जम्मू कश्मीर परिसीमन: पीडीपी ने बनाई दूरी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की पूर्ण राज्य की मांग

जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन की बड़ी कवायद को लेकर चार दिवसीय दौरे पर श्रीनगर पहुंचे जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने विभिन्न दलों के नेताओं से संवाद किया. बीते 24 जून को केंद्र शासित प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के साथ सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिसीमन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की मांग की थी.

जम्मू कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर (मध्य). (फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन की बड़ी कवायद को लेकर चार दिवसीय दौरे पर श्रीनगर पहुंचे जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने विभिन्न दलों के नेताओं से संवाद किया. बीते 24 जून को केंद्र शासित प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के साथ सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिसीमन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की मांग की थी.

जम्मू कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर (मध्य). (फोटो: पीटीआई)

श्रीनगर: कश्मीर में कई राजनीतिक दलों ने परिसीमन आयोग से मंगलवार को मुलाकात कर लोगों की आशंकाओं को दूर करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से पुनर्गठन की कवायद करने का आग्रह किया.

हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) ने इस कवायद का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया है. पीडीपी ने यह कहा कि ऐसी धारणा है कि प्रक्रिया का परिणाम पूर्व नियोजित है.

केंद्र शासित प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन की बड़ी कवायद को लेकर जम्मू कश्मीर के चार दिवसीय दौरे पर आयीं जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने विभिन्न दलों के नेताओं से संवाद किया.

नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित कई दलों ने आयोग के प्रतिनिधिमंडल को अलग-अलग ज्ञापन सौंपा.

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने आयोग को अलग-अलग ज्ञापन सौंपकर कवायद से संबंधित अपनी चिंताओं और मांगों को रेखांकित किया और कहा कि इसे जम्मू कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद ही किया जाए.

माकपा ने भी एक ज्ञापन दिया, जिसमें परिसीमन के संवैधानिक पहलुओं और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 को कानूनी चुनौती पर प्रकाश डाला गया.

आयोग का यह दौरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ बैठक करने के कुछ दिनों बाद हुआ है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीडीपी ने कहा कि 5 अगस्त, 2019 को देश के संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को रौंदा गया. इसने कहा कि परिसीमन अभ्यास उसी प्रक्रिया का हिस्सा है.

परिसीमन आयोग की अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई को छह जुलाई को लिखे पत्र में पार्टी ने कहा कि वह 24 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री के साथ सर्वदलीय बैठक के बाद किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचने से निराश है.

इसने यह भी कहा कि 24 जून से विश्वास निर्माण के उपायों के बजाय, सरकार ने जम्मू कश्मीर के लोगों पर अपने दैनिक आदेशों को लादना जारी रखा है. इसमें हाल के संशोधन और आदेश शामिल हैं, जिनमें प्रत्येक व्यक्ति को एक संदिग्ध बनाना (सरकारी कर्मचारी का पृष्ठभूमि सत्यापन आदेश) और जम्मू कश्मीर के दो क्षेत्रों के बीच विभाजन को गहरा करना (दरबार से संबंधित आदेश) है.

पीडीपी महासचिव गुलाम नबी लोन हंजुरा द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया, ‘(परिसीमन आयोग के) अस्तित्व और उद्देश्यों ने जम्मू कश्मीर के प्रत्येक सामान्य निवासी को कई प्रश्नों के साथ छोड़ दिया है. ऐसी आशंकाएं हैं कि परिसीमन अभ्यास जम्मू कश्मीर के लोगों के राजनीतिक अशक्तीकरण की समग्र प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे भारत सरकार ने शुरू किया है और उनकी मंशा सवालों के घेरे में है.’

पत्र में यह भी कहा गया है कि पार्टी ने परिसीमन की प्रक्रिया से दूर रहने और अभ्यास का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया, जिसके परिणाम को व्यापक रूप से पूर्व नियोजित माना जाता है और जो हमारे लोगों के हितों को और नुकसान पहुंचा सकता है.

पत्र में यह भी कहा गया है कि चूंकि लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है, तो इससे उन लोगों की बातों को बल मिल रहा है जिन्होंने पहली बार में 24 जून की बैठक को केवल फोटो खिंचाने का अवसर बताया था.

