कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की पत्नी और वर्नोन गोन्जाल्विस की पत्नी ने जेल अधिकारियों द्वारा उनके ख़िलाफ़ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख़ किया है. उनका आरोप है कि तलोजा जेल अधीक्षक ने एकतरफ़ा और तानाशाही रुख़ अपनाते हुए प्रो. तेलतुम्बड़े और एल्गार परिषद मामले में सभी आरोपियों पर प्रतिबंध लगा दिया. इन सभी कार्यकर्ताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों और वकीलों को लिखे गए पत्र रोक दिए गए हैं.
मुंबईः एल्गार परिषद मामले में आरोपी कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े और कार्यकर्ता वर्नोन गोन्जाल्विस की पत्नियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि तलोजा जेल के अधीक्षक कार्यकर्ताओं द्वारा अपने परिवारों और वकीलों को लिखे गए पत्र जान-बूझकर रोक रहे हैं.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, आनंद तेलतुम्बड़े की पत्नी रमा और वर्नोन गोन्जाल्विस की पत्नी सुजन ने जेल अधिकारियों द्वारा आरोपियों के खिलाफ भेदभाव करने का आरोप लगाया है.
डॉ. बीआर आंबेडकर की पोती रमा ने कहा कि 10 मार्च को प्रोफेसर तेलतुम्बड़े द्वारा लिखा एक लेख एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. इसके बाद तलोजा जेल अधीक्षक ने इस लेख के संबंध में प्रोफेसर तेलतुम्बड़े को समाज-पत्र जारी किया है.
दरअसल सामान्य शब्दों में समाज-पत्र कारण बताओ नोटिस होता है.
आनंद तेलतुम्बडे ने इसका विस्तृत उत्तर दिया, हालांकि दोनों समाज पत्रों और उनके जवाब की प्रतियां मुहैया कराने का बार-बार अनुरोध किया गया, लेकिन इससे इनकार कर दिया गया, जिसके बाद इसे प्राप्त करने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन भी दायर किया गया.
रमा और सुजन का कहना है कि आरटीआई के बारे में पता चलने पर जेल अधीक्षक ने एकतरफा और तानाशाही रुख अपनाते हुए प्रोफेसर तेलतुम्बड़े और एल्गार परिषद मामले में सभी सह-आरोपियों पर प्रतिबंध लगा दिया और इन सभी 10 कार्यकर्ताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों और वकीलों को लिखे गए पत्र रोक दिए गए.
प्रोफेसर तेलतुम्बड़े ने तीन मई को जेल अधीक्षक से प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया था.
उन्होंने और वर्नोन गोन्जाल्विस ने जेलों के लिए विशेष पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) से संपर्क भी किया था. रमा और सुजन ने कहा कि आईजी ने इस मामले में कुछ करने का आश्वासन देने के अलावा कुछ नहीं किया.
उन्होंने कहा कि उनकी मुख्य शिकायत यह थी कि अधिकांश मामलों में पोस्ट किए जाने वाले पत्रों को रोक दिया गया था और अन्य मामलों में पत्रों को देर से पोस्ट किया गया था, जो जान-बूझकर किया गया दुर्भावनापूर्ण, कठोर और विकृत कृत्य है.
रमा तेलतुम्बड़े ने कहा कि जिस लेख के कारण जेल अधीक्षक ने कारण बताओ नोटिस दिया था, वह न तो राजनीतिक प्रचार था और न ही उसमें जेल प्रशासन के खिलाफ किसी तरह की सख्ती की मांग की गई थी. लेख में अन्य कैदियों के बारे में भी बात नहीं की गई थी और यह जेल नियमावली में निर्धारित नियमों के अनुरूप है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता आर. सत्यनारायण ने शनिवार को जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की पीठ के समक्ष कहा कि जिन मुख्य राहतों की मांग की गई है, वे तलोजा जेल के अधीक्षक के खिलाफ हैं.
आर. सत्यनारायण ने कहा, मार्च में भेजे गए पत्र परिवार को मई के पहले और दूसरे हफ्ते में मिले.
जेल अधीक्षक की ओर से पेश सरकारी वकील केवी सस्ते ने कहा कि अधिकारी ने जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय मांगा है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलोजा जेल के अधीक्षक से आरोपों पर 14 जुलाई तक जवाब देने को कहा है.
रमा तेलतुम्बड़े ने अपनी याचिका में कहा कि जेल अधीक्षक इस साल मार्च से ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, जब निजी क्षेत्र के कुछ उपक्रमों का निजीकरण करने की केंद्र की योजना पर उनके पति द्वारा लिखा गया एक आलेख कारवां पत्रिका में छपा था.
वकील सत्यनारायण ने पीठ से कहा कि आनंद तेलतुम्बड़े की पत्नी और वकीलों को इस साल मार्च के बाद से उनका एक भी पत्र नहीं मिला है.
रमा तेलतुम्बड़े ने याचिका में कहा कि इस साल मार्च में आलेख प्रकाशित होने के बाद जेल अधीक्षक ने गिरफ्तार कार्यकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिस पर तेलतुम्बड़े ने जवाब दिया कि उनके आलेख का एल्गार परिषद मामले से कोई संबंध नहीं है, इसलिए उन्होंने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया है.
रमा तेलतुम्बड़े ने अदालत से अनुरोध किया कि जेल अधीक्षक को इस बात का निर्देश दिया जाए कि वे उनके पति एवं अन्य सह आरोपियों को पत्राचार करने दें.
याचिकाकर्ता ने जेल अधीक्षक के खिलाफ जांच की भी मांग की.
शनिवार को एनआईए के वकील संदेश पाटिल ने अदालत से कहा कि उन्हें इस याचिका की प्रति अब तक नहीं मिली है. इसके बाद हाईकोर्ट ने सत्यनारायण को याचिका की प्रतियां एनआईए एवं राज्य को देने का निर्देश दिया.
बता दें कि माओवादियों से संबंध के आरोप में तेलतुम्बड़े, नवलखा और नौ अन्य नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामले दर्ज किए गए हैं.
इन कार्यकर्ताओं को शुरुआत में कोरेगांव-भीमा में भड़की हिंसा के बाद पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
पुलिस के अनुसार, इन लोगों ने 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद की बैठक में भड़काऊ भाषण और बयान दिए थे. जिसके अगले दिन हिंसा भड़क गई थी.
पुलिस का दावा है कि ये कार्यकर्ता प्रतिबंधित माओवादी समूहों के सक्रिय सदस्य हैं. इसके बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया था. हालांकि अभी तक इन दावों को लेकर उचित साक्ष्य पेश नहीं किए जा सके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)