिल नहीं हुए थे तो वहीं वे आगे होने वाली बैठकों में शामिल हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘पार्टी ने सही समय पर डॉक्टर साहब (नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला) को इस संबंध में फैसला करने का अधिकार दिया है.’
फारूक ने कहा- अविश्वास का स्तर, उमर ने राज्य का दर्जा बहाल करने को कहा
नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर में ‘अविश्वास का स्तर’ बरकरार है और इसे खत्म करना केंद्र की जिम्मेदारी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भाग लेने के बाद दिल्ली से लौटने पर पत्रकारों से बात करते हुए फारूक ने कहा कि वह बैठक पर कोई और बयान देने से पहले अपनी पार्टी के नेताओं और गुपकर गठबंधन (पीएजीडी) के घटक दलों के साथ चर्चा करेंगे.
उन्होंने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जम्मू कश्मीर के लोगों से जनमत संग्रह का वादा किया था, लेकिन वह पलट गए.
फारूक ने यह भी कहा कि 1996 के चुनाव से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने सदन के पटल से स्वायत्तता का वादा किया था. फारूक ने पूछा, ‘चुनाव से पहले नरसिम्हा राव जी ने हमें स्वायत्तता का वादा किया और कहा कि आकाश अनंत है, लेकिन स्वतंत्रता नहीं. हमने कहा कि हमने कभी आजादी नहीं मांगी, हमने स्वायत्तता मांगी है. उन्होंने हमसे सदन में वादा किया था. कहां गया वह वादा?’
फारूक ने कहा, ‘अविश्वास का स्तर है. हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि वे (केंद्र) क्या करते हैं. क्या वे अविश्वास को दूर करेंगे या इसे जारी रहने देंगे.’
पूर्व मुख्यमंत्री फारूक ने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह ने भी चुनाव कराने के पहले जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की बैठक में सभी आमंत्रित व्यक्तियों ने अपने विचार रखे. फारूक ने कहा, ‘उनकी तरफ से यह पहला कदम था कि किसी तरह जम्मू कश्मीर में स्थिति में सुधार हो और एक राजनीतिक प्रक्रिया फिर से शुरू हो.’
श्रीनगर लोकसभा सीट से लोकसभा सदस्य ने उन चर्चाओं को खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री के साथ 24 जून की बैठक गुपकर घोषणापत्र गठबंधन (पीएजीडी) के अंत का संकेत है.
पीएजीडी मुख्यधारा के छह दलों का गठबंधन है. जम्मू कश्मीर को अगस्त 2019 में दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटे जाने और अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म किए जाने के बाद यह गठबंधन हुआ था. फारूक ने कहा, ‘गठबंधन का अंत क्यों होगा?’
इस बीच उमर ने संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान केंद्र को यह स्पष्ट कर दिया गया कि विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए.
उमर ने कहा, ‘(गुलाम नबी) आजाद साहब ने हम सभी की ओर से कहा कि हम इस समयसीमा को स्वीकार नहीं करते हैं. हम परिसीमन, चुनाव, राज्य का दर्जा स्वीकार नहीं करते हैं. हम परिसीमन, राज्य का दर्जा और फिर चुनाव चाहते हैं. यदि आप चुनाव कराना चाहते हैं, तो आपको पहले राज्य का दर्जा बहाल करना होगा.’
बैठक के बाद गुपकर गठबंधन के कमजोर होने की चर्चा को खारिज करते हुए उमर ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने वाले गठबंधन के सदस्यों ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो समूह की भावना से अलग हो.
उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि हम अगस्त 2019 के फैसलों को स्वीकार नहीं करते हैं और हम कानूनी, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से उनसे लड़ना जारी रखेंगे.’
कुछ नेताओं द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली का मुद्दा न्यायाधीन होने के कारण इस बारे में बात करने से इनकार करने का उल्लेख करते हुए उमर ने कहा कि इससे मुद्दे पर चर्चा में अवरोध नहीं होना चाहिए.
उमर ने कहा, ‘सबसे पहले केवल दो लोगों गुलाम नबी आजाद और मुजफ्फर हुसैन बेग ने कहा कि मामला विचाराधीन है और वे दोनों पीएजीडी का हिस्सा नहीं हैं. मामला उच्चतम न्यायालय में है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस पर बात नहीं कर सकते. बाबरी मस्जिद का मामला उच्चतम न्यायालय में था, लेकिन बीजेपी ने राम मंदिर का मुद्दा हमेशा उठाया.’
उन्होंने कहा कि नेताओं को पार्टी स्तर पर सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया गया था, न कि गठबंधन के प्रतिनिधि के रूप में.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)