मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों में रह रहे मरीज़ों की कोविड जांच व टीकाकरण कराए सरकार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों से मरीजों को भिक्षुक गृह भेजे जाने के मामले पर गंभीरता से संज्ञान लिया और तुरंत इसे रोकने का निर्देश दिया.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों से मरीजों को भिक्षुक गृह भेजे जाने के मामले पर गंभीरता से संज्ञान लिया और तुरंत इसे रोकने का निर्देश दिया.

(फोटो: पीटीआई)

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों में रह रहे लोगों की कोविड-19 संबंधी जांच की जाए और जल्द से जल्द उनका टीकाकरण हो.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों से मरीजों को भिक्षुक गृह भेजे जाने के मामले पर गंभीरता से संज्ञान लिया और तुरंत इसे रोकने का निर्देश दिया.

पीठ ने कहा कि यह नुकसानदेह है और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध है.

पीठ ने कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने केंद्र की ओर से पक्ष रखते हुए अदालत को आश्वासन दिया है कि इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ लिया जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘सामाजिक न्याय विभाग इस मामले को तुरंत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के समक्ष रखेगा ताकि उचित निर्देश दिए जा सकें और मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रहने वाले मरीजों के टीकाकरण के लिए सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के लिहाज से योजना तैयार की जा सके.’

पीठ ने बताया कि वह याचिकाकर्ता के वकील गौरव कुमार बंसल की इस दलील से सहमत है कि मानसिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों की जांच और टीकाकरण के विषय को प्राथमिकता के साथ लिया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 12 जुलाई को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की बैठक में शामिल होने और पूर्ण सहयोग करने का निर्देश भी दिया.

पीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से ऐसे मरीजों के ब्योरे में विसंगितयों को दूर करने को कहा है, जो ठीक हो गए हैं लेकिन अब भी मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में हैं या जिन्हें अब भी उपचार की आवश्यकता है.

मालूम हो कि अदालत अधिवक्ता गौरव बंसल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि लगभग 10,000 लोग ऐसे हैं, जो ठीक हो चुके हैं लेकिन सामाजिक कलंक माने जाने की वजह से उन्हें अभी भी विभिन्न मानसिक अस्पतालों एवं संस्थानों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

इस पर पीठ ने कहा, यह बहुत गंभीर मामला है. कई मरीजों के ठीक हो जाने के बाद भी उनका परिवार उन्हें स्वीकार नहीं करता. हालांकि, जरूरी यह है कि अदालत के आदेशों का पालन हो.

पीठ का कहना है कि वह अब इस मामले पर नजर रखेगी और तीन सप्ताह बाद मामले पर सुनवाई करेगी.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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