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा कि परिसीमन कवायद तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि सुप्रीम कोर्ट जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता और अन्य संबंधित आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला न कर ले.

आयोग से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बात करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता नासिर वानी ने कहा कि पार्टी ने आयोग को बताया कि लोगों का संस्थानों में ‘भरोसा खत्म हो गया है’ और यह आयोग का काम है कि वह इस भरोसे को बहाल करने की कोशिश करे.

कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने अपने ज्ञापन में कहा कि यदि जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने से पहले परिसीमन प्रक्रिया होती है तो यह कवायद ‘निरर्थक’ हो जाएगी.

पार्टी ने कहा कि भारतीय संविधान के चारों स्तंभों के भीतर अपनी लोकतांत्रिक नींव निर्धारित करने के लिए लद्दाख के लोगों की आकांक्षा का गंभीरता से सम्मान किया जाना चाहिए.

पार्टी ने यह भी सुझाव दिया कि परिसीमन आयोग ने अगर कोई मसौदा प्रस्ताव तैयार किया है तो उस पर सुझाव देने और आपत्तियां प्रस्तुत करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच बांटना चाहिए.

माकपा ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में 2011 की जनगणना को परिसीमन कवायद के लिए मार्गदर्शक प्रारूप के रूप में लिया जाना चाहिए.

माकपा नेता गुलाम नबी मलिक द्वारा दिए गए ज्ञापन में कहा गया, ‘जम्मू कश्मीर के दूरदराज के इलाकों में रहने वाली आबादी के उपेक्षित वर्गों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए.’

विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से एक नया कानून पेश करने की आवश्यकता हो सकती है. संसद में संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार कानून बनाकर केंद्र राज्य का दर्जा बहाल कर सकता है.

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि राज्य के कई पहलुओं को फिर से पेश करने के लिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में कई संशोधनों की आवश्यकता होगी.

मंगलवार को आयोग से मिलने वाली अन्य पार्टियों में भाजपा, नेशनल पैंथर्स पार्टी, सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व वाली जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी शामिल थीं.

भाजपा के प्रतिनिधियों ने कहा कि उन्होंने आयोग की बैठक के बाद आश्वस्त महसूस किया और सुझाव दिया कि निर्वाचन क्षेत्रों को जिलों के भीतर सीमित किया जाए और दूसरे जिले में नहीं फैलाया जाए. भाजपा ने केंद्र शासित प्रदेश की एसटी आबादी के लिए सीटों के आरक्षण की भी मांग की है.

इस बीच, सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने निर्वाचन क्षेत्रों की खोज के खिलाफ आयोग को आगाह किया. उसने ज्ञापन में कहा कि वह सार्थक सहयोग में विश्वास करता है.

जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुलाम हसन मीर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से मुलाकात की. अपने ज्ञापन में पार्टी ने कहा कि सभी हितधारकों के विचारों को प्रांतीय स्तर के बजाय जिला स्तर पर संवाद और जनसुनवाई के माध्यम से समायोजित करने की आवश्यकता है.

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था.

उसके बाद पहली बार बीते 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई थी.

उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के राजनीतिक नेताओं को आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार जल्द से जल्द विधानसभा चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध है और परिसीमन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की मांग की थी.

इसके बाद सोमवार को घाटी की छह बड़ी राजनीतिक पार्टियों के गठबंधन पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी या गुपकर गठबंधन) ने सर्वदलीय बैठक के नतीजे पर निराशा जताई थी.

गठबंधन ने कहा कि बैठक में राजनीतिक कैदियों तथा अन्य कैदियों की रिहाई जैसे विश्वास बहाली के ठोस कदमों का अभाव है.

गठबंधन ने कहा कि उसमें विश्वास बहाली के लिए कदमों पर बात नहीं हुई और न ही अगस्त 2019 से जम्मू कश्मीर के लोगों का ‘दम घोंट रहे घेराबंदी और दमन वाले वातावरण’ को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने पर चर्चा हुई.

गुपकर गठबंधन ने जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने संबंधी संसद में किया गया वादा भाजपा नीत केंद्र सरकार को याद दिलाते हुए कहा कि ऐसा होने के बाद ही विधानसभा चुनाव होने चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